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चोल विरासत में केवल भव्य मंदिर ही नहीं, बल्कि सुशासन भी शामिल है       

UPSC पाठ्यक्रम:

प्रारंभिक परीक्षा: GS पेपर 3 – अर्थव्यवस्था और पर्यावरण 

मुख्य परीक्षा: कृषि एवं जल संसाधन प्रबंधन, सतत अवसंरचना (बुनियादी ढांचा लचीलापन), संरक्षण पर्यावरण एवं विशिष्टता।  

चर्चा में क्यों:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई 2025 में गंगईकोंडा चोलपुरम यात्रा मोदी के उद्घोषणीय राजा राजराजा चोल और राजेंद्र चोल के स्मारकों की स्थापना की घोषणा लेकर आई। इस अवसर पर उन्होंने चोल वंश की प्रशासनिक, स्थापत्य और समुद्री पराकाष्ठा की विरासत को राष्ट्र निर्माण और संवर्धित प्रासंगिकता की रूपक बताया।   

पृष्ठभूमि / Background

चोल साम्राज्य (Chola Empire) दक्षिण भारत के इतिहास में 9वीं से 13वीं शताब्दी तक एक प्रमुख और प्रभावशाली शक्ति रहा। इसका प्रशासनिक ढाँचा, जल प्रबंधन और सांस्कृतिक उपलब्धियाँ आज भी अध्ययन का विषय हैं। चोल शासन ने न केवल भव्य मंदिरों और स्थापत्य की परंपरा दी, बल्कि सुशासन, स्थानीय स्वशासन और सतत संसाधन प्रबंधन का भी उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।

1. राजेंद्र चोल प्रथम और साम्राज्य का विस्तार (1014–1044 CE)

राजेंद्र चोल प्रथम चोल साम्राज्य के सबसे प्रख्यात शासकों में से एक थे।

उन्होंने दक्षिण भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, अंडमान-निकोबार द्वीप, मलेशिया और इंडोनेशिया (श्रीविजय साम्राज्य) तक अपना प्रभाव स्थापित किया।

उन्होंने गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी नई राजधानी बनाया, जहाँ से साम्राज्य का प्रशासन संचालित होता था।

उनके शासनकाल में नौसैनिक शक्ति और समुद्री व्यापार दोनों का अत्यधिक विकास हुआ।

प्रशासनिक महत्त्व:

राजेंद्र चोल ने साम्राज्य को मंडल, नाडु, कुर्रम और ग्राम इकाइयों में विभाजित किया।

स्थानीय निकायों को मजबूत किया गया और कर वसूली का सुव्यवस्थित तंत्र विकसित हुआ।

2. करिकाल चोल और कल्लानई (Grand Anicut)

करिकाल चोल (लगभग 150 ईस्वी) चोल वंश के प्रारंभिक शासक थे।

उन्होंने कल्लानई बाँध (Grand Anicut) का निर्माण करवाया, जो आज भी कावेरी नदी पर स्थित है।

यह विश्व की सबसे प्राचीन चालू मानव निर्मित जल-सिंचाई संरचनाओं में गिना जाता है।

इसका उद्देश्य था: 

नदी के जल का नियंत्रित वितरण

सिंचाई के माध्यम से कृषि उत्पादन बढ़ाना

अकाल और सूखे के प्रभाव को कम करना

3. ग्रामस्तरीय संस्थाएँ और स्थानीय स्वशासन

चोल शासन की विशेषता ग्राम पंचायत आधारित प्रशासन और संसाधन प्रबंधन था।

पंचायत (Gram Sabha): ग्राम के सामान्य प्रशासन, कर संग्रहण और विवाद निपटान की मुख्य इकाई।

टैंक समिति (Eri Variyam): गाँव के तालाब और जलाशयों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार।

सिंचाई और जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती थी।

बागवानी समिति (Totta Variyam): उद्यान, फलदार वृक्षों और कृषि भूमि की देखरेख।

भूमि उपयोग की दक्षता बढ़ाने में सहायक।

इन समितियों की व्यवस्था यह दर्शाती है कि चोल शासन विकेंद्रीकृत प्रशासन, लोक सहभागिता और संसाधन प्रबंधन पर आधारित था।

4. आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता

चोल प्रशासनिक परंपरा आज भी पंचायती राज, जल संरक्षण और सतत विकास के लिए प्रेरणास्रोत है।

SDG‑6 (Clean Water & Sanitation) और SDG‑11 (Sustainable Cities & Communities) की दिशा में यह ऐतिहासिक मॉडल एक सफल स्थानीय शासन और संसाधन प्रबंधन का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

हालिया घटनाक्रम / Current Developments   a

1. आदि तिरुवथिरै उत्सव 2025 का समापन

वर्ष 2025 में 23 जुलाई से 27 जुलाई तक तमिलनाडु में गंगईकोंडा चोलपुरम स्थित ब्रहदीश्वर मंदिर में आयोजित किया गया, जो चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती का पर्व है।

इस उत्सव के समापन समारोह की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिसमें उन्होंने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिदृश्य पर अपने विचार व्यक्त किए।

2. गंगा जल अनुष्ठान और प्रतीकात्मक महत्व

पीएम मोदी ने गंगाईकोंडा चोलपुरम मंदिर में ‘कलश’ के द्वारा गंगा जल लाने का प्रतीकात्मक अनुष्ठान संपन्न किया। इसे चोल शासन की ऐतिहासिक परंपरा का पुनर्पाठ मानते हुए उनकी विजयी गंगा अभियान की याद दिलाई गई।

यह कार्य अंगीकृत रूप से “गंगा-जलंयम जयस्तंभ (liquid pillar of victory)” की स्मृति को जीवंत करता है, जैसा कि ऐतिहासिक चोल शिलालेखों में उल्लेख है।

3. स्मारक सिक्का एवं सम्राटों की मूर्तियाँ

प्रधानमंत्री ने राजेंद्र चोल और उनके पिता राजा राजराजा चोल की स्मृति में स्मारक सिक्का जारी किया ।

साथ ही उन्होंने दोनों सम्राटों की विशाल मूर्तियाँ स्थापित करने की घोषणा की, ताकि ऐतिहासिक चेतना और सांस्कृतिक गौरव को आधुनिक पीढ़ियों तक प्रस्थापित किया जा सके।

4. जल संरक्षण दिवस की मांग

भारतीय किसान संघम द्वारा प्रस्ताव रखा गया कि आदि तिरुवथिरै दिवस को एक विशेष जल संरक्षण दिवस (International Day of Water Conservation) घोषित किया जाए। इस मांग का पृष्ठभूमि चोल कालीन जल-निकायों और सिंचाई प्रबंधन की श्रेष्ठ परंपरा थी।

संघम ने इस पर दिनचर्या में किसानों, किसान संगठनों और जल प्रबंधन में उत्कृष्ट योगदान देने वाले संस्थाओं को सम्मानित करने की भी प्रस्तावित इच्छा जताई।

5. स्थानीय जल संरचनाओं का पुनर्दर्शन

तमिलनाडु सरकार ने 19.2 करोड़ की राशि चोलागंगम (Cholagangam) जलाशय के पुनर्विकास पर खर्च करने की घोषणा की।

इस परियोजना में जलाशय की बांध मजबूती, 15 किमी स्पिलवे और 38 किमी इनलेट नहर की सफाई, और पर्यटन सुविधाओं का विकास शामिल है। 

इस आयोजन के साथ राज्य स्तर पर 55 करोड़ की चोल संग्रहालय योजना और 35‑फीट की राजा राजराजा चोल मूर्ति निर्माण का प्रस्ताव भी सामने आया। 

6.प्रशासनिक और सांस्कृतिक संदर्भ

ये हालिया पहलें चोल राजा के प्रशासनिक स्तर और उनके जल प्रबंधन कार्यों को वर्तमान शासन प्रणाली में सांस्कृतिक पुनरस्थापना, पर्यावरणीय संवेदनशीलता और स्थानीय विकास के मॉडल के रूप में पेश कर रही हैं।

