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पलामू टाइगर रिज़र्व |
चर्चा में क्यों?
- झारखंड के पालामू टाइगर रिज़र्व (PTR) में गौर (Bos gaurus) की आबादी में गंभीर गिरावट दर्ज की गई है।
पलामू टाइगर रिज़र्व के बारे में
- पलामू टाइगर रिज़र्व झारखंड राज्य का एकमात्र बाघ संरक्षण क्षेत्र है।
- इसे वर्ष 1974 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के प्रथम चरण में देश के शुरुआती 9 टाइगर रिज़र्व में शामिल किया गया।
- यह बेतला राष्ट्रीय उद्यान का एक हिस्सा है और अपनी जैव विविधता एवं संरक्षण इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।
भौगोलिक सीमा
- उत्तर में : गढ़वा ज़िला
- दक्षिण में : लातेहार और गुमला के वन क्षेत्र
- पूर्व में : लोहरदगा और रांची के पठारी भाग
- पश्चिम में : छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे वन क्षेत्र
भूगर्भीय संरचना
- यहाँ की प्रमुख चट्टानों में ग्नाइस, ग्रेनाइट, चूना पत्थर, क्वार्टज़ाइट और ऐंफिबोलाइट सम्मिलित हैं।
- गोंडवाना शैल संरचना में बलुआ पत्थर, शेल और हेमाटाइट पाई जाती हैं।
- यह क्षेत्र बॉक्साइट और कोयला जैसे खनिजों से समृद्ध है।
भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार
- यह छोटानागपुर पठार पर लातेहार एवं गढ़वा जिलों में स्थित है।
- कुल क्षेत्रफल 1,129.93 वर्ग किलोमीटर है।
- कोर क्षेत्र : 414.08 वर्ग किलोमीटर (महत्वपूर्ण बाघ आवास)।
- बफर क्षेत्र : 715.85 वर्ग किलोमीटर।
- इसकी स्थलाकृति घाटियों, पहाड़ियों और समतल मैदानों से मिलकर बनी है।
नदियाँ एवं जल स्रोत
- इस क्षेत्र से तीन प्रमुख नदियाँ बहती हैं :
- उत्तर कोयल (North Koel)
- बुरहा (Burha) – यह एकमात्र नदी है जो पूरे वर्ष प्रवाहित रहती है।
औरंगा (Auranga)
- यहाँ कई प्राकृतिक जलभृत (Aquifers) पाए जाते हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में चुआन कहा जाता है।
- बरवाडीह के निकट तथा नामक सल्फर युक्त गर्म पानी का झरना भी मौजूद है।
जलवायु एवं वर्षा
- यह क्षेत्र वृष्टि-छाया प्रभाव (Rain-shadow effect) के कारण सूखाग्रस्त माना जाता है।
- औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1075 मिमी होती है।
- अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है, तथा दक्षिणी भागों में वर्षा की मात्रा उत्तरी भागों से अधिक है।
वनस्पति
- यहाँ मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं।
प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ :
- साल
- बांस (Bamboo)
- इस क्षेत्र में 970 पौधों की प्रजातियाँ, 17 घास की प्रजातियाँ तथा 56 औषधीय पौधों की प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
जीव-जंतु
- पालामू टाइगर रिज़र्व में प्रमुख जीव प्रजातियों में बाघ, एशियाई हाथी, तेंदुआ, ग्रे वुल्फ, गौर (Bos gaurus), स्लॉथ भालू (Sloth Bear) और चार सींग वाला मृग (Four-horned Antelope) पाए जाते हैं, जबकि अन्य प्रजातियों में भारतीय पैंगोलिन, ऊदबिलाव शामिल हैं।
ऐतिहासिक महत्व
- 1932 में पलामू क्षेत्र में विश्व का पहला पगमार्क आधारित बाघ गणना सर्वेक्षण आयोजित किया गया था।
- इस सर्वेक्षण का नेतृत्व ब्रिटिश वन अधिकारी जे. डब्ल्यू. निकोल्सन ने किया था।
- यह घटना वन्यजीव संरक्षण और वैज्ञानिक प्रबंधन की दृष्टि से एक ऐतिहासिक पड़ाव मानी जाती है।
- वर्ष 1974 में पलामू को भारत सरकार द्वारा ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत अधिसूचित किया गया और इसे देश के शुरुआती 9 टाइगर रिज़र्व में शामिल किया गया। इस प्रकार यह भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में विशेष स्थान रखता है।
गौर (Bos gaurus) : भारतीय बाइसन
