ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना में बड़ा बदलाव: बटालियन स्तर पर ड्रोन तैनात |
चर्चा में क्यों :
- मई 2025 में पाहलगाम आतंकी हमले के बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख के आधार पर भारतीय सेना अब संगठनात्मक पुनर्गठन करने जा रही है।
- इसमें ड्रोन और एंटी-ड्रोन सिस्टम को बटालियन स्तर पर मानक हथियार बनाना शामिल है।
- इसमें नई लाइट कमांडो बटालियन, रुद्र ब्रिगेड, आधुनिक आर्टिलरी यूनिट और विशेष ड्रोन यूनिट भी बनाई जाएंगी।
UPSC पाठ्यक्रम:
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ड्रोन क्या हैं?
- ड्रोन, जिन्हें मानव रहित हवाई वाहन (UAV) के रूप में भी जाना जाता है, वे विमान हैं जो बिना किसी मानव पायलट के संचालित हो सकते हैं।
- उन्हें या तो दूर से नियंत्रित किया जा सकता है या स्वायत्त रूप से उड़ाया जा सकता है जब उनकी उड़ान योजनाओं को GPS और सॉफ़्टवेयर-नियंत्रित सिस्टम का उपयोग करके प्रोग्राम किया जाता है।
ड्रोन का वर्गीकरण
- ड्रोन नियम, 2021 के तहत ड्रोन का वर्गीकरण उनके वजन के आधार पर किया गया है।
1. नैनो ड्रोन :
- वजन सीमा: 250 ग्राम या उससे कम।
- मुख्य विशेषताएँ: ये सबसे छोटे ड्रोन हैं, हल्के वजन के हैं और अक्सर शौकिया उड़ान और फ़ोटोग्राफ़ी जैसे मनोरंजक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- नियमन: कम जोखिम और छोटे आकार की वजह से, इन पर न्यूनतम नियामक शर्तें लागू होती हैं।
2. माइक्रो ड्रोन:
- वजन सीमा: 250 ग्राम से 2 किलोग्राम तक।
- मुख्य विशेषताएँ: नैनो ड्रोन से थोड़े बड़े, माइक्रो ड्रोन छोटे पैमाने के वाणिज्यिक संचालन, जैसे हवाई फ़ोटोग्राफ़ी, सर्वेक्षण या निरीक्षण के लिए उपयुक्त हैं।
- नियमन: नैनो ड्रोन की तुलना में संचालन के लिए अतिरिक्त अनुमतियों की आवश्यकता होती है।
3. छोटा ड्रोन:
- वजन सीमा: 2 किलोग्राम से 25 किलोग्राम तक।
- मुख्य विशेषताएँ: इन ड्रोन का उपयोग उन्नत वाणिज्यिक अनुप्रयोगों, जैसे कि कृषि (कीटनाशकों का छिड़काव), मानचित्रण और वितरण सेवाओं के लिए किया जाता है।
- विनियमन: ऑपरेटरों को विस्तृत अनुमति और परिचालन अनुपालन की आवश्यकता होती है।
4. मध्यम ड्रोन:
- वजन सीमा: 25 किलोग्राम से अधिक और 150 किलोग्राम तक।
- मुख्य विशेषताएँ: मध्यम ड्रोन का उपयोग औद्योगिक और रक्षा अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की निगरानी या टोही।
- विनियमन: इन ड्रोन का दुरुपयोग या गलत तरीके से इस्तेमाल किए जाने पर अधिक नुकसान होने की संभावना के कारण ये सख्त विनियमन के अधीन हैं।
5. बड़ा ड्रोन:
- वजन सीमा: 150 किलोग्राम से अधिक।
- मुख्य विशेषताएँ: बड़े ड्रोन मुख्य रूप से सैन्य और औद्योगिक उद्देश्यों, जैसे कि कार्गो परिवहन, निगरानी या लड़ाकू मिशनों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- विनियमन: उनके आकार और क्षमताओं के कारण, उन्हें व्यापक अनुमति और प्रमाणन सहित उच्चतम स्तर के विनियामक अनुपालन की आवश्यकता होती है।
ड्रोन प्रणाली का विकास
- भारत खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) संचालन को बढ़ाने के लिए अपने मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) क्षमताओं को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है।
- तापस ड्रोन
- आर्चर सशस्त्र यूएवी
- मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस
भारत की आधुनिक युद्ध रणनीति में ड्रोन की भूमिका
- भारत की सैन्य रणनीति अब ड्रोन-केंद्रित युद्ध पर आधारित होती जा रही है।
- इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण घरेलू अनुसंधान एवं विकास (R&D) में तेजी, ड्रोन आयात पर 2021 से लागू प्रतिबंध और ड्रोन एवं उनके कंपोनेंट्स के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना है।