पीएम मोदी ने समारोह में चोल साम्राज्य को “Viksit Bharat के लिए प्राचीन रोडमैप” के रूप में वर्णित किया, जिसमें सामुद्रिक शक्ति, आर्थिक सफलता और सांस्कृतिक एकता का समन्वय दिखता है

महत्व / Significance

चोल शासन का महत्व केवल सांस्कृतिक धरोहर और भव्य मंदिरों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह सुशासन, जल-सुरक्षा, कृषि समृद्धि और व्यापारिक विस्तार का भी प्रतीक था। आधुनिक भारत में इसके कई पहलू प्रेरणादायक हैं, जिनका विश्लेषण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है।

1. संप्रभुता और समुद्री शक्ति का प्रतीक

चोल साम्राज्य ने न केवल दक्षिण भारत में, बल्कि श्रीलंका, मलय प्रायद्वीप और सुमात्रा तक अपना प्रभाव स्थापित किया।

यह व्यापक समुद्री नेटवर्क और नौसैनिक शक्ति भारत की सामरिक संप्रभुता और समुद्री व्यापार सुरक्षा का प्रारंभिक उदाहरण था।

आधुनिक भारत में सागरमाला परियोजना और इंडो-पैसिफिक रणनीति के संदर्भ में यह विरासत महत्वपूर्ण है।

2. जल सुरक्षा और कृषि समृद्धि का मॉडल

करिकाल चोल द्वारा निर्मित कल्लानई (Grand Anicut) आज भी कावेरी नदी पर सिंचाई का आधार है।

चोल काल में eri variyam (टैंक समिति) और totta variyam (बागवानी समिति) जैसी ग्राम संस्थाएँ जल प्रबंधन और फसल विविधीकरण सुनिश्चित करती थीं।

यह प्रणाली आज के जल संरक्षण अभियानों, जल जीवन मिशन और सूखा प्रबंधन नीतियों के लिए प्रेरक है।

3. प्रसार व्यापार और आर्थिक स्थायित्व

चोल युग में चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और अरब देशों के साथ सक्रिय व्यापार होता था।

मसाले, कपास, रत्न और हाथीदांत जैसे उत्पादों के निर्यात ने स्थायी राजस्व और समृद्धि को सुनिश्चित किया।

आधुनिक भारत के लिए यह “मेक इन इंडिया” और ब्लू इकोनॉमी जैसी पहल के लिए ऐतिहासिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

4. दीर्घकालिक अवसंरचना और स्थानीय लोकतंत्र

चोल प्रशासन ने मंदिरों, जलाशयों, सड़कों और नगर नियोजन को स्थानीय पंचायतों के माध्यम से विकसित किया।

ग्रामसभा और समिति-आधारित प्रबंधन प्रणाली ने भागीदारी आधारित शासन को मजबूत किया।

यह आज के 73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा सुदृढ़ किए गए पंचायती राज और नगर पालिका प्रणाली के लिए ऐतिहासिक प्रेरणा है।

5. आधुनिक भारत में प्रासंगिकता  

स्थानीय लोकतंत्र: ग्राम और नगर स्तर पर चोल कालीन संस्थाएँ आज के स्वशासी संस्थानों की नींव का उदाहरण हैं।

प्राकृतिक आपदा प्रबंधन: उनके जलाशय और नहरें बाढ़ नियंत्रण व सूखा प्रबंधन के उत्कृष्ट मॉडल थे।

जल संरक्षण रणनीति: आज के अमृत सरोवर अभियान, नमी सृजन और जलशक्ति अभियानों में वही मूल भावना दिखाई देती है।

चुनौतियाँ / Challenges    

  • आधुनिक गणराज्य में कई स्थानीय निकाय, विशेषकर बड़े शहरों में, आज भी निर्वाचित प्रतिनिधियों के बिना काम कर रहे हैं, जबकि 73 वाँ और 74 वाँ संवैधानिक संशोधन लागू हुए 30 वर्षों से अधिक हो चुके हैं। 
  • यह जनभागीदारी की कमी दर्शाता है।
  • हाल की दुर्घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन की जोखिमशीलता, आधुनिक अवसंरचना की क्षरणीयता और भूकंपीय लचीलेपन की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।

