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Topic : प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 |
चर्चा में क्यों :
- प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PM Internship Scheme) के दूसरे पायलट राउंड में महिला आवेदकों की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
- पहले राउंड में कुल आवेदकों में महिलाओं की हिस्सेदारी 31% थी, वहीं दूसरे राउंड में यह बढ़कर 41% हो गई है।
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UPSC पाठ्यक्रम:
मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन II: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप तथा उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 के बारे में :
- प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है, जिसका मुख्य उद्देश्य देश के युवाओं को देश की शीर्ष 500 कंपनियों में व्यावहारिक प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) का अवसर देना है।
- इस योजना के माध्यम से सरकार युवाओं को उद्योग की जरूरत के अनुसार तैयार करना चाहती है, जिससे वे भविष्य में रोजगार के लिए अधिक सक्षम बन सकें।
- संचालित मंत्रालय: कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs)
योजना की शुरुआत कब हुई?
- यह योजना वित्त वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में घोषित की गई थी।
- पायलट चरण की शुरुआत अक्टूबर 2024 में की गई थी, जिसमें देश भर के युवाओं को इंटर्नशिप के लिए आवेदन का अवसर दिया गया।
- योजना का दूसरा राउंड जनवरी 2025 में शुरू किया गया हैं , इस राउंड की पंजीकरण प्रक्रिया अगस्त 2025 से प्रारंभ की गई है।
योजना का उद्देश्य
- युवाओं को कॉर्पोरेट सेक्टर की मांग के अनुसार तैयार करना।
- देश के नवोदित प्रतिभाओं को व्यावहारिक (practical) अनुभव देना।
- कौशल निर्माण और रोजगार क्षमता बढ़ाना।
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 की प्रमुख विशेषताएँ
पात्रता (Eligibility)
- इस योजना के लिए केवल भारतीय नागरिक आवेदन कर सकते हैं।
- आवेदन करने वाले उम्मीदवार की आयु 21 से 24 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
- न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कक्षा 10वीं या 12वीं, डिप्लोमा या किसी भी विषय में स्नातक डिग्री होना आवश्यक है।
- यदि अभ्यर्थी किसी प्रमुख संस्थान (जैसे IIT, IIM, NLU, CA, MBA, MBBS, PhD) से उच्च डिग्री प्राप्त कर चुके हैं तो वे पात्र नहीं माने जाएंगे।
- जिन परिवारों की वार्षिक आय ₹8 लाख से अधिक है या घर में कोई नियमित सरकारी कर्मचारी है, वे योजना के लिए पात्र नहीं होंगे।
इंटर्नशिप की अवधि और लाभ
- इंटर्नशिप की अवधि अधिकतम 12 महीने (1 वर्ष) की होगी।
- प्रत्येक इंटर्न को प्रतिमाह ₹4,500 सरकार द्वारा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से दिए जाएंगे।
- कंपनी की सीएसआर निधि से प्रत्येक इंटर्न को अतिरिक्त ₹500 प्रतिमाह मिलेंगे।
- प्रत्येक चयनित इंटर्न को एक बार में ₹6,000 अतिरिक्त अनुदान (incidentals) के रूप में दिया जाएगा।
- इंटर्नशिप के दौरान सभी इंटर्न को बीमा सुरक्षा भी प्रदान की जाएगी।
- इंटर्नशिप पूर्ण होने पर प्रमाण-पत्र (Certificate) भी मिलेगा, जो आगे रोजगार में मददगार होगा।
आवेदन की प्रक्रिया
- इच्छुक अभ्यर्थी आधिकारिक पोर्टल pminternship.mca.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
- आवेदन के लिए अभ्यर्थी को आधार नंबर, शैक्षिक विवरण, पारिवारिक आय और अन्य आवश्यक जानकारी भरनी होती है।
- चयन प्रक्रिया के दौरान, उम्मीदवार अपनी पसंद के अनुसार कंपनियों, स्थान और कार्यक्षेत्र का चयन कर सकते हैं।
- चयनित उम्मीदवारों को कंपनियों का नाम, प्रोफाइल और जियो-टैग्ड लोकेशन की पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है।
बजट और आंकड़े
- वित्त वर्ष 2024-25 में योजना के लिए ₹2,000 करोड़ का बजट प्रस्तावित था, जो संशोधित होकर ₹380 करोड़ रह गया और वास्तविक खर्च फरवरी 2025 तक मात्र ₹21.10 करोड़ था।
- 2025-26 में योजना के बजट को बढ़ाकर ₹10,831.07 करोड़ कर दिया गया है।
- दूसरे राउंड में 4.55 लाख से अधिक आवेदन आए, 71,000 से अधिक ऑफर किए गए, जिसमें 22,500 से अधिक अभ्यर्थियों ने ऑफर स्वीकार किए और चयन प्रक्रिया जारी है।
- पहले राउंड में 6.21 लाख आवेदन आए थे, 82,000 ऑफर दिए गए, लेकिन केवल 8,700 अभ्यर्थियों ने जॉइनिंग की थी।
भाग लेने वाली कंपनियाँ
- प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 में कई नामी कॉर्पोरेट कंपनियाँ भाग ले रही हैं, जैसे:
- रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड
- टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड (TCS)
- एचडीएफसी बैंक लिमिटेड
- ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ONGC)
- इन्फोसिस लिमिटेड
- एनटीपीसी लिमिटेड
- टाटा स्टील लिमिटेड
- आईटीसी लिमिटेड
- इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL)
- आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड
- पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
- टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड
- विप्रो लिमिटेड
- एचसीएल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड
- हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड
- जूबिलेंट फूडवर्क्स, ईचर मोटर्स, लार्सन एंड टुब्रो, टेक महिंद्रा, महिंद्रा एंड महिंद्रा, बजाज फाइनेंस, मुथूट फाइनेंस आदि
पीएम इंटर्नशिप योजना 2025: महिला आवेदकों की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि
पहले राउंड की स्थिति
- योजना के पहले पायलट राउंड में केवल 31% महिला आवेदकों ने आवेदन किया था।
- चयनित इंटर्न में महिलाओं का प्रतिशत मात्र 28% था।
- पुरुष और महिला इंटर्न का अनुपात 72:28 रहा, जिसे संसद की स्थायी वित्त समिति ने एक बड़ी चिंता के रूप में चिन्हित किया।
दूसरे राउंड की स्थिति
- योजना के दूसरे पायलट राउंड में महिला आवेदकों की हिस्सेदारी बढ़कर 41% हो गई है, जो पिछले राउंड के मुकाबले 10% अधिक है।
- चयन प्रक्रिया अभी जारी है, लेकिन उम्मीद है कि इंटर्न के रूप में चयनित महिलाओं का प्रतिशत भी बढ़ेगा।
- यह बढ़ोतरी मुख्यतः कंपनियों के नाम, प्रोफाइल और भौगोलिक स्थान की पूर्व जानकारी साझा करने की वजह से संभव हुई है।
योजना की चुनौतियाँ और सरकार द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदम
प्रमुख चुनौतियाँ
(A) लैंगिक असंतुलन
- योजना के पहले चरण में महिला इंटर्न की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही। कुल आवेदकों में महिलाओं की भागीदारी केवल 31% और चयनित इंटर्न में मात्र 28% थी।
- इससे पुरुष और महिला इंटर्न का अनुपात 72:28 हो गया, जिसे संसद की स्थायी वित्त समिति ने प्रमुख चिंता के रूप में रेखांकित किया।
(B) इंटर्नशिप अवसर और भागीदारी में अंतर
- कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराए गए इंटर्नशिप अवसरों की तुलना में बहुत कम युवाओं ने वास्तव में जॉइनिंग की।
- उदाहरण के लिए, पहले राउंड में 82,000 ऑफर दिए गए थे, लेकिन केवल 8,700 युवाओं ने जॉइनिंग की थी। इसका मुख्य कारण जानकारी की कमी, इंटर्नशिप की अवधि और स्थान से जुड़ी पारदर्शिता की कमी भी रही।
(C) फंड्स का कम उपयोग
- वित्त वर्ष 2024-25 के लिए योजना का बजट ₹2,000 करोड़ था, लेकिन संशोधित अनुमान घटकर ₹380 करोड़ रह गया और फरवरी 2025 तक वास्तविक व्यय मात्र ₹21.10 करोड़ हुआ।
- यह बताता है कि योजना के तहत उपलब्ध फंड्स का अपेक्षाकृत कम उपयोग हुआ है, जिससे युवाओं को मिलने वाले लाभ सीमित हो गए।
(D) रोजगार में रूपांतरण दर कम
- योजना के तहत इंटर्नशिप पूर्ण करने के बाद भी स्थायी रोजगार प्राप्त करने वाले युवाओं की संख्या बहुत कम रही है।
- संसद समिति ने इसे योजना की सफलता का प्रमुख मापदंड मानते हुए, इस दिशा में विशेष ध्यान देने की सिफारिश की है।
(E) पात्रता मानदंड की कठोरता
- योजना में ऐसे परिवार, जिनकी वार्षिक आय ₹8 लाख से अधिक है या जिनके परिवार में कोई नियमित सरकारी कर्मचारी है, उन्हें पात्रता से बाहर कर दिया गया है।
- संसद की स्थायी समिति ने इसे अनुचित मानते हुए, समीक्षा की सिफारिश की है, क्योंकि कई सरकारी कर्मचारी परिवारों की आय ₹8 लाख से कम भी हो सकती है, लेकिन वे इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदम
(A) महिला भागीदारी बढ़ाने के प्रयास
- सरकार ने कंपनियों का नाम, प्रोफाइल और इंटर्नशिप स्थान (जियो-टैग्ड लोकेशन) की पूरी जानकारी पारदर्शिता के साथ उपलब्ध कराई।
- इसके परिणामस्वरूप, दूसरे राउंड में महिला आवेदकों की भागीदारी बढ़कर 41% हो गई है, जो पहले की तुलना में 10% अधिक है।
(B) पारदर्शिता और जानकारी में सुधार
- आवेदकों को अब इंटर्नशिप के स्थान, कंपनियों की प्रोफाइल और अतिरिक्त लाभों की जानकारी आवेदन के समय ही उपलब्ध कराई जाती है।
- इससे उम्मीदवार अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार ऑफर स्वीकार कर सकते हैं।
(C) फंड उपयोग और मॉनिटरिंग
- योजना के लिए राज्य सरकारों को निगरानी हेतु डैशबोर्ड उपलब्ध कराए गए हैं।
- इसके साथ ही, निरंतर फीडबैक सर्वे और मूल्यांकन के माध्यम से योजना के प्रभाव और फंड के उपयोग की समीक्षा की जा रही है।
(D) पात्रता मानदंड की समीक्षा
- संसद समिति की सिफारिश के बाद, पात्रता संबंधी कठोरताओं को दूर करने और जरूरतमंद, वंचित वर्गों के लिए छूट या लचीलापन लाने पर विचार चल रहा है, ताकि अधिक से अधिक युवा योजना का लाभ उठा सकें।
(E) रोजगार रूपांतरण पर फोकस
- सरकार ने संसद समिति की सिफारिशों के अनुसार इंटर्नशिप से स्थायी रोजगार में रूपांतरण को योजना की सफलता का प्रमुख मानक मानने का निर्णय लिया है और इसके लिए मॉनिटरिंग सिस्टम को और मजबूत किया जा रहा है।
संसद समिति की प्रमुख सिफारिशें
- इंटर्नशिप से रोजगार में रूपांतरण दर को सफलता का मुख्य मानक माना जाए।