- सितंबर 2021 में शुरू हुई इस PLI योजना के तहत 2021-22 से 2023-24 तक तीन वित्तीय वर्षों में कुल ₹120 करोड़ का प्रावधान किया गया।
- इस योजना ने घरेलू उत्पादन और AI-आधारित स्वायत्त ड्रोन तकनीक को बढ़ावा दिया।
- भविष्य के युद्ध अब AI-आधारित स्वायत्त ड्रोन और नेटवर्क-सेंट्रिक ऑपरेशन पर अधिक निर्भर होंगे और भारत इसके लिए मजबूत आधार तैयार कर रहा है।
बटालियन स्तर पर ड्रोन यूनिट
- मई 2025 में पाहलगाम आतंकी हमले के बाद संचालित ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट कर दिया कि आधुनिक युद्ध में ड्रोन का उपयोग निर्णायक है।
- इस अभियान से सीख लेकर भारतीय सेना ने निर्णय लिया कि इंफेंट्री, आर्मर्ड और आर्टिलरी बटालियनों में UAV और काउंटर-UAV सिस्टम को मानक हथियार बनाया जाएगा।
- वर्तमान में ड्रोन को द्वितीयक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है और इनके संचालन के लिए सैनिकों को उनके मूल कार्यों से हटाना पड़ता है।
- नई संरचना के तहत हर यूनिट में समर्पित ड्रोन ऑपरेटिंग टीम बनाई जाएगी, जिससे सैनिक विशेष प्रशिक्षण लेकर केवल ड्रोन संचालन पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
- इंफेंट्री बटालियनों में पलटन और कंपनी स्तर पर निगरानी ड्रोन लगाए जाएंगे और इसके लिए लगभग 70 सैनिकों को पुनः आवंटित किया जाएगा।
ड्रोन खरीद और सप्लाई चेन का संस्थानीकरण
- भारतीय सेना का उद्देश्य ड्रोन और अगली पीढ़ी के उपकरणों को मानक सैन्य वस्तु के रूप में शामिल करना है।
- इस कदम से ड्रोन की नियमित खरीद सुनिश्चित होगी और एक स्थायी सप्लाई चेन विकसित होगी।
- इससे आपातकालीन या एड-हॉक खरीद पर निर्भरता कम होगी और लंबी अवधि के लिए सतत युद्ध क्षमता विकसित की जा सकेगी।
भैरव लाइट कमांडो बटालियन का गठन
- भारतीय सेना 30 नई लाइट कमांडो बटालियनों का गठन कर रही है, जिन्हें भैरव बटालियन कहा जाएगा।
- प्रत्येक बटालियन में 250 सैनिक होंगे, जो विशेष मिशनों के लिए प्रशिक्षित होंगे।
- इन बटालियनों को विभिन्न कमांड्स के अंतर्गत तैनात किया जाएगा ताकि विशेष क्षेत्रों में तेज़ी से आक्रामक कार्रवाई की जा सके।
रुद्र ब्रिगेड : स्वतंत्र और समन्वित युद्ध संरचना
- भारतीय सेना मौजूदा ब्रिगेड्स को पुनर्गठित कर रुद्र ब्रिगेड बनाएगी।
- इन ब्रिगेड्स में इंफेंट्री, आर्मर्ड, आर्टिलरी, UAVs और लॉजिस्टिक तत्व एकीकृत होंगे।
- रुद्र ब्रिगेड को इस तरह तैयार किया जाएगा कि वह विविध भौगोलिक परिस्थितियों में स्वतंत्र रूप से संचालन कर सके।
- यह संरचना पारंपरिक और हाइब्रिड दोनों प्रकार के युद्धों के लिए उपयुक्त होगी।
आर्टिलरी का आधुनिकीकरण : ड्रोन बैटरियां और दिव्यास्त्र यूनिट
- भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट में बड़े बदलाव किए जा रहे हैं।
- नई योजना के तहत दो विस्तारित गन बैटरियां और तीसरी ड्रोन बैटरी बनाई जाएगी, जिसमें निगरानी और लड़ाकू ड्रोन शामिल होंगे।
- दिव्यास्त्र बैटरियां बनाई जाएंगी, जिनमें लंबी दूरी की तोपें, लूटेरिंग म्यूनिशन और एंटी-ड्रोन सिस्टम शामिल होंगे।
- इन बैटरियों का उद्देश्य गहराई वाले क्षेत्रों में लक्ष्य को भेदना और क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना होगा।
आर्मर्ड, मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री और इंजीनियरिंग यूनिट्स का पुनर्गठन
- आर्मर्ड और मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री में रिकॉन्नेसेंस प्लाटून को निगरानी और स्ट्राइक ड्रोन से लैस किया जाएगा।
- इंजीनियर रेजिमेंट में प्रत्येक कंपनी में ड्रोन सेक्शन जोड़ा जाएगा, जो माइन डिटेक्शन, एरिया मैपिंग और रेकॉन्नेसेंस में सहायता करेगा।