- गौर, जिसे भारतीय बाइसन (Indian Bison) के नाम से भी जाना जाता है, जंगली मवेशियों की सबसे बड़ी प्रजाति है।
- यह बोविडाए (Bovidae) परिवार का सदस्य है और अपनी विशालकाय काया, शक्तिशाली रूप तथा सामाजिक झुंड आधारित जीवन शैली के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
वितरण
- गौर का मूल निवास क्षेत्र दक्षिण एशिया और दक्षिण–पूर्व एशिया है।
- भारत में इनकी उपस्थिति मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में पाई जाती है :
- मध्य भारत
- झारखंड
- पश्चिमी घाट (केरल और कर्नाटक सहित)
- पूर्वोत्तर भारत के घने वन क्षेत्र
आवास
- गौर का प्राकृतिक निवास घने और नम वनों में होता है।
- ये सदैव हरे (Evergreen), अर्ध-सदैव हरे (Semi-evergreen) और आर्द्र पर्णपाती (Moist deciduous) वनों में निवास करते हैं।
- इन्हें घासभूमि और खुले क्षेत्र विशेष रूप से उपयुक्त लगते हैं।
- इनका प्रमुख निवास क्षेत्र प्रायः 1500–1800 मीटर से नीचे की ऊँचाई वाले पहाड़ी इलाके होते हैं।
- इन्हें निर्बाध वन क्षेत्र और पर्याप्त जलस्रोत आवश्यक रूप से चाहिए होते हैं।
संरक्षण स्थिति
- IUCN रेड लिस्ट में गौर (Bos gaurus) को संकटग्रस्त (Vulnerable) श्रेणी में शामिल किया गया है।
- साइट्स (CITES) में गौर को परिशिष्ट–I (Appendix I) में सूचीबद्ध किया गया है, जिसके तहत इसके अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कड़ा नियंत्रण लागू है।
- भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत गौर को अनुसूची–I (Schedule I) में रखा गया है, जिसके अंतर्गत इसे सर्वोच्च स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।
पारिस्थितिक महत्त्व
- गौर वनों में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।
- यह बाघ और तेंदुए जैसे शीर्ष शिकारी जीवों के लिए एक प्रमुख शिकार प्रजाति है।
- शाकाहारी होने के कारण ये वनस्पति संरचना का संतुलन बनाए रखने और बीज प्रसार (Seed dispersal) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इनके संरक्षण से संपूर्ण वन्यजीव तंत्र का स्वास्थ्य और जैव विविधता सुरक्षित रहती है।
प्रमुख खतरे
- वनों की कटाई, खनन और कृषि विस्तार के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास लगातार सिकुड़ता जा रहा है।
- अवैध शिकार और मानव अतिक्रमण से वन्यजीवों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है।
- पालतू पशुओं से रोग संक्रमण, विशेषकर रिंडरपेस्ट और फुट एंड माउथ डिज़ीज़ (FMD), वन्यजीवों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- आवासीय विखंडन के कारण वन्यजीव छोटे और अलग-थलग समूहों में सीमित हो गए हैं, जिससे उनकी आनुवंशिक विविधता घट रही है और भविष्य में उनका अस्तित्व और अधिक संकटग्रस्त हो सकता है।
प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- पलामू टाइगर रिज़र्व भारत के शुरुआती नौ टाइगर रिज़र्व में से एक है जिसे 1974 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत अधिसूचित किया गया था।
- गौर (Bos gaurus) को IUCN रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Vulnerable), साइट्स (CITES) के परिशिष्ट–I तथा भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची–I में शामिल किया गया है।
- पलामू टाइगर रिज़र्व में बहने वाली तीन प्रमुख नदियों में से केवल बुरहा (Burha) नदी ही बारहमासी है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या:
- कथन 1 सही है – पलामू टाइगर रिज़र्व देश के पहले 9 टाइगर रिज़र्व में शामिल है।
- कथन 2 सही है – गौर को IUCN में Vulnerable, CITES Appendix I और भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची–I में रखा गया है।