- वंचित और कमजोर वर्ग के लिए पात्रता मानदंडों में लचीलापन बरता जाए।
- स्कीम के बजट का समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन किया जाए ताकि योजना का विस्तार और क्रियान्वयन कुशलतापूर्वक हो सके।
- योजना की निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए स्वतंत्र मूल्यांकन कराए जाएं।
- इंटर्नशिप कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप डिजाइन किया जाए।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
- यूएसए: National Internship Programs में स्किल्स ट्रेनिंग के साथ ‘इंटर्न-टू-एम्प्लॉयमेंट’ मॉडल को अपनाया गया है, जिससे प्लेसमेंट दर अधिक है।
- यूनाइटेड किंगडम: “Apprenticeship Levy” के तहत कंपनियों को प्रशिक्षु नियुक्ति के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है।
- जापान: उद्योग-शिक्षा सहयोग (Industry-Academia Collaboration) से पाठ्यक्रम लगातार अपडेट होते हैं, जिससे युवाओं को रोजगार-उन्मुख स्किल्स मिलती हैं।
संवैधानिक एवं नैतिक पहलू
- प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 वंचित, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और महिलाओं को अवसर देकर संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) की भावना को मजबूत करती है।
- अनुच्छेद 16 के अनुसार सार्वजनिक रोजगार और प्रशिक्षण के अवसर सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मिलना चाहिए, जिसे यह योजना सुनिश्चित करती है।
- सरकार, प्रशासन, कंपनियों और समाज का नैतिक दायित्व है कि वे युवाओं को सम्मानजनक, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण कार्य अनुभव प्रदान करें।
- सामाजिक न्याय की दृष्टि से अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, दिव्यांग और अन्य वंचित समूहों को आरक्षण या विशेष सहायता देना जरूरी है।
- अनुच्छेद 41 के तहत राज्य का दायित्व है कि वह शिक्षा, कौशल विकास और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को आगे बढ़ाए, जिसे यह योजना पूरा करने का प्रयास करती है।
आगे की राह
- योजना में महिला आवेदकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए लगातार जागरूकता और प्रोत्साहन अभियान चलाए जाएं।
- इंटर्नशिप के बाद रोजगार में रूपांतरण दर बढ़ाने के लिए कंपनियों को टारगेट आधारित प्लेसमेंट देने के लिए बाध्य किया जाए।
- पात्रता मानदंडों में लचीलापन लाकर आर्थिक रूप से कमजोर, सरकारी कर्मचारी परिवारों के छात्रों को शामिल किया जाए।
- फंड के कुशल उपयोग और पारदर्शिता के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग डैशबोर्ड और स्वतंत्र ऑडिट सुनिश्चित किया जाए।
- राज्य और स्थानीय निकायों को योजना के क्रियान्वयन और निगरानी में सक्रिय रूप से जोड़ा जाए।
- इंटर्नशिप से पहले छात्रों को स्किल अपग्रेडेशन और करियर काउंसलिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
- प्रशिक्षण के दौरान सॉफ्ट स्किल्स, डिजिटल लिटरेसी, इंग्लिश कम्युनिकेशन और वर्कप्लेस एथिक्स पर विशेष ध्यान दिया जाए।
- हर स्तर पर पारदर्शिता के लिए सार्वजनिक रिपोर्टिंग और स्वतंत्र मूल्यांकन एजेंसियों की नियुक्ति की जाए।
- इंटर्नशिप स्थल पर महिला सुरक्षा, बीमा, हेल्पलाइन और मनोवैज्ञानिक सहायता जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएं।
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प्रश्न :प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना 2025 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- इस योजना के तहत केवल उन्हीं अभ्यर्थियों को पात्र माना जाता है जिनकी पारिवारिक आय ₹8 लाख से कम है और परिवार में कोई भी नियमित सरकारी कर्मचारी नहीं है।
- योजना के दूसरे पायलट राउंड में महिला आवेदकों की हिस्सेदारी 41% हो गई है, जो पहले राउंड से अधिक है।
- इस योजना के तहत चयनित इंटर्न को सरकार की ओर से प्रतिमाह ₹10,000 वजीफा दिया जाता है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) सभी 1, 2 और 3
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या:
- तीसरा कथन गलत है क्योंकि सरकार द्वारा प्रतिमाह ₹4,500 और कंपनी के सीएसआर से ₹500, कुल ₹5,000 प्रतिमाह वजीफा मिलता है, ₹10,000 नहीं।
- बाकी दोनों कथन योजना की शर्तों और महिला भागीदारी के आंकड़ों के अनुसार सही हैं।
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Topic : राज्यसभा रिपोर्ट: भारत में मनी लॉन्ड्रिंग की गंभीर स्थिति |
चर्चा में क्यों:- हाल ही में राज्यसभा में प्रस्तुत वित्त मंत्री की रिपोर्ट ने भारत में मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) के मामलों की गंभीर स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 2015 से अब तक 5,892 मामले दर्ज किए हैं, लेकिन दोषसिद्धि मात्र 15 मामलों में हुई है। यह स्थिति न केवल कानून के क्रियान्वयन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है, बल्कि देश की आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS3 अर्थव्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा। मुख्य परीक्षा: अवैध धन प्रवाह, आतंकी वित्तपोषण, आर्थिक प्रभाव। |