आर्मी एविएशन और EME में UAV क्षमताओं का विस्तार
- आर्मी एविएशन कॉर्प्स में अधिक UAVs शामिल किए जाएंगे, जिससे निगरानी और सर्विलांस मिशनों के लिए हेलीकॉप्टर पर निर्भरता कम होगी।
- इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (EME) कोर की मरम्मत क्षमता को बढ़ाया जाएगा, ताकि ड्रोन की मरम्मत और रखरखाव कॉर्प्स ज़ोन कार्यशालाओं में ही हो सके।
भारत में ड्रोन पहल
- 2030 तक ड्रोन महाशक्ति बनने के लक्ष्य के साथ, भारत ने स्वदेशी विकास और विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई पहल शुरू की हैं:
1.मेक इन इंडिया पहल:
- यह कार्यक्रम ड्रोन क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण और निवेश को प्रोत्साहित करता है, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है और आयात पर निर्भरता को कम करता है।
2.ड्रोन (संशोधन) नियम, 2022:
- इन संशोधनों के माध्यम से भारत सरकार ने ड्रोन संचालन से संबंधित नियमों और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को सरल बना दिया है, जिससे परमिट और अनुमोदनों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
- 11 फरवरी 2022 से ड्रोन पायलट लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।
- अब केवल DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) द्वारा अधिकृत रिमोट पायलट प्रशिक्षण संगठन से जारी रिमोट पायलट प्रमाणपत्र पर्याप्त है।
- गैर-वाणिज्यिक उपयोग के लिए माइक्रो और नैनो श्रेणी के ड्रोन चलाने हेतु अब DGCA से रिमोट पायलट प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है।
- अन्य सभी वाणिज्यिक और विशेष ड्रोन संचालन गतिविधियों के लिए पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है।
3.कृषि ड्रोन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP):
- ये एसओपी कृषि में ड्रोन के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग का मार्गदर्शन करते हैं, विनियमों और सर्वोत्तम प्रथाओं का अनुपालन सुनिश्चित करते हैं।
4.ड्रोन शक्ति योजना:
- 1 फरवरी, 2022 को केंद्रीय बजट में घोषित, यह पहल ड्रोन स्टार्टअप का समर्थन करती है और ड्रोन-एज़-ए-सर्विस (DrAAS) को बढ़ावा देती है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन सेवाओं के प्रावधान को बढ़ावा मिलता है।
- सरकार ने रक्षा, अनुसंधान एवं विकास और अन्य विशिष्ट श्रेणियों के अपवादों के साथ स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 9 फरवरी, 2022 तक विदेशी ड्रोन के आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
5.डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म (Digital Sky Platform)
- डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म (Digital Sky Platform), जिसे 26 जनवरी 2022 को लॉन्च किया गया, ड्रोन संचालन, विनिर्माण और संबंधित गतिविधियों के लिए ऑनलाइन अनुमति और पंजीकरण की सुविधा देता है। यह पोर्टल ड्रोन से संबंधित सभी सूचनाएँ और सेवाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध कराता है।
भारत के एंटी-ड्रोन सिस्टम
- भारत ने हाल के वर्षों में मानवरहित हवाई वाहनों (UAVs) और ड्रोन से उत्पन्न बढ़ते खतरों का मुकाबला करने के लिए अत्याधुनिक एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित और तैनात किए हैं।
- ये सिस्टम न केवल ड्रोन का पता लगाने (Detection), ट्रैकिंग (Tracking) और बेअसर (Neutralization) करने में सक्षम हैं,
- वर्तमान में अधिकांश UAVs इज़राइल और अमेरिका से खरीदे गए हैं।
- 2020 तक भारत का ड्रोन बाजार लगभग ₹29 बिलियन (370 मिलियन डॉलर) तक पहुंच गया था।