- कथन 3 सही है – पलामू टाइगर रिज़र्व में उत्तर कोयल, औरंगा और बुरहा नदियाँ बहती हैं, जिनमें से केवल बुरहा नदी ही बारहमासी (perennial) है।
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Topic : पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सबसे गंभीर प्रवाल विरंजन और मृत्यु दर की घटना |
चर्चा में क्यों:- अगस्त 2025 में जारी Australian Institute of Marine Science (AIMS) की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर 1,500 किमी लंबाई में अब तक की सबसे लंबी, सबसे बड़ी और सबसे तीव्र प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) घटना दर्ज की गई है। यह घटना NOAA द्वारा 2024 में घोषित चौथी वैश्विक सामूहिक विरंजन घटना का हिस्सा है और इसमें कुछ क्षेत्रों में प्रवाल मृत्यु दर 90% तक पहुंच गई है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS पेपर 3 – अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, जैव विविधता मुख्य परीक्षा: पर्यावरणीय संकट, आर्थिक प्रभाव, बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट्स, SDGs-13 (जलवायु कार्रवाई), SDGs-14 (जल के नीचे जीवन)। |
पृष्ठभूमि (Background / Context)
1.प्रवाल विरंजन की प्रक्रिया (Process of Coral Bleaching)
प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) तब होता है जब समुद्र के तापमान में असामान्य वृद्धि से प्रवाल (Corals) अपने सहजीवी सूक्ष्म शैवाल (Zooxanthellae) को बाहर निकाल देते हैं।
ये शैवाल प्रवाल को ऊर्जा और रंग प्रदान करते हैं। इनके बाहर निकलने से प्रवाल का रंग सफेद हो जाता है और वे कमजोर होकर मर सकते हैं।
यह स्थिति विशेष रूप से समुद्री उष्ण लहरों (Marine Heatwaves) और जलवायु परिवर्तन के दौरान बढ़ जाती है।
2.वैश्विक प्रवाल विरंजन घटनाएँ (Global Coral Bleaching Events)
बड़े पैमाने पर वैश्विक प्रवाल विरंजन घटनाएँ 1998, 2010, 2016 और 2024 में दर्ज की गईं।
इन घटनाओं के दौरान विभिन्न महासागरीय क्षेत्रों में करोड़ों हेक्टेयर प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित हुईं, जिससे जैव विविधता और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर असर पड़ा।
3.ऑस्ट्रेलिया के प्रवाल रीफ़ (Australia’s Coral Reefs)
ग्रेट बैरियर रीफ़ (Great Barrier Reef) और निंगालू रीफ़ (Ningaloo Reef) न केवल जैव विविधता के वैश्विक केंद्र (Biodiversity Hotspots) हैं, बल्कि ये UNESCO World Heritage Sites में भी शामिल हैं।
ये रीफ़ हजारों समुद्री प्रजातियों का घर हैं और ऑस्ट्रेलिया की समुद्री पारिस्थितिकी और पर्यटन अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
4.जलवायु परिवर्तन का खतरा (Climate Change Threat)
IPCC AR6 रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में 1.5°C की वृद्धि होती है तो दुनिया की 70–90% प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो सकती हैं।
यह आंकड़ा दर्शाता है कि कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किए बिना प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र का भविष्य गंभीर संकट में है।
हालिया घटनाक्रम (Recent Developments)
1.प्रभावित भौगोलिक क्षेत्र (Affected Geographic Extent)
यह प्रवाल विरंजन घटना पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर लगभग 1,500 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।
यह NOAA द्वारा घोषित 2024 की चौथी वैश्विक प्रवाल विरंजन घटना का हिस्सा है।
2.मुख्य प्रभावित स्थल (Key Affected Sites)
एशमोर रीफ़ (Ashmore Reef) – प्रवाल मृत्यु दर 11–30%।
राउली शोल्स (Rowley Shoals) – 61–90% प्रवाल मृत्यु दर।