पृष्ठभूमि (Background / Context)
1.भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act – PMLA) 2002
भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act – PMLA) 2002 को लागू करने का मुख्य उद्देश्य अपराध से अर्जित आय को वैध रूप में बदलने की प्रक्रिया को रोकना और ऐसी संपत्ति को जब्त करना है। यह अधिनियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया गया, विशेषकर:
संयुक्त राष्ट्र का 1990 राजनीतिक घोषणापत्र (Political Declaration 1990)
वैश्विक कार्य कार्यक्रम (Global Programme against Money Laundering)
2.PMLA 2002 का उद्देश्य
अपराध से अर्जित धन पर रोक – अवैध रूप से प्राप्त धन को वैध संपत्ति में परिवर्तित करने की गतिविधियों की पहचान और रोकथाम।
संपत्ति की जब्ती और कुर्की – यदि यह सिद्ध हो जाए कि संपत्ति अपराध से अर्जित है, तो उसे कुर्क या जब्त किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मानक – भारत ने FATF और UN Conventions के अनुरूप इस कानून को कड़ा बनाया है।
3.धारा 3 की परिभाषा
धारा 3 के अनुसार, धन शोधन (Money Laundering) का अर्थ है:
अपराध की आय को छुपाना
अपने पास रखना, अर्जित या उपयोग करना
अवैध धन को वैध संपत्ति के रूप में प्रस्तुत करना या वैध होने का दावा करना
इसका स्पष्ट उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति अपराध से कमाए धन को सिस्टम में घुमाकर सफेद न कर सके।
4.सबूत का भार और ECIR
सबूत का भार (Burden of Proof) अभियुक्त पर होता है, यानी अभियुक्त को ही साबित करना होगा कि उसकी संपत्ति वैध है।
प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) ही कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त है, FIR की आवश्यकता नहीं।
सुप्रीम कोर्ट – वीर भद्र सिंह बनाम ED (2017): ECIR एक आंतरिक दस्तावेज है और PMLA के अंतर्गत जांच प्रारंभ करने के लिए पर्याप्त है।
हालिया घटनाक्रम (Recent Developments)
1.वित्त मंत्री की रिपोर्ट (2025)
वित्त मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में अवगत कराया कि 1 जनवरी 2015 से 30 जून 2025 तक 5,892 मामले PMLA के अंतर्गत प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उठाए गए।
इन मामलों में से 1,398 अभियोजन शिकायतें (Prosecution Complaints), जिसमें 353 अतिरिक्त चार्जशीटें, विशेष अदालतों में दाखिल की गईं। इन शिकायतों में से केवल 300 मामलों में चार्जशीट पर आरोप तय किए गए गए हैं।
कुल 8 मामलों में दोषसिद्धि हुई, जिनमें 15 व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया, अर्थात् सिर्फ 0.1% conviction rate।
2.सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले (Landmark Judgments)
विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022): न्यायालय ने स्पष्ट किया कि PMLA की धारा 3 के अंतर्गत अभियोजन शुरू करने के लिए उस अपराध का अनुसूचित अपराध के रूप में पंजीकरण आवश्यक है। हालांकि, धारा 5 के अनुसार संपत्ति कुर्की शुरू करने में इस पूर्व-पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
पी. चिदंबरम बनाम ED (2019): सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि मनी लॉन्ड्रिंग न केवल अपराध की आय को वैध रूप से प्रस्तुत करती है, बल्कि यह देश की संप्रभुता और आर्थिक स्थिरता पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डालती है।
मनी लॉन्ड्रिंग की प्रक्रिया (Stages of Money Laundering)
धन शोधन (Money Laundering) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अपराध से प्राप्त अवैध धन को वित्तीय प्रणाली में डालकर, कई लेनदेन और निवेशों के माध्यम से उसे वैध दिखाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर, FATF (Financial Action Task Force) और PMLA 2002 इस प्रक्रिया को तीन प्रमुख चरणों में परिभाषित करते हैं।
1. Placement (प्लेसमेंट)
परिभाषा: यह पहला चरण है, जिसमें अपराध से अर्जित नकदी को वित्तीय प्रणाली (banking system) में डाला जाता है।
प्रक्रिया:
अवैध नकद को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर जमा करना, जिसे Smurfing कहा जाता है।
नकद को मनी एक्सचेंज, कैसिनो, शेल कंपनियों या फ्रंट बिज़नेस के माध्यम से बैंकिंग सिस्टम में डालना।
उदाहरण:
₹50 लाख नकद को ₹50,000 के छोटे-छोटे डिपॉजिट में विभिन्न खातों में जमा करना।
2. Layering (लेयरिंग)
परिभाषा: इस चरण में अपराध से आए धन को जटिल और बहुस्तरीय लेनदेन के माध्यम से घुमाया जाता है ताकि उसके मूल स्रोत को छुपाया जा सके।
प्रक्रिया:
विभिन्न बैंक खातों, विदेशी खातों और निवेशों के माध्यम से धन को कई बार ट्रांसफर करना।