- 2026 तक इसके ₹1.5 ट्रिलियन (19 बिलियन डॉलर) तक बढ़ने का अनुमान है।
भारत के एंटी-ड्रोन सिस्टम
1. DRDO का एंटी-ड्रोन सिस्टम
- DRDO ने एक उन्नत एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित किया है जिसमें सॉफ्ट किल और हार्ड किल दोनों क्षमताएँ शामिल हैं।
- यह प्रणाली ड्रोन के संचार लिंक या GNSS/GPS सिग्नल को जाम कर उनके संचालन को बाधित करती है और साथ ही लेजर आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियारों की मदद से हवा में ही ड्रोन को नष्ट करने की क्षमता रखती है।
- यह मल्टी-सेंसर डिटेक्शन सिस्टम से सुसज्जित है, जिसमें रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड सेंसर और रेडियो फ्रीक्वेंसी डिटेक्टर का उपयोग कर ड्रोन का सटीक पता लगाया जाता है।
- यह प्रणाली सीमाओं पर ड्रोन घुसपैठ रोकने, सैन्य अभियानों, सार्वजनिक आयोजनों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में उपयोगी है।
- 2021 से इस प्रणाली ने भारत की सीमाओं पर आपराधिक और तस्करी ड्रोन को बेअसर करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।
2. लेजर-सुसज्जित एंटी-ड्रोन गन-माउंटेड सिस्टम
- भारत ने सीमा सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए लेजर-सुसज्जित एंटी-ड्रोन गन-माउंटेड सिस्टम विकसित किया है।
- इसे वाहनों या स्थायी स्थानों पर शीघ्रता से तैनात किया जा सकता है और यह मध्यम दूरी पर उड़ रहे ड्रोन को उच्च तीव्रता वाले लेजर द्वारा निष्क्रिय कर देता है।
- इस प्रणाली की तैनाती के बाद ड्रोन अवरोधन की सफलता दर 3% से बढ़कर 55% तक पहुँच गई है।
- यह सीमा पर हथियार, तस्करी का सामान या निगरानी उपकरण ले जाने वाले ड्रोन को रोकने में प्रभावी सिद्ध हुआ है। 2024 तक भारत-पाकिस्तान सीमा पर इस प्रणाली ने महत्वपूर्ण सुरक्षा परिणाम प्रदान किए हैं।
3. D4 काउंटर-ड्रोन सिस्टम
- D4 (Detect, Deter, Destroy, Defend) काउंटर-ड्रोन सिस्टम, DRDO द्वारा विकसित एक व्यापक समाधान है, जो रियल-टाइम डिटेक्शन, ट्रैकिंग और न्यूट्रलाइजेशन की क्षमता रखता है।
- यह मल्टी-सेंसर तकनीक का उपयोग करता है, जिससे अव्यवस्थित वातावरण में भी ड्रोन का पता लगाया जा सकता है।
- यह प्रणाली सॉफ्ट किल के लिए RF और GPS जैमिंग तथा हार्ड किल के लिए लेजर-आधारित ऊर्जा हथियार का उपयोग कर माइक्रो ड्रोन से लेकर बड़े UAV तक सभी को बेअसर करने में सक्षम है।
- इस प्रणाली को हवाई अड्डों, सरकारी इमारतों, बिजली संयंत्रों, सैन्य अड्डों और सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे संवेदनशील स्थानों पर तैनात किया जाता है।
- इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन और तैनाती के लिए DRDO ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), अदानी डिफेंस सिस्टम और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी की है, जिससे यह प्रणाली स्वदेशी स्तर पर व्यापक रूप से उपलब्ध हो सकी है।
ड्रोन तकनीक के अनुप्रयोग:
- ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (UAV) का सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए तेजी से उपयोग किया जा रहा है। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति को सक्षम किया है।
1. निगरानी और टोही
- ड्रोन लंबी अवधि की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो लक्ष्यों, इलाके और दुश्मन की गतिविधियों पर रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं।
उदाहरण:
- हेरॉन ड्रोन (इज़राइल): भारतीय सेना द्वारा रणनीतिक निगरानी के लिए उपयोग किए जाने वाले ये ड्रोन 24 घंटे से अधिक समय तक घूम सकते हैं।