निंगालू रीफ़ (Ningaloo Reef) – 60% प्रवाल मृत्यु दर, जिसमें तंताबिद्दी और जुराबी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित।
3.प्रभावित प्रजातियाँ (Species Affected)
सभी प्रमुख प्रवाल वंश प्रभावित हुए, जिनमें Acropora और Pocillopora सबसे अधिक संवेदनशील पाई गईं।
विरंजन सभी आवासों में हुआ, आश्रय वाले लैगून से लेकर 30 मीटर गहरी बाहरी रीफ़ ढलानों तक।
4.ताप तनाव माप – डिग्री हीटिंग वीक (Degree Heating Weeks – DHW)
DHW समुद्री सतह के तापमान में असामान्य वृद्धि की अवधि और तीव्रता का माप है।
सभी रीफ़्स पर 15+ DHW दर्ज किया गया।
पिलबारा रीफ़्स में यह स्तर 30 DHW तक पहुँच गया, जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार 8 DHW पर ही प्रवाल मृत्यु दर बढ़नी शुरू हो जाती है।
5.मुख्य कारण (Primary Causes)
2023–24 में समुद्र की सतह का तापमान ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक दर्ज किया गया।
AIMS के अनुसार, यह हीटवेव स्थिति 2025 तक जारी रहने की संभावना है, जिससे प्रवालों के पुनरुद्धार की संभावना कम हो रही है।
मुद्दे का महत्व (Significance of the Issue)
1. पारिस्थितिक महत्व (Ecological Importance)
प्रवाल रीफ़ (Coral Reefs) को समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का आधार (Foundation) माना जाता है।
ये समुद्री जैव विविधता के Hotspots हैं और दुनिया के 25% से अधिक समुद्री जीवों को भोजन, आश्रय और प्रजनन स्थल प्रदान करते हैं।
इनके क्षरण से पूरी समुद्री खाद्य श्रृंखला (Marine Food Chain) प्रभावित होती है।
2. आर्थिक महत्व (Economic Importance)
प्रवाल रीफ़ ऑस्ट्रेलिया की पर्यटन अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार हैं।
ग्रेट बैरियर रीफ़ और निंगालू रीफ़ जैसे स्थल हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जिससे अरबों डॉलर का राजस्व और हजारों रोजगार उत्पन्न होते हैं।
मत्स्य पालन (Fisheries) और तटीय संरक्षण (Coastal Protection) में भी इनका योगदान महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये तटीय क्षेत्रों को लहरों और तूफानों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
3. जलवायु परिवर्तन संकेतक (Climate Change Indicator)
प्रवाल विरंजन जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष और स्पष्ट संकेतक है।
समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण विरंजन घटनाएँ अधिक बार और अधिक तीव्र होती जा रही हैं, जैसा कि NOAA और AIMS के डेटा से स्पष्ट है।
यह न केवल महासागरों के स्वास्थ्य का मापदंड है, बल्कि वैश्विक जलवायु नीतियों की सफलता या विफलता का भी प्रतिबिंब है।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- कार्बन उत्सर्जन और वैश्विक तापमान वृद्धि – अंतरराष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों में धीमी प्रगति।
- पुनर्वास की लंबी अवधि – प्रवाल पुनर्स्थापन में 10–15 वर्ष लग सकते हैं।
- स्थानीय दबाव – प्रदूषण, अति-मछली पकड़ना, तटीय विकास।
- जलवायु अनिश्चितता – ला नीना और एल नीनो जैसी घटनाओं का प्रभाव।
आँकड़े और रिपोर्ट्स (Data & Reports)
- NOAA (2024) – चौथी वैश्विक प्रवाल विरंजन घटना घोषित, 54 देशों में प्रभाव।
- AIMS (2025) – पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की अधिकांश भित्तियों पर 60% से अधिक विरंजन।
- UNEP Coral Report (2023) – 1 बिलियन से अधिक लोग प्रवाल रीफ़ सेवाओं पर निर्भर।
सरकारी और अंतरराष्ट्रीय पहल (Government & International Initiatives)
- Australia’s Reef 2050 Plan – दीर्घकालिक संरक्षण रणनीति।
- Marine Protected Areas (MPAs) – पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर कई संरक्षित क्षेत्र।