फर्जी इनवॉइस, ओवर-इनवॉइसिंग/अंडर-इनवॉइसिंग, और क्रिप्टोकरेंसी या गोल्ड जैसे पोर्टेबल एसेट्स में ट्रांसफर।
उदाहरण:
भारत से धन को दुबई, फिर सिंगापुर, और फिर मॉरिशस के शेल अकाउंट्स में ट्रांसफर करना।
3. Integration (एकीकरण)
परिभाषा: अंतिम चरण में, अवैध धन को वैध आय के रूप में वित्तीय और आर्थिक प्रणाली में वापस लाया जाता है।
प्रक्रिया:
अचल संपत्ति, होटल, मॉल, स्टार्टअप या स्टॉक मार्केट में निवेश।
शेयर होल्डिंग, फिक्स्ड एसेट्स और वैध बिज़नेस प्रॉफिट के रूप में धन को प्रस्तुत करना।
उदाहरण:
विदेश से लौटे अवैध धन को भारत में किसी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट या लक्जरी होटल में निवेश करना।
Placement → Layering → Integration की यह पूरी प्रक्रिया मनी लॉन्ड्रिंग का मूल आधार है।
इस चक्र के पूर्ण होते ही, अपराध का धन कानूनी रूप से वैध दिखने लगता है, जिससे उस पर कार्यवाही करना कठिन हो जाता है।
FATF और PMLA के अंतर्गत इन चरणों की निगरानी और ट्रैकिंग सबसे अहम है।
मनी लॉन्ड्रिंग से उत्पन्न चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- कम दोषसिद्धि दर: 5,892 मामलों में से केवल 15 में दोषसिद्धि।
- कानून का दुरुपयोग: राजनीतिक रूप से प्रेरित जांच और संपत्ति कुर्की।
- आर्थिक और मौद्रिक अस्थिरता: अवैध धन प्रवाह से मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है और मुद्रास्फीति प्रभावित होती है।
- आतंकी वित्तपोषण: मनी लॉन्ड्रिंग का सीधा संबंध आतंकी गतिविधियों से है (FATF)।
आँकड़े और रिपोर्ट (Data & Reports)
- FATF: मनी लॉन्ड्रिंग वैश्विक GDP का लगभग 2–5% प्रभावित कर सकती है।
- ED की रिपोर्ट (2025): 5,892 मामले, 49 बंद रिपोर्ट, 0.1% conviction rate।
- विश्व बैंक: अवैध वित्तीय प्रवाह से विकासशील देशों को वार्षिक अरबों डॉलर का नुकसान।
सरकारी पहल और अंतरराष्ट्रीय सहयोग (Government Measures / Schemes)
1.PMLA संशोधन 2019 और 2023:
अनुसूचित अपराधों की सूची बढ़ाई गई।
अंतरराष्ट्रीय सूचना साझा करने की प्रक्रिया तेज़ की गई।
2.DTAA (Double Taxation Avoidance Agreement):
भारत ने 85 देशों से समझौता किया।
सूचना आदान-प्रदान के माध्यम से ट्रांसनेशनल अवैध लेनदेन पर रोक।
3.FATF और AEOI मानक:
ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉर्मेशन (AEOI) और टैक्स चोरी रोकथाम उपाय।
अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ (International Best Practices)
- USA – Bank Secrecy Act: बड़े नकद लेनदेन पर अनिवार्य रिपोर्टिंग।
- UK – Proceeds of Crime Act (POCA): संदिग्ध लेनदेन पर तुरंत संपत्ति फ्रीज़।
- सिंगापुर: सख्त क्रॉस‑बॉर्डर मॉनिटरिंग और वित्तीय इंटेलिजेंस यूनिट्स की सक्रियता।
संवैधानिक और नैतिक आयाम (Ethical / Constitutional Dimensions)
- संविधान के अनुच्छेद 51A: नागरिक कर्तव्य – राष्ट्रीय संपत्ति और अखंडता की रक्षा।
- DPSPs (अनुच्छेद 39): धन और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण।
- नैतिक दृष्टिकोण: भ्रष्टाचार और अवैध धन प्रवाह पर सख्ती से रोक।
आगे की राह (Way Forward)
भारत में मनी लॉन्ड्रिंग पर प्रभावी नियंत्रण के लिए केवल कठोर कानून पर्याप्त नहीं है, बल्कि तेज़ न्यायिक प्रक्रिया, तकनीकी नवाचार, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पारदर्शी प्रशासन की आवश्यकता है। निम्नलिखित उपायों को अपनाकर इस चुनौती का समाधान किया जा सकता है:
1. न्यायिक प्रक्रिया में तेजी (Speedy Judicial Process)
विशेष PMLA अदालतें और फास्ट-ट्रैक ट्रायल सिस्टम लागू करना आवश्यक है ताकि लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा हो सके।
वर्तमान में 5,892 मामलों में केवल 15 दोषसिद्धियाँ यह दर्शाती हैं कि देर से न्याय, न्याय की विफलता के समान है।
सुप्रीम कोर्ट और लॉ कमीशन की सिफारिशें भी लंबित आर्थिक अपराध मामलों के समयबद्ध निपटान पर बल देती हैं।
2. प्रौद्योगिकी और डेटा एनालिटिक्स (Technology & Data Analytics)
AI आधारित suspicious transaction monitoring systems लागू करना।
Financial Intelligence Unit – India (FIU-IND) को बिग डेटा, ब्लॉकचेन ट्रैकिंग और क्रिप्टोकरेंसी मॉनिटरिंग के लिए सशक्त बनाना।
यह कदम हवाला और शेल कंपनियों की पहचान तेज़ करेगा।
3. अंतरराष्ट्रीय समन्वय (International Coordination)
FATF, DTAA, और AEOI (Automatic Exchange of Information) ढाँचों को मजबूत बनाना।
भारत पहले ही 85 देशों के साथ DTAA साइन कर चुका है, इसे और प्रभावी करने की आवश्यकता है।
सीमा-पार लेनदेन पर निगरानी और संदिग्ध विदेशी खातों की रियल टाइम ट्रैकिंग जरूरी है।
4. दुरुपयोग की रोकथाम (Preventing Misuse)
जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
राजनीतिक हस्तक्षेप रहित और फेयर इन्वेस्टिगेशन सिस्टम अपनाने से दुरुपयोग कम होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी विजय मदनलाल चौधरी केस (2022) में इस संतुलन पर बल दिया।