- निशांत UAV (भारत) और एमक्यू-1 प्रीडेटर (यूएसए): सामरिक निर्णय लेने के लिए वास्तविक समय की खुफिया जानकारी देते हैं।
2. मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहन
- ये UAV लड़ाकू अभियानों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जिसमें हवा से हवा और हवा से ज़मीन पर हमला करना शामिल है।
- वे मिसाइलों, बमों और बंदूकों जैसे हथियारों को ले जाने के लिए सुसज्जित हैं।
उदाहरण:
- शाहेद 129 (ईरान)
- हंटर-किलर UAV (यूएसए)
3. स्वार्म ड्रोन :
- स्वार्म ड्रोन एक समन्वित बेड़े के रूप में काम करते हैं, जो साझा उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ काम करते हैं।
उदाहरण:
- इज़राइली रक्षा बलों ने गाजा में स्वार्म ड्रोन का इस्तेमाल किया।
- हौथी विद्रोहियों ने सऊदी अरामको प्रतिष्ठानों के खिलाफ स्वार्म ड्रोन का इस्तेमाल किया।
4. कामिकेज़ ड्रोन:
- इसे “लोइटरिंग म्यूनिशन” या “सुसाइड ड्रोन” भी कहा जाता है, ये ड्रोन विस्फोटकों से लैस होते हैं और लक्ष्यों से टकराने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जिससे विनाश होता है।
- उदाहरण: यूक्रेन-रूस संघर्ष में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
आगे की राह
- भारतीय सेना भविष्य में कौशल विकास हेतु आर्मी ट्रेनिंग कमांड (ARTRAC) के अंतर्गत ड्रोन युद्ध अकादमियों की स्थापना करेगी।
- स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए DRDO, HAL और निजी स्टार्टअप्स के सहयोग से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित तथा एंटी-जैमिंग यूएवी का निर्माण किया जाएगा।
- एकीकृत रक्षा नेटवर्क के तहत रियल-टाइम ड्रोन कमांड और नियंत्रण प्रणाली को थिएटर कमांड से जोड़ा जाएगा।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करने के लिए इज़राइल, फ्रांस और अमेरिका के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किए जाएंगे।
- कानूनी ढाँचे को सुदृढ़ करते हुए UAV संचालन के लिए निगरानी, हमले और डेटा सुरक्षा से संबंधित स्पष्ट प्रोटोकॉल लागू किए जाएंगे।
Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) से मिली सीख के आधार पर भारतीय सेना ने निर्णय लिया है कि इंफेंट्री, आर्मर्ड और आर्टिलरी बटालियनों में UAV और काउंटर-UAV सिस्टम को मानक हथियार बनाया जाएगा।
- भारतीय सेना की नई संरचना में प्रत्येक यूनिट में समर्पित ड्रोन ऑपरेटिंग टीम बनाई जाएगी, जिससे सैनिक केवल ड्रोन संचालन और निगरानी पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
- भैरव लाइट कमांडो बटालियन में प्रत्येक इकाई 500 सैनिकों से बनेगी, जिन्हें विशेष मिशनों के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) सभी 1, 2 और 3
उत्तर: (c) केवल 1 और 2
व्याख्या:
- कथन 1 सही है – मई 2025 के पाहलगाम आतंकी हमले के बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर से स्पष्ट हुआ कि आधुनिक युद्ध में ड्रोन निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसी के आधार पर भारतीय सेना ने इंफेंट्री, आर्मर्ड और आर्टिलरी बटालियनों में UAVs और काउंटर-UAV सिस्टम को मानक हथियार के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया।
- कथन 2 सही है – नई संरचना के तहत प्रत्येक यूनिट में समर्पित ड्रोन ऑपरेटिंग टीम बनाई जाएगी। सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण देकर केवल ड्रोन संचालन और निगरानी कार्य पर लगाया जाएगा, जिससे वे अपने मूल कार्यों से अलग होकर अधिक प्रभावी ढंग से UAV का उपयोग कर सकें।
- कथन 3 गलत है – भैरव लाइट कमांडो बटालियन में 250 सैनिक होंगे, 500 नहीं। ये बटालियन तेज़ और विशेष मिशनों के लिए प्रशिक्षित होंगी।
Topic : नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य |
चर्चा में क्यों :
- राजस्थान वन विभाग ने जुलाई 2025 में नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (NWS) की नई सीमाएँ निर्धारित कर इसे 16 गाँवों तक विस्तारित कर दिया और कुल क्षेत्रफल 6,025.74 हेक्टेयर दर्ज किया।
- इस निर्णय पर पर्यावरणविदों ने चिंता व्यक्त की है, क्योंकि इससे अभयारण्य की जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
हालिया विवाद
- पर्यावरणविदों और आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य की नई सीमाएँ इस प्रकार तय की गई हैं कि लक्ज़री होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को सीधा लाभ मिले।
- अभयारण्य और इसके ईको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के भीतर कई होटल और रिसॉर्ट अवैध रूप से बनाए गए हैं।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 26A के अनुसार, किसी भी संरक्षित क्षेत्र की सीमा बदलने से पहले राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की अनुशंसा लेना अनिवार्य है, लेकिन इस कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
- राज्य सरकार ने 22 जुलाई 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में नया नक्शा और दस्तावेज़ जमा कर दिए, जबकि NBWL से पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के Centre for Environmental Law, WWF-India बनाम Union of India मामले में यह स्पष्ट किया था कि किसी भी संरक्षित क्षेत्र की सीमा परिवर्तन से पहले राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की अनुशंसा अनिवार्य है।
नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के बारे में
- इसकी स्थापना 1980 में हुई थी, यह क्षेत्र जैसलमेर-जयपुर राजमार्ग से लगभग 20 किलोमीटर दूर अरावली पहाड़ियों में स्थित है और लगभग 50 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है, जो जयपुर शहर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित बफर जोन प्रदान करता है ।
- इस अभयारण्य का नाम नाहरगढ़ किले के नाम पर रखा गया है, जिसका निर्माण 1734 ईस्वी में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया था और यह किला जयपुर की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण था ।
- जैसलमेर क्षेत्र में पहले यह क्षेत्र जयपुर राज्य के महाराजाओं के निजी शिकारगाह (hunting grounds) के रूप में प्रयोग में था, बाद में इसे वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्य से संरक्षित किया गया था।
- 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act, 1972) के अंतर्गत 1980 में इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र (sanctuary) घोषित किया गया, जिससे यहां शिकार पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा और वन्यजीवों की संख्या में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगी।
- यह अभयारण्य रणथम्भौर टाइगर रिजर्व को जोड़ने वाले पारिस्थितिक गलियारे (corridor) का हिस्सा है।
भौगोलिक स्थिति
- यह अभयारण्य समुद्र तल से औसतन 500 से 700 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है।
- इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 7.2 वर्ग किलोमीटर है, जो इसे अपेक्षाकृत छोटे वन्यजीव अभयारण्यों में शामिल करता है।
सीमाएँ
- उत्तर सीमा: उत्तर में यह अभयारण्य कुंदरिया गाँव और आस-पास की अरावली पहाड़ियों से घिरा है।
- दक्षिण सीमा: दक्षिण में यह अभयारण्य जयपुर शहर के शहरी क्षेत्र और आमेर रोड से सटा हुआ है।