- Paris Agreement – वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने का लक्ष्य।
- Global Coral Reef Monitoring Network (GCRMN) – डेटा संग्रह और साझाकरण।
अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ अभ्यास (International Best Practices)
- USA (Hawai‘i) – Coral nurseries और assisted evolution कार्यक्रम।
- Maldives – कृत्रिम रीफ़ निर्माण और पर्यटन आधारित फंडिंग।
- Japan (Okinawa) – प्रवाल प्रत्यारोपण और समुद्री तापमान मॉनिटरिंग।
संवैधानिक और नैतिक आयाम (Constitutional & Ethical Dimensions)
- अनुच्छेद 48A – पर्यावरण संरक्षण का राज्य का दायित्व।
- अनुच्छेद 51A(g) – प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे।
- नैतिक पहलू – Inter-generational Equity के सिद्धांत के तहत आने वाली पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी संरक्षण।
आगे की राह (Way Forward)
1. कार्बन उत्सर्जन में त्वरित कमी (Rapid Reduction in Carbon Emissions)
जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का तापमान बढ़ना प्रवाल विरंजन का मुख्य कारण है।
पेरिस समझौता (Paris Agreement) के लक्ष्यों के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) और हरित प्रौद्योगिकी (Green Technology) को बढ़ावा देना आवश्यक है।
ऑस्ट्रेलिया और वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना दीर्घकालिक प्रवाल संरक्षण का सबसे प्रभावी उपाय है।
2. मरीन हीटवेव पूर्वानुमान प्रणाली (Marine Heatwave Forecasting Systems)
NOAA Coral Reef Watch और Australian Institute of Marine Science (AIMS) के साथ साझेदारी कर समुद्री उष्ण लहरों (Marine Heatwaves) के लिए पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
इससे संवेदनशील प्रवाल क्षेत्रों में अग्रिम चेतावनी (Early Warning) और त्वरित प्रबंधन उपाय लागू किए जा सकेंगे।
3. प्रवाल पुनर्स्थापन परियोजनाएँ (Reef Restoration Projects)
प्रवाल नर्सरी (Coral Nurseries) और प्रत्यारोपण तकनीक (Transplantation Techniques) का विस्तार किया जाए।
Great Barrier Reef Foundation और अन्य वैश्विक संगठनों के सफल मॉडलों को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में लागू किया जा सकता है।
4. स्थानीय समुदाय की भागीदारी (Local Community Participation)
स्वदेशी रेंजर कार्यक्रम (Indigenous Ranger Programs) को मजबूत करना, ताकि स्थानीय समुदाय संरक्षण और निगरानी में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
यह न केवल संरक्षण कार्य को प्रभावी बनाता है, बल्कि स्थानीय रोजगार भी सृजित करता है।
5. वैश्विक सहयोग (Global Cooperation)
Indo-Pacific Coral Reef Collaboration जैसी संयुक्त पहलें शुरू की जाएं, जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और प्रशांत द्वीप देशों की भागीदारी हो।
संयुक्त शोध, फंडिंग और प्रौद्योगिकी साझाकरण से संरक्षण प्रयासों को गति मिल सकती है।
Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में दर्ज 2025 की प्रवाल विरंजन घटना अब तक की सबसे लंबी और तीव्र मानी गई है, जो NOAA द्वारा घोषित चौथी वैश्विक सामूहिक विरंजन घटना का हिस्सा है।
- निंगालू रीफ़ (Ningaloo Reef) में प्रवाल मृत्यु दर 90% से अधिक दर्ज की गई है, जबकि राउली शोल्स (Rowley Shoals) अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुए।
- डिग्री हीटिंग वीक (Degree Heating Weeks – DHW) समुद्री सतह के तापमान में असामान्य वृद्धि की अवधि और तीव्रता का माप है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c) केवल 1 और 3
व्याख्या:
- कथन 1 सही है – AIMS (2025) की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में 1,500 किमी लंबाई तक फैली यह अब तक की सबसे बड़ी और तीव्र प्रवाल विरंजन घटना है और यह NOAA (2024) की चौथी वैश्विक विरंजन घटना का हिस्सा है।
- कथन 2 गलत है – निंगालू रीफ़ में लगभग 60% मृत्यु दर दर्ज की गई, जबकि राउली शोल्स में 61–90% प्रवाल मृत्यु दर पाई गई, अर्थात राउली शोल्स अधिक प्रभावित हुए।
- कथन 3 सही है – DHW तापमान में असामान्य वृद्धि की अवधि और तीव्रता को मापने का पैमाना है, और 8 DHW के बाद ही प्रवाल मृत्यु दर बढ़नी शुरू हो जाती है।
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Topic : सुलावेसी द्वीप पर 1.48 मिलियन वर्ष पुराने वालेसियन मानव औजारों की खोज |
चर्चा में क्यों:- अगस्त 2025 में Nature पत्रिका में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर 1.48 मिलियन वर्ष पुराने पत्थर के औजार खोजे हैं।
ये खोज वालेसिया क्षेत्र में सबसे प्राचीन मानव उपस्थिति का प्रमाण हो सकती है और मानव प्रवास के पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती देती है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS पेपर 1 – इतिहास और संस्कृति मुख्य परीक्षा: विश्व इतिहास (World History) – मानव विकास (Human Evolution) और प्रवास के पैटर्न में बदलाव,कला और संस्कृति – प्रारंभिक मानवों की कलाकृतियाँ और उनका सांस्कृतिक महत्व। |
पृष्ठभूमि (Background / Context)
1.वालेसिया क्षेत्र का परिचय
वालेसिया पूर्वी इंडोनेशिया का एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें सुलावेसी, लोम्बोक, फ्लोरेस, तिमोर और सुंबावा जैसे द्वीप शामिल हैं।
यह क्षेत्र बोर्नियो और जावा तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यू गिनी के बीच स्थित है।
इसका नाम प्रसिद्ध ब्रिटिश प्रकृतिवादी अल्फ्रेड रसेल वालेस के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस क्षेत्र की जैव विविधता (Biodiversity) पर गहन शोध किया था।
2.मानव प्रवास से जुड़ी पुरानी मान्यताएँ
वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक यह माना जाता था कि सबसे प्राचीन वालेसियन मानव — होमो इरेक्टस — लगभग 1.02 मिलियन वर्ष पूर्व इंडोनेशिया के फ्लोरेस और फिलीपींस के लूजोन द्वीप तक पहुँचे थे।
उस समय का प्रमुख मत यह था कि होमो इरेक्टस में लंबी दूरी की समुद्री यात्रा करने की क्षमता नहीं थी, इसलिए उनका विस्तार केवल नज़दीकी द्वीपों तक सीमित रहा।
हालिया घटनाक्रम (Recent Developments)
1.स्थान और खोज
यह खोज दक्षिण सुलावेसी के सोपेंग क्षेत्र में की गई।
पुरातत्वविदों को मिट्टी के भीतर छोटे और टूटे-फूटे पत्थर के औजार मिले, जो प्रारंभिक मानव द्वारा निर्मित प्रतीत होते हैं।
2.औजारों का संभावित उपयोग
इन पत्थर के औजारों का इस्तेमाल:
छोटे जानवरों को काटने के लिए।
चट्टानों को तराशने और आकार देने के लिए।
औजारों की बनावट और उपयोगिता प्रारंभिक होमो इरेक्टस की तकनीकी क्षमताओं को दर्शाती है।
3.दिनांक निर्धारण (Dating Process)
औजारों और समीप पाए गए जानवरों के दाँतों का रेडियोधर्मी (रेडियोमेट्रिक) विश्लेषण किया गया।
परिणामों के अनुसार इनकी आयु लगभग 14.8 लाख वर्ष (1.48 मिलियन वर्ष) है।
4.महत्त्व और प्रभाव
यह खोज बताती है कि होमो इरेक्टस कम से कम 10 लाख वर्ष पहले एशियाई मुख्य भूमि से समुद्री अंतराल (Sea Gap) पार कर सुलावेसी पहुँचे होंगे।
यह मानव प्रवास के पुराने सिद्धांत को चुनौती देती है, जिसमें माना जाता था कि प्रारंभिक मानव लंबी दूरी की समुद्री यात्रा नहीं कर सकते थे।
यह खोज दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच मानव विस्तार की समयरेखा को पुनर्लेखित कर सकती है।
मुद्दे का महत्व (Significance of the Issue)