5. जनजागरूकता और वित्तीय अनुशासन (Public Awareness & Financial Discipline)
बैंकों, NBFCs और वित्तीय संस्थानों में KYC और AML (Anti-Money Laundering) नियमों का कड़ाई से पालन।
आम नागरिकों और कंपनियों में वित्तीय साक्षरता और कानूनी जागरूकता बढ़ाना।
RBI और SEBI के सतर्कता दिशानिर्देश लागू करना।
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प्रश्न: भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act – PMLA), 2002 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- PMLA के अंतर्गत धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के मामलों में दोषसिद्धि दर (conviction rate) 2025 तक 1% से भी कम रही है।
- PMLA की धारा 3 के तहत, अपराध से अर्जित धन को छुपाना, अपने पास रखना या वैध संपत्ति के रूप में प्रस्तुत करना, धन शोधन की परिभाषा में आता है।
- भारत में PMLA के तहत अभियुक्त को अपनी संपत्ति की वैधता सिद्ध करनी होती है (burden of proof अभियुक्त पर है)।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या:
तीनों कथन सही हैं:
- दोषसिद्धि दर 0.1% के आसपास है।
- धारा 3 धन शोधन की व्यापक परिभाषा देती है।
- सबूत का भार अभियुक्त पर है (PMLA की विशेषता)।
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Topic : नेक्रोपॉलिटिक्स |
चर्चा में क्यों:- नेक्रोपॉलिटिक्स या शव-राजनीति आधुनिक राज्यों में शक्ति के उस प्रयोग को समझाने वाला सिद्धांत है, जहाँ राज्य यह तय करता है कि किसका जीवन सुरक्षित रहेगा और किसे मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा। हाल ही में गाजा, सीरिया, यूक्रेन, और भारत के भीतर कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की स्थिति ने यह प्रश्न और प्रासंगिक बना दिया है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS2 – पेपर 2 – राजनीति और शासन मुख्य परीक्षा: मानवाधिकार और संवैधानिक प्रावधान, राजनीतिक शक्ति और शासन तंत्र। |
पृष्ठभूमि (Background / Context)
1. अवधारणा की उत्पत्ति (Origin of the Concept)
नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics) की अवधारणा का विकास कैमरून के इतिहासकार अचिल एमबेम्बे (Achille Mbembe) ने किया।
उन्होंने इसे पहली बार 2003 में एक निबंध में प्रस्तुत किया और बाद में 2019 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “Necropolitics” में विस्तार से समझाया।
यह सिद्धांत मिशेल फूको की बायोपॉलिटिक्स (Biopolitics) की अवधारणा पर आधारित है।
बायोपॉलिटिक्स बताता है कि राज्य जीवन और जनसंख्या के प्रबंधन के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।
जैसे – टीकाकरण, जनगणना, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था, और जनसंख्या नियंत्रण।
2. मुख्य अंतर – बायोपॉलिटिक्स बनाम नेक्रोपॉलिटिक्स
बायोपॉलिटिक्स (Biopolitics)
परिभाषा: जीवन और जनसंख्या का प्रबंधन।
मुख्य उद्देश्य:
स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करना।
जनसंख्या को नियंत्रित करना।
जीवन को सुरक्षित और उत्पादक बनाना।
उदाहरण:
टीकाकरण अभियान, जन्म नियंत्रण नीतियाँ, जनगणना।
नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics)
परिभाषा: मृत्यु का प्रबंधन, यानी यह तय करना कि किसका जीवन मूल्यवान है और किसकी मौत को सामान्य या त्याज्य माना जाएगा।
मुख्य उद्देश्य:
कुछ आबादी को त्यागने योग्य (disposable) मानना।
राजनीतिक नियंत्रण और सुरक्षा के नाम पर मृत्यु को वैध ठहराना।
उदाहरण:
युद्ध क्षेत्रों में नागरिकों की मौत को सामान्य बना देना।
शरणार्थियों, गरीबों या हाशिए के समुदायों को परित्याग की स्थिति में छोड़ देना।
3. सारांश
जहाँ बायोपॉलिटिक्स जीवन के प्रबंधन और संरक्षण पर केंद्रित है, वहीं नेक्रोपॉलिटिक्स मृत्यु और परित्याग के प्रबंधन पर केंद्रित है।
यह आधुनिक शासन की उस विडंबना को उजागर करता है, जहाँ कुछ जीवनों को संरक्षित किया जाता है और कुछ को संरचनात्मक रूप से मौत या उपेक्षा के हवाले कर दिया जाता है।
हालिया परिप्रेक्ष्य (Recent Developments)
1.गाजा संकट (2023–24)
इज़राइल-हमास संघर्ष में गाज़ा में अब तक 60,000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें कम से कम 18,500 बच्चे शामिल हैं, जबकि कुल 9,800 से अधिक महिलाएं भी प्रभावित हुईं ।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने पुष्टि की है कि युद्ध में मारे गए लगभग 70% लोग महिलाएं और बच्चे थे।
चिकित्सकीय अध्ययन बताते हैं कि वास्तविक मृत्यु संख्या अनुमानित रिपोर्ट से लगभग 41% अधिक हो सकती है—लगभग 64,260 मौतें, जो अक्टूबर 2023 से जून 2024 तक हुई थीं ।
एक झलक: गाज़ा में केवल एक परिवार में 14 सदस्य की मृत्यु, और 1,200 परिवारों का पूरी तरह wiped out हो जाना एक सांकेतिक घटना है।
“Flour Massacre” जैसे हमलों में, खाद्य सहायता की मांग करते समय 118 से अधिक नागरिकों की मौत, जिसका नाम ही पीड़ा की गहराई दर्शाता है।
इन उदाहरणों ने दिखाया कि कैसे नागरिक मौतों को सामान्य आँकड़ों में विलीन कर दिया जाता है, जिससे उनकी मानवीय गरिमा और सूचित शोक की पहचान खो जाती है।
2.भारत में कोविड-19 लॉकडाउन (2020)
25 मार्च 2020 की अचानक घोषित लॉकडाउन नीति ने लाखों प्रवासी मजदूरों को भोजन, आश्रय और परिवहन से वंचित कर दिया।
इन मजदूरों ने गांव लौटने के लिए अपने पैरों पर हजारों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, जिससे कई की मौत हो गई—यह मृत्यु संरचनात्मक उपेक्षा और नीति विफलता की परिणति थी।
यह संकट बताता है कि कुछ समुदायों की जान राज्य व्यवस्था द्वारा मरने योग्य मानी गई, जैसे कि जिंदगी का मूल्य राजनीतिक दृष्टिकोण से निर्धारित हुआ।
3.कश्मीर एवं पूर्वोत्तर भारत
इन क्षेत्रों में सुरक्षा अभियानों और हिंसा दौरान नागरिक मौतें अक्सर राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा से बाहर रह जाती हैं।
आतंकवादी हमलों से प्रेरित राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की तुलना में, यहाँ की मृत्यु को स्थानीय परिदृश्य का अंग मान लिया गया है, जिसकी परिणति में व्यापक सार्वजनिक शोक और संवेदनशीलता नहीं उठती।
4.विश्लेषण (Analysis)
यह सभी घटनाएँ नेक्रोपॉलिटिक्स की अवधारणा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती हैं: कुछ जीवन “जीने योग्य” समझे जाते हैं और कुछ मरने के लिए छोड़ दिए जाते हैं।
ग़ाजा में बच्चों और महिलाओं की उच्च मृत्यु दर, भारत में प्रवासियों की अनदेखी और संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में नागरिक मौतों की सामान्यता, यह बताते हैं कि मौतों का राजनीतिक और संरचनात्मक विभाजन गहरे स्तर पर मौजूद है।
ये घटनाएँ दशा इस बात का संकेत हैं कि मौत को नियंत्रित करना, केवल प्राकृतिक घटना नहीं—बल्कि शासन की रणनीति हो सकती है।
शव-राजनीति की विशेषताएँ (Characteristics of Necropolitics)
नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics) यह दर्शाता है कि आधुनिक राज्यों और वैश्विक शासन तंत्र में कुछ जीवनों को संरक्षित किया जाता है, जबकि कुछ को व्यवस्थित रूप से मृत्यु, उपेक्षा या परित्याग के हवाले कर दिया जाता है। इस अवधारणा को अचिल एमबेम्बे ने विस्तार से समझाया है। नीचे इसकी प्रमुख विशेषताएँ दी गई हैं:
1. राजकीय आतंक और निगरानी (State Terror and Surveillance)
लोकतंत्रों में भी राज्य अपने विरोधियों और असहमत आवाज़ों को हिंसा, कारावास और निगरानी के माध्यम से दबाता है।
उदाहरण:
आपातकालीन कानूनों के नाम पर बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ।
कश्मीर, म्यांमार या गाज़ा में सुरक्षा अभियानों के दौरान नागरिकों की मौतों का सामान्यीकृत होना।
प्रासंगिकता: यह बताता है कि आधुनिक लोकतंत्र भी भय और आतंक का उपयोग कर सकते हैं।
2. राज्य और गैर-राज्य हिंसा का धुंधलापन (State & Non-State Violence Blur)
आधुनिक शासन में, राज्य कई बार निजी मिलिशिया, आपराधिक गिरोहों या ठेकेदारों के साथ सहयोग करता है।
इस प्रकार, हिंसा की जिम्मेदारी धुंधली हो जाती है और नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई को औपचारिक रूप से नकारा जा सकता है।
उदाहरण:
लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में सशस्त्र गैर-राज्य समूहों के साथ सरकारी मिलीभगत।
संघर्ष क्षेत्रों में अर्धसैनिक बलों और स्थानीय संगठनों का उपयोग।
3. शत्रुता का निर्माण (Production of Enemies)
नेक्रोपॉलिटिक्स में काल्पनिक या वास्तविक दुश्मन बनाना जरूरी है ताकि हिंसा को वैध ठहराया जा सके।
राज्य इन “दुश्मनों” के खिलाफ दमन को राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद या सामाजिक शुद्धि के नाम पर उचित ठहराता है।
उदाहरण:
आंतरिक आतंकवाद या अल्पसंख्यक समुदायों को खतरा बताना।
शरणार्थियों या प्रवासियों को सामाजिक अस्थिरता का कारण बनाना।
4. धीमी और संरचनात्मक मृत्यु (Slow and Structural Death)
यह केवल प्रत्यक्ष हत्या नहीं, बल्कि धीमी और ढाँचागत उपेक्षा के माध्यम से होती है।
रूप:
अकाल, भुखमरी, असमान स्वास्थ्य सेवाएँ, और प्रशासनिक परित्याग।
उदाहरण:
1943 का बंगाल अकाल – नीतिगत विफलता और औपनिवेशिक प्राथमिकताओं के कारण लाखों मौतें।
कोविड-19 लॉकडाउन (भारत 2020) – प्रवासी मजदूरों की उपेक्षा से हुई मौतें।
5. वैचारिक औचित्य (Ideological Justification)
मृत्यु को सामान्य और वैध ठहराने के लिए राष्ट्रवाद, धर्म या उपयोगितावाद का प्रयोग किया जाता है।
सरकारें और संस्थाएँ मृत्यु को सुरक्षा, विकास या सार्वजनिक हित के नाम पर तर्कसंगत बनाती हैं।
उदाहरण:
ड्रोन हमलों को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उचित ठहराना।
शरणार्थी शिविरों में मौतों को “अपरिहार्य” मान लेना।
मामले के अध्ययन (Case Studies)
1. 1943 का बंगाल अकाल (Bengal Famine, 1943)
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
1943 में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें लगभग 30 से 40 लाख लोगों की मौत हुई।
