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Topic : भारत का कैंसर मैप: एक विश्लेषण |
चर्चा में क्यों :
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “वर्तमान में 30% से 50% कैंसर को जोखिम कारकों से बचाव और प्रभावी रोकथाम रणनीतियों के माध्यम से रोका जा सकता है।”
- भारत में कैंसर की व्यापकता पर आधारित एक हालिया रिपोर्ट से यह सामने आया है कि कैंसर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है, जिसमें क्षेत्रीय असमानताएं और सामाजिक-आर्थिक कारण प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
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UPSC पाठ्यक्रम:
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पृष्ठभूमि
- भारत में कैंसर की निगरानी के लिए ICMR–नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ इन्फ़ॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (NCDIR) द्वारा कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम संचालित किया जाता है।
- इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1981 में की गई थी और इसका उद्देश्य कैंसर की घटनाओं, मृत्यु दर और उपचार की सफलता का आकलन करना है।
- संविधान के अनुसार जन स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है, किंतु अनुच्छेद 47 के अंतर्गत राज्य को पोषण और जनस्वास्थ्य सुधार की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार माना है।
- इस प्रकार कैंसर नियंत्रण केंद्र और राज्यों के बीच सहयोगात्मक संघवाद (Cooperative Federalism) का विषय है।
1. भारत में कैंसर का मौजूदा परिदृश्य
- भारत में कैंसर के मामलों पर आधारित 43 कैंसर रजिस्ट्री के विश्लेषण से यह सामने आया है कि किसी व्यक्ति के जीवनकाल में कैंसर विकसित होने का जोखिम लगभग 11 प्रतिशत है।
- वर्ष 2024 में अनुमानित 15.6 लाख नए कैंसर मामलों और लगभग 8.74 लाख मौतों की सूचना दर्ज की गई।
- ये रजिस्ट्री देश की 10 से 18 प्रतिशत आबादी को कवर करती हैं और 23 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में संचालित होती हैं।
2. 2015–2019 का कैंसर डेटा और रुझान
- साल 2015 से 2019 के बीच एकत्र किए गए आंकड़ों में लगभग 7.08 लाख कैंसर मामलों और 2.06 लाख मौतों को दर्ज किया गया।
- इस अध्ययन को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली, टाटा मेमोरियल और अड्यार कैंसर संस्थान जैसे प्रमुख शोध संस्थानों के विशेषज्ञों ने पूरा किया।
- कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण वर्ष 2020 के आंकड़े इसमें शामिल नहीं किए गए।
3. लिंग आधारित असमानताएँ
- भारत में महिलाओं में कैंसर के 51.1 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए, लेकिन मौतों का प्रतिशत केवल 45 रहा।
- इसका कारण यह है कि महिलाओं में पाए जाने वाले प्रमुख कैंसर जैसे स्तन और गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर आसानी से पहचाने और इलाज किए जा सकते हैं।
- इसके विपरीत पुरुषों में सामान्य कैंसर जैसे फेफड़े और पेट का कैंसर देर से पकड़ में आते हैं और इनका परिणाम अपेक्षाकृत अधिक घातक होता है।
4. पुरुषों में मुँह का कैंसर
- पुरुषों में अब मुँह का कैंसर सबसे सामान्य कैंसर बन चुका है।
- यह फेफड़ों के कैंसर से भी अधिक पाया जा रहा है। तम्बाकू सेवन में कमी (2009–10 में 34.6% से घटकर 2016–17 में 28.6% तक) आने के बावजूद मुँह के कैंसर में वृद्धि देखी जा रही है।
- इसका कारण तम्बाकू के प्रभाव का लंबी अवधि में सामने आना और शराब जैसे अन्य जोखिम कारक हैं।
5. पूर्वोत्तर भारत : कैंसर का हॉटस्पॉट
- पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर मिज़ोरम, देश का कैंसर हॉटस्पॉट है।
- यहाँ पुरुषों में जीवनकाल का जोखिम 21.1 प्रतिशत और महिलाओं में 18.9 प्रतिशत तक दर्ज किया गया है।
- इसके पीछे उच्च तम्बाकू सेवन, अस्वस्थ आहार (फर्मेंटेड मांस, धूम्रित भोजन, अत्यधिक मसाले और गर्म पेय) तथा मानव पैपिलोमा वायरस (HPV), Helicobacter pylori और हेपेटाइटिस जैसी संक्रामक बीमारियों की अधिकता जिम्मेदार है।
6. कैंसर का भौगोलिक वितरण
- कैंसर का वितरण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से दिखाई देता है।
- हैदराबाद में स्तन कैंसर की दर सबसे अधिक 54 प्रति 1,00,000 है।
- ऐज़ॉल में गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर 27.1 प्रति 1,00,000 पर सबसे अधिक है।
- श्रीनगर में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर 39.5 प्रति 1,00,000 पाया गया जबकि महिलाओं में ऐज़ॉल में इसकी दर 33.7 है।
- अहमदाबाद में पुरुषों में मुँह का कैंसर सबसे अधिक 33.6 है, जबकि महिलाओं में ईस्ट खासी हिल्स में यह दर 13.6 पाई गई।
- श्रीनगर में प्रोस्टेट कैंसर की दर 12.7 प्रति 1,00,000 दर्ज की गई।
कैंसर क्या है?
- कैंसर बीमारियों का एक व्यापक समूह है,जो शरीर में कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास और विभाजन के कारण होने वाली बीमारी है।
- यह तब होता है जब सामान्य कोशिकाओं के DNA में उत्परिवर्तन होता है, जिससे अनियंत्रित कोशिका विभाजन होता है।
- कैंसर के 100 से अधिक प्रकार हैं, और वे शरीर के लगभग किसी भी भाग में हो सकते हैं।
- ट्यूमर: कैंसर कोशिकाओं का एक समूह ट्यूमर बना सकता है, जो सौम्य (गैर-कैंसरयुक्त) या घातक (कैंसरयुक्त) हो सकता है।
- मेटास्टेसिस: घातक ट्यूमर मूल स्थान से शरीर के अन्य क्षेत्रों में फैल सकता है।
कैंसर के प्राथमिक कारण
- कैंसर के विकास में कई जोखिम कारक योगदान करते हैं, लेकिन सटीक कारण अक्सर अज्ञात रहता है। कुछ प्राथमिक कारणों में शामिल हैं:
- तम्बाकू का उपयोग: धूम्रपान सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कारक है, विशेष रूप से फेफड़े, मुँह, गले और एसोफैजियल कैंसर के लिए।
- रेडिएशन एक्सपोजर: एक्स-रे, रेडॉन गैस और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आना शामिल है, जो DNA को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- संक्रमण: मानव पेपिलोमावायरस (HPV) और हेपेटाइटिस B और C जैसे वायरस गर्भाशय ग्रीवा और यकृत कैंसर जैसे कैंसर का कारण बन सकते हैं।
- आनुवंशिकी: विरासत में मिली आनुवंशिक उत्परिवर्तन, जैसे कि BRCA1 और BRCA2 जीन, स्तन और डिम्बग्रंथि के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- