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उत्तराखंड में क्लाउडबस्ट

चर्चा में क्यों? 

 5 अगस्त 2025 की दो क्लाउडबस्ट घटनाओं (मुख्यतः खीरगंगा नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में) ने उत्तरकाशी ज़िले के धराली गाँव व आसपास के हर्षिल क्षेत्र में अचानक अत्यंत तीव्र बारिश फैलाई। इसके परिणामस्वरूप मिट्टी और पानी की तबाही—फ्लैश फ्लड एवं मलबे का बहाव—ने गाँव को लगभग बहा दिया। चार लोग मृत पाए गए, लगभग 100 लोग लापता बताए गए, और भारी संरचनात्मक क्षति हुई। 

क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) क्या है?

क्लाउडबर्स्ट एक अत्यंत तीव्र और स्थानीयकृत वर्षा की घटना है, जिसमें बहुत कम समय में किसी छोटे से क्षेत्र पर अत्यधिक मात्रा में बारिश होती है। यह अक्सर पहाड़ी या पर्वतीय क्षेत्रों में होती है और अचानक बाढ़ (Flash Flood), भूस्खलन (Landslide) और मलबे के प्रवाह (Debris Flow) जैसी आपदाओं को जन्म देती है।

1. आधिकारिक परिभाषा (IMD के अनुसार) 

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार:
    क्लाउडबर्स्ट वह घटना है जब लगभग 20–30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1 घंटे के भीतर कम से कम 100 मिलीमीटर वर्षा होती है।
  • अत्यधिक तीव्र घटनाओं में यह दर 100–250 mm/घंटा तक भी पहुँच सकती है।
     

क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) के कारण   

1. ओरोग्राफिक लिफ्ट और स्थलाकृति (Orographic Effect & Topography)

  • जब नमी से भरी हवाएँ (मानसून या पश्चिमी विक्षोभ से) पर्वतीय ढलानों से टकराती हैं, तो वे मजबूरन ऊपर उठती हैं।
  • ऊपर उठते ही हवा ठंडी होती है और उसमें मौजूद जलवाष्प क्यूम्युलोनिंबस (Cumulonimbus) बादलों में संघनित हो जाती है।
  • जब बादल अत्यधिक जल‑वाष्प से भर जाते हैं, तो अचानक उनका संतुलन बिगड़ता है और तेज़ बारिश के रूप में पानी गिरता है।
     

2. वायुमंडलीय अस्थिरता (Atmospheric Instability)

  • यदि पहाड़ों पर गर्म और ठंडी हवाओं का टकराव होता है, तो ऊर्ध्वाधर अस्थिरता (Vertical Convection) बढ़ जाती है।
  • इस अस्थिरता के कारण बादल तेजी से विकसित होते हैं और सुपरसेल या क्यूम्युलोनिंबस बनकर अचानक वर्षा उत्पन्न करते हैं।
  • यही प्रक्रिया लेह (2010) और केदारनाथ (2013) जैसी घटनाओं में देखी गई।

3. उच्च नमी और मानसूनी परिस्थितियाँ 

  • मानसून के दौरान समुद्र से आने वाली हवाएँ भारी मात्रा में नमी लेकर आती हैं।
  • यदि यह नमी पर्वतीय क्षेत्र में फंस जाए और अचानक संघनन हो जाए, तो क्लाउडबर्स्ट की संभावना अधिक होती है।
  • 5–6 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी (धराली) क्लाउडबर्स्ट में 1 घंटे में 210 mm से अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई।
     

4. जलवायु परिवर्तन और चरम वर्षा घटनाएँ 

  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवा अधिक नमी सोखने में सक्षम हो गई है।
  • जलवायु परिवर्तन के चलते अत्यधिक और अल्पकालिक वर्षा घटनाएँ बढ़ रही हैं।
  • IMD और IPCC रिपोर्टों के अनुसार, हिमालयी क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट घटनाओं की आवृत्ति पिछले 3 दशकों में बढ़ी है।

5. माइक्रो‑क्लाइमेट और स्थानीय परिस्थितियाँ 

  • घाटियों में स्थानीय निम्नदाब क्षेत्र (Local Low Pressure Pockets) बन जाते हैं।
  • संकरी घाटियाँ और नदी तल जल प्रवाह को तेज़ कर देती हैं।
  • यदि बादल इन्हीं क्षेत्रों में फंस जाते हैं, तो अचानक क्लाउडबर्स्ट की स्थिति बनती है।

6. अन्य सहायक कारण 

  1. वनस्पति में कमी (Deforestation):
    1. ढलानों पर पेड़ों की कमी से जल धारण क्षमता घट जाती है और वर्षा सीधे तेज़ बहाव में बदल जाती है।
  2. मानव‑जनित निर्माण (Infrastructure Pressure): 
    1. सड़क, होटल, और अतिक्रमण प्राकृतिक जल मार्गों को रोक देते हैं, जिससे बारिश का पानी केंद्रित होकर बाढ़ का रूप ले लेता है।
  3. ग्लेशियर झीलों की नज़दीकी:
    1. यदि क्लाउडबर्स्ट ग्लेशियर झीलों के पास होता है, तो यह GLOF (Glacial Lake Outburst Flood) को ट्रिगर कर सकता है।

क्लाउडबर्स्ट के संवेदनशील क्षेत्र (Vulnerable Regions)

क्लाउडबर्स्ट मुख्यतः पर्वतीय और ढलानदार क्षेत्रों में होते हैं, जहाँ नमी से भरी हवाएँ तेजी से ऊपर उठती हैं। भारत में निम्नलिखित क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील माने जाते हैं:

  1. हिमालयी क्षेत्र (उत्तर भारत)
    1. उत्तराखंड: उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़
    2. हिमाचल प्रदेश: कुल्लू, चंबा, किन्नौर
    3. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख: गुलमर्ग, पहलगाम, लेह (2010 लेह क्लाउडबर्स्ट)
    4. इन क्षेत्रों में संकरी घाटियाँ और तीव्र ढलान जल प्रवाह को तेज़ कर देते हैं।
  2. पूर्वोत्तर राज्य
    1. अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मेघालय (विशेषकर चेरापूंजी और मौसिनराम)
    2. अत्यधिक मानसूनी नमी और संकरी घाटियाँ यहाँ जोखिम बढ़ाती हैं।
  3. पश्चिमी घाट और केरल
    1. वायनाड, इडुक्की, कोडगु क्षेत्र में भी जून–सितंबर के दौरान छोटे पैमाने पर क्लाउडबर्स्ट जैसी घटनाएँ दर्ज होती हैं।

प्रभाव (Impact)

A. बुनियादी ढांचे को नुकसान (Infrastructure Damage)

  • सड़क और पुल:
    1. NH‑34 (उत्तरकाशी–गंगोत्री मार्ग) जैसी मुख्य सड़कें बार‑बार क्षतिग्रस्त होती हैं।
    2. धराली क्लाउडबर्स्ट (अगस्त 2025) में कई पुल और सड़कें पूरी तरह बह गईं।
  • भवन और होटल:
    1. घाटियों और नदी किनारे बने होटल और घर बहाव की चपेट में आ जाते हैं।
    2. 2025 धराली आपदा में 40+ घर और 25–50 होटल ध्वस्त।
  • पावर और टेलीकॉम:
    1. बिजली और संचार लाइनें टूट जाती हैं, जिससे राहत कार्य कठिन हो जाता है।

B. गंगोत्री तीर्थ यात्रा पर प्रभाव (Disrupted Pilgrimage Route)

  • यात्री मार्ग बाधित:
    1. NH‑34 और आसपास की लिंक सड़कों के बहने से गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा रुक जाती है।
  • तीर्थयात्री फँस जाते हैं:
    1. बारिश और भूस्खलन के कारण हजारों यात्री कई दिनों तक फँस जाते हैं।
  • स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित:
    1. होटल, होमस्टे और टूरिज़्म पर निर्भर स्थानीय लोगों को भारी नुकसान।

3. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की चेतावनी प्रणाली (Warning Systems)

  1. डॉपलर वेदर रडार (DWR):
    1. देहरादून, श्रीनगर और शिलांग जैसे केंद्रों से 100–200 km दायरे में रियल‑टाइम वर्षा डेटा।
  2. ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (AWS):
    1. छोटे पैमाने की वर्षा घटनाओं की मॉनिटरिंग।
  3. रेड, ऑरेंज और येलो अलर्ट:
    1. 2025 उत्तरकाशी घटना के समय IMD ने 10 अगस्त तक रेड अलर्ट जारी किया।
  4. सैटेलाइट इमेजिंग और हाई‑रेज़ॉल्यूशन मॉडलिंग:
    1. INSAT‑3D/3DR और अब GIS आधारित चेतावनी प्रणाली क्लाउडबर्स्ट पहचान में मदद कर रही है।

4. निवारण और शमन उपाय (Mitigation Efforts) 

  1. पूर्व चेतावनी और रियल‑टाइम मॉनिटरिंग
    1. उच्च रेज़ॉल्यूशन Doppler रडार और Rain‑Gauge नेटवर्क का विस्तार।
    2. मोबाइल SMS और सायरन‑आधारित चेतावनी।
  2. संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण (Zonation)
    1. भूस्खलन और फ्लैश फ्लड प्रवण क्षेत्रों का GIS‑आधारित मैप तैयार करना।
    2. संवेदनशील गाँव और तीर्थ मार्गों पर नियमित निगरानी।
  3. बुनियादी ढांचे का सुरक्षित निर्माण
    1. नदी किनारे अवैध निर्माण पर रोक।
    2. पुल और सड़कें जल प्रवाह और मलबा बहाव को ध्यान में रखकर डिज़ाइन करना।
  4. समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन
    1. स्थानीय लोगों को राहत‑बचाव और आपदा तैयारी में प्रशिक्षित करना।
    2. SDRF और NDRF के साथ मिलकर गाँव‑स्तरीय चेतावनी तंत्र।
  5. जलवायु अनुकूलन उपाय
    1. वनीकरण और कैचमेंट एरिया प्रबंधन।
    2. हिमालयी पारिस्थितिकी में अवसंरचना का सीमित और नियंत्रित विकास।

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