- पूर्व सीमा: पूर्व में आमेर किला और जलमहल के समीप की अरावली पहाड़ियाँ इसकी सीमा बनाती हैं।
- पश्चिम सीमा: पश्चिम दिशा में यह अभयारण्य कच्छवाहा राजाओं के पुराने शिकार क्षेत्र और गाँवों से जुड़ा है।
वनस्पति (Flora)
- नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य की वनस्पति मुख्यतः निम्न प्रकार की है –
- शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests)
- झाड़-झंखाड़ वाले क्षेत्र (Scrublands)
- प्राकृतिक घास के मैदान (Grasslands)
जीव-जंतु
स्तनधारी (Mammals)
- इस अभयारण्य में कई प्रकार के वन्यजीव पाए जाते हैं, जिनमें मुख्य हैं –
- तेंदुआ (Leopard)
- जंगली सूअर (Wild Boar)
- विभिन्न प्रजातियों के हिरण (Deer)
- शेर (Lion)
- बाघ (Tiger)
- भालू (Sloth Bear)
- अन्य छोटे स्तनधारी जैसे खरगोश और नेवला
पक्षी (Birds)
- यह अभयारण्य पक्षी प्रेमियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ आमतौर पर निम्न पक्षी देखे जा सकते हैं –
- मोर (Peacock)
- उल्लू (Owl)
- चील (Eagle)
- विभिन्न स्थानीय और प्रवासी पक्षी
सरीसृप और उभयचर (Reptiles & Amphibians)
- इस अभयारण्य में सरीसृप और उभयचर भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं –
- भारतीय अजगर (Indian Rock Python)
- मॉनिटर लिज़र्ड
- मेंढक और टोड (Frogs and Toads)
पर्यावरणीय महत्व
- नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य अरावली पर्वत श्रृंखला के जैव विविधता कॉरिडोर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- यह क्षेत्र शहरीकरण के दबाव के बीच वन्यजीव संरक्षण का प्रमुख केंद्र है और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।
मुख्य चिंताएँ
- नाहरगढ़ अभयारण्य की सीमाओं में हाल ही में किए गए बदलाव से कई चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- सीमाओं में परिवर्तन से ईको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) में व्यावसायिक गतिविधियों का दबाव बढ़ सकता है।
- इससे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए, जो हाल ही में चर्चा में रहे नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से संबंधित हैं –
- जुलाई 2025 में राजस्थान वन विभाग ने नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य की सीमाएँ बदलकर 16 गाँवों तक विस्तारित कर दीं और इसका कुल क्षेत्रफल 6,025.74 हेक्टेयर दर्ज किया।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 26A के अनुसार, किसी भी संरक्षित क्षेत्र की सीमा बदलने के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की सिफारिश आवश्यक होती है।
- यह अभयारण्य अरावली पर्वतमाला में स्थित है और जयपुर शहर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित बफर ज़ोन प्रदान करता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2 और 3
C) 1, 2 और 3
D) केवल 1 और 3
उत्तर: C) 1, 2 और 3
व्याख्या (Explanation):
- कथन 1 सही है , जुलाई 2025 में राज्य के वन विभाग ने नाहरगढ़ अभयारण्य की नई सीमाएँ निर्धारित कर इसे 13 से बढ़ाकर 16 गाँवों तक कर दिया और कुल क्षेत्रफल 6,025.74 हेक्टेयर दर्ज किया।
- कथन 2 सही है , वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 26A के अनुसार, किसी भी संरक्षित क्षेत्र की सीमा बदलने के लिए NBWL की अनुशंसा अनिवार्य है। इस मामले में यह पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई, जिसके कारण विवाद हुआ।
- कथन 3 सही है , नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य अरावली पर्वतमाला में स्थित है और जयपुर शहर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित बफर ज़ोन का कार्य करता है।