यह मौतें केवल प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं, बल्कि ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के परिणामस्वरूप हुईं।
विंस्टन चर्चिल की युद्धकालीन नीतियों के कारण भारत से अनाज निर्यात जारी रहा, जबकि स्थानीय आबादी भूख से मर रही थी।
नेक्रोपॉलिटिक्स दृष्टि से विश्लेषण:
औपनिवेशिक शासन ने भारतीय जीवन को त्याज्य और गौण माना।
जीवन के मूल्य का निर्धारण साम्राज्यवादी हितों के अनुसार किया गया।
2. HIV/AIDS संकट (HIV/AIDS Crisis, 1980-90s)
पृष्ठभूमि:
1980 और 1990 के दशक में एचआईवी/एड्स महामारी ने दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ली।
विशेषकर समलैंगिक समुदाय, अश्वेत और ट्रांसजेंडर व्यक्ति, और गरीब तबके के लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए।
स्वास्थ्य प्रणालियों और सरकारों ने इन हाशिए के समुदायों के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाएँ और दवाएँ उपलब्ध नहीं कराईं।
नेक्रोपॉलिटिक्स दृष्टि से विश्लेषण:
इन जीवनों को सामाजिक रूप से कम मूल्यवान माना गया।
केवल उन लोगों के जीवन पर ध्यान दिया गया जिन्हें मध्यवर्गीय या श्वेत पहचान के माध्यम से “सम्मानजनक” माना जाता था।
3. प्रवासी मजदूर संकट (India Migrant Worker Crisis, 2020)
पृष्ठभूमि:
25 मार्च 2020 को कोविड-19 के कारण भारत में अचानक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई।
लाखों प्रवासी मजदूर बिना भोजन, आश्रय और परिवहन के फँस गए और अपने गांवों की ओर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हो गए।
इस दौरान कई लोग थकान, भूख, सड़क दुर्घटनाओं और उपेक्षा के कारण मारे गए।
नेक्रोपॉलिटिक्स दृष्टि से विश्लेषण:
प्रवासी मजदूरों के जीवन को प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से कम महत्व दिया गया।
उनकी मौतें संरचनात्मक उपेक्षा और नीति विफलता का उदाहरण हैं।
महत्व और प्रभाव (Significance of the Issue)
- मानवाधिकार उल्लंघन – जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकारों का हनन (अनुच्छेद 21)।
- सामाजिक असमानता – हाशिए के समुदायों की संरचनात्मक उपेक्षा।
- वैश्विक शांति और सुरक्षा – शरणार्थी संकट और सीमापार हिंसा।
- नैतिक पतन – मृत्यु को सामान्य और आँकड़ा बना देना।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- संरचनात्मक असमानता और जातीय/धार्मिक भेदभाव।
- राज्य की नीतियों में जीवन की असमान प्राथमिकता।
- वैश्विक संस्थाओं की उदासीनता और भू-राजनीतिक स्वार्थ।
- डेटा-निर्भर रिपोर्टिंग में मानवीय संवेदनाओं का ह्रास।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण (International Comparison)
- USA – ड्रोन स्ट्राइक और हिरासत केंद्रों में प्रवासियों की मृत्यु को सामान्यीकृत किया जाता है।
- यूरोप – भूमध्यसागर में डूबते शरणार्थियों की मौतें धीमी नेक्रोपॉलिटिक्स का उदाहरण।
- अफ्रीका – संघर्ष क्षेत्रों में नागरिकों का सामूहिक परित्याग।
संवैधानिक और नैतिक आयाम (Constitutional & Ethical Dimensions)
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
- अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार, जो हाशिए के समुदायों की उपेक्षा से प्रभावित।
- नैतिक प्रश्न: क्या कुछ जीवन दूसरों से कम मूल्यवान हैं?
- अंतरराष्ट्रीय नैतिकता: जिनेवा कन्वेंशन और मानवाधिकार घोषणाएँ।
आगे की राह (Way Forward)
- मानवाधिकार प्रवर्तन – घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निगरानी मजबूत करना।
- जवाबदेही और पारदर्शिता – हिंसा और परित्याग के लिए राज्य और संस्थाओं को उत्तरदायी ठहराना।
- नीतिगत सुधार – प्रवासी, शरणार्थी और अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा तंत्र।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग – UN, WHO, और ICC के माध्यम से त्वरित कार्रवाई।
- नैतिक पुनर्जागरण – समाज में जीवन के समान मूल्य और गरिमा की संस्कृति।
प्रश्न: नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics) के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए—
- नेक्रोपॉलिटिक्स की अवधारणा सबसे पहले अचिल एमबेम्बे (Achille Mbembe) ने प्रस्तुत की थी, जिसमें राज्य द्वारा मृत्यु और परित्याग के प्रबंधन पर बल दिया गया है।
- यह सिद्धांत मिशेल फूको की बायोपॉलिटिक्स (Biopolitics) की अवधारणा से प्रेरित है, जो जीवन और जनसंख्या के प्रबंधन से संबंधित है।
- नेक्रोपॉलिटिक्स के अंतर्गत, राज्य सभी नागरिकों के जीवन को बराबर महत्त्व देता है और सभी को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या:
पहला और दूसरा कथन सही हैं—नेक्रोपॉलिटिक्स की अवधारणा अचिल एमबेम्बे ने दी और यह फूको की बायोपॉलिटिक्स पर आधारित है। तीसरा कथन गलत है क्योंकि नेक्रोपॉलिटिक्स में राज्य कुछ जीवनों को संरक्षित करता है, जबकि कुछ को परित्याग या उपेक्षा के लिए छोड़ देता है।