1. मानव प्रवास के सिद्धांत में बदलाव (Change in Theories of Human Migration)
अब तक के शोध के अनुसार, प्रारंभिक मानव होमो इरेक्टस को लंबी दूरी की समुद्री यात्रा करने में सक्षम नहीं माना जाता था।
सुलावेसी की यह खोज दर्शाती है कि समुद्री यात्रा की क्षमता कम से कम 10 लाख वर्ष पहले विकसित हो चुकी थी।
इससे मानव प्रवास के पारंपरिक सिद्धांतों में बदलाव की संभावना है, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के द्वीपों तक पहुँचने के तरीकों को लेकर।
2. पुरातत्व और मानव विज्ञान में योगदान (Contribution to Archaeology & Anthropology)
यह खोज मानव विज्ञान (Anthropology) और पुरातत्व (Archaeology) के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करती है।
दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच मानव प्रसार की समयरेखा पुनर्लेखित हो सकती है।
यह अध्ययन मानव विकास, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय अनुकूलन क्षमता के बारे में नई जानकारी देता है।
3. वालेसिया क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता (Historical Importance of Wallacea)
वालेसिया क्षेत्र पहले से ही अपनी जैव विविधता (Biodiversity Hotspot) के लिए प्रसिद्ध है।
अब यह मानव विकास और प्रवास अध्ययन का भी केंद्र बनता जा रहा है।
यह खोज वालेसिया को वैश्विक पुरातत्व मानचित्र पर और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
1. साक्ष्यों की प्रामाणिकता (Authenticity of Evidence)
पुरातत्व में किसी भी खोज की वैज्ञानिक विश्वसनीयता उसकी आयु-निर्धारण तकनीकों की सटीकता पर निर्भर करती है।
रेडियोमेट्रिक या आइसोटोप डेटिंग में नमूनों की स्थिति, संदूषण (Contamination) और प्रयोगशाला मानकों में अंतर के कारण त्रुटि संभव है।
शोध के निष्कर्षों की पुष्टि के लिए मल्टी-मेथड डेटिंग (Multi-method dating) आवश्यक है।
2. खोज का संरक्षण (Preservation of Findings)
खुले वातावरण में पड़ी पत्थर की कलाकृतियाँ और हड्डियों के अवशेष समय के साथ मौसम, नमी और जैविक क्षरण से खराब हो सकते हैं।
इन स्थलों के लिए साइट-विशिष्ट संरक्षण योजनाएँ (Site-specific conservation plans) जरूरी हैं, जैसा कि UNESCO की सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण गाइडलाइंस में बताया गया है।
3. सीमित खुदाई संसाधन (Limited Excavation Resources)
सुलावेसी जैसे दूरस्थ द्वीपों में भूगोल कठिन, मौसम अनिश्चित और बुनियादी ढाँचा सीमित है।
पर्याप्त वित्तीय संसाधन, प्रशिक्षित पुरातत्वविदों की उपलब्धता और आधुनिक खुदाई उपकरणों का अभाव शोध की गति को धीमा करता है।
4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग (Need for International Collaboration)
वालेसिया क्षेत्र की प्राचीन खोजें वैश्विक मानव इतिहास से जुड़ी हैं, इसलिए इनके अध्ययन में बहु-देशीय भागीदारी आवश्यक है।
विभिन्न देशों के बीच डेटा शेयरिंग, तकनीकी प्रशिक्षण और संयुक्त खुदाई मिशन इस क्षेत्र के अनुसंधान को गति दे सकते हैं।
आँकड़े और रिपोर्ट्स (Data & Reports)
- UNESCO – दक्षिण-पूर्व एशिया में 25 से अधिक पुरातात्विक स्थल विश्व धरोहर सूची में हैं, लेकिन वालेसिया के अधिकांश स्थल सूचीबद्ध नहीं हैं।
- Australian Archaeological Association (2025) – समुद्री यात्रा के प्रारंभिक साक्ष्य 1.3–1.5 मिलियन वर्ष पुराने हो सकते हैं।
सरकारी और अंतरराष्ट्रीय पहल (Government & International Measures)
- UNESCO World Heritage Nomination – वालेसिया क्षेत्र के संभावित स्थलों को नामांकित करने की प्रक्रिया।
- इंडोनेशिया सरकार की Cultural Heritage Act – प्राचीन स्थलों की कानूनी सुरक्षा।
- Australia–Indonesia Archaeological Cooperation Agreement – संयुक्त खुदाई और प्रशिक्षण कार्यक्रम।
अंतरराष्ट्रीय तुलना (International Best Practices)
- अफ्रीका – ओल्डुवई गॉर्ज (तंजानिया) – लाखों वर्ष पुराने मानव औजारों का संरक्षण और सार्वजनिक प्रदर्शन।
- फ्रांस – लास्कॉ गुफा – प्राचीन कलाकृतियों की डिजिटल प्रतिकृतियों द्वारा संरक्षण और शोध।
नैतिक और शैक्षणिक आयाम (Ethical & Educational Dimensions)
- मानवता की साझा विरासत – ऐसे स्थलों का संरक्षण केवल किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी मानव सभ्यता की जिम्मेदारी है।
- शिक्षा में समावेश – इन खोजों को मानव विकास के वैश्विक पाठ्यक्रम में शामिल करना।
आगे की राह (Way Forward)
1. संरक्षण तकनीकों का विकास (Development of Preservation Techniques)
प्रत्येक पुरातात्विक स्थल की भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ अलग होती हैं, इसलिए स्थल-विशिष्ट संरक्षण योजनाएँ (Site-specific Conservation Plans) बनानी होंगी।
UNESCO World Heritage Centre के दिशानिर्देशों के अनुसार, तापमान नियंत्रण, नमी प्रबंधन, और जैविक क्षरण रोकने वाली तकनीकें अपनाई जानी चाहिए।
2. अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क (International Research Networks)
सुलावेसी जैसी खोजें वैश्विक मानव इतिहास से जुड़ी हैं, इसलिए बहु-देशीय शोध नेटवर्क की आवश्यकता है।
UNESCO Convention on Cultural Heritage और International Council on Monuments and Sites (ICOMOS) जैसे मंचों के माध्यम से संयुक्त समुद्री यात्रा अध्ययन और मानव प्रवास अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सकता है।
3. स्थानीय समुदाय की भागीदारी (Local Community Involvement)
स्थानीय निवासियों को संरक्षण कार्य और सांस्कृतिक पर्यटन (Cultural Tourism) में भागीदार बनाकर न केवल जागरूकता बढ़ेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
UNDP Community-based Tourism Models दर्शाते हैं कि स्थानीय भागीदारी से धरोहर स्थलों की सुरक्षा और आर्थिक विकास दोनों संभव होते हैं।
4. डिजिटल आर्काइविंग (Digital Archiving)
कलाकृतियों का 3D स्कैन, हाई-रिज़ॉल्यूशन फोटोग्राफी, और वर्चुअल रियलिटी टूर तैयार करके उन्हें वैश्विक शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।
Google Arts & Culture और CyArk जैसे प्लेटफॉर्म इस तरह के डिजिटल संरक्षण में सफल उदाहरण हैं।
प्रश्न: हाल ही में समाचारों में उल्लेखित सुलावेसी द्वीप पर 1.48 मिलियन वर्ष पुराने पत्थर के औजारों की खोज के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- यह खोज इंडोनेशिया के वालेसिया क्षेत्र में की गई है, जो बोर्नियो और जावा तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यू गिनी के बीच स्थित है।
- इन औजारों की आयु का निर्धारण रेडियोमेट्रिक तकनीक द्वारा किया गया है, जिसके अनुसार इनकी आयु लगभग 1.48 मिलियन वर्ष है।
- यह खोज मानव प्रवास के पारंपरिक सिद्धांत को चुनौती देती है, जिसमें प्रारंभिक मानवों (होमो इरेक्टस) को लंबी दूरी की समुद्री यात्रा करने में अक्षम माना जाता था।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या:
- कथन 1 सही है – वालेसिया क्षेत्र में सुलावेसी द्वीप बोर्नियो और जावा तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यू गिनी के बीच स्थित है।
- कथन 2 सही है – औजारों और समीप मिले जीव-जंतुओं के अवशेष का रेडियोमेट्रिक विश्लेषण किया गया, जिससे इनकी आयु लगभग 1.48 मिलियन वर्ष तय हुई।
- कथन 3 सही है – यह खोज संकेत देती है कि प्रारंभिक मानव (होमो इरेक्टस) समुद्री अंतराल पार कर सुलावेसी पहुँचे होंगे, जो पारंपरिक प्रवास सिद्धांत को चुनौती देता है।