डेटा और रिपोर्ट / Data & Reports

  • IIT‑IIT Kanpur सहित कई शोध बताते हैं कि चोल काल में जल संरक्षण, टैंक निर्माण, वषारोपण, और टैंक समितियों द्वारा वितरित संचालन प्रणाली अत्यंत प्रभावशाली थी।
  • The Better India की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि IAS अधिकारी विक्रांत राजा ने चोल मॉडल अपनाकर पुदुचेरी में 178 जल निकायों को तीन महीनों में पुनर्जीवित किया, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्र में पानी की स्थिति में सुधार हुआ।

सरकारी पहल / Government Initiatives

  • केंद्र ने चोल विरासत को सम्मानित करते हुए राजा राजराजा चोल और राजेंद्र चोल की मूर्तियों की स्थापना की घोषणा की।
  • राज्य सरकारों द्वारा संग्रहालय, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और जलआश्रय परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है (जैसे—NITI Aayog या राज्य जल प्राधिकरण से सहयोगीय योजनाएँ)।

अंतर्राष्ट्रीय तुलना / International Best Practices

  • जैसे USA में पानी वेल, UK में स्थानीय जल बोर्ड, जापान में आपदा‑सक्षम इन्फ्रास्ट्रक्चर नीतियाँ होती हैं, वैसे ही चोल प्रणाली में स्थानीय स्वशासन + सामुदायिक प्रबंधन का मॉडल मिलता है।
  • चोलों की तरह अन्य सभ्यताओं (जैसे मेसोपोटामिया, मिस्र) ने भी नदी घाटियों पर आधारित जल व्यवस्था विकसित की, लेकिन चोलों की ग्राम‑सेन्ट्रिक व्यवस्था और पंचायती अधिकार अधिक संगठित एवं जवाबदेह रही।

संवैधानिक एवं नैतिक आयाम / Ethical & Constitutional Dimensions  

  • चोल शासन में लोकता के प्रति उत्तरदायित्व, सामूहिक न्याय, पर्यावरणीय धर्म जैसे मूल्य दिखते हैं जो संवैधानिक DPSP एवं नीतिक शासन के सिद्धांतों से समकालीन मेल खा सकते हैं।
  • जल बांट‑संरक्षण के कानूनों में लोक सहभागिता और जवाबदेही बनी हुई थी—यह आज के प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही (accountability) के नैतिक आधार से जुड़ा हुआ है।

आगे की राह / Way Forward      

  • चोल जल-प्रबंधन मॉडल का आधुनिक प्रयोग: पानी संरक्षण, टैंक पुनरुद्धार, और स्थानीय समितियों की संरचना अपनानी चाहिए।
  • स्थानीय लोकतंत्र को सशक्त बनाना: निर्वाचित पंचायतों एवं नगर पालिकाओं की नियमित शु्रू, जवाबदेही और संसाधन अधिकार सुनिश्चित करें।
  • भूकंपीय‑सहिष्णु अवसंरचना: बृहदेश्वर मंदिरों जैसे चोल निर्माणों के इंजीनियरिंग सिद्धांतों की आधुनिक परीक्षण करें और आपदा-प्रबंधन मानक निर्धारित करें।
  • शैक्षणिक एवं नीति‑स्तर पर समावेश: राष्ट्रीय पाठ्यक्रम, UPSC और सार्वजनिक नीति पाठ्यक्रमों में चोल मॉडल को शामिल करें, जिससे ऐतिहासिक प्रशासनिक अनुभव संस्थागत रूप से संरक्षित हों।
  • सांस्कृतिक संवर्धन और प्रोत्साहन: स्मारक स्थापनाएं, संग्रहालय, उत्सव और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देकर सामाजिक चेतना और आदर बढ़ाएं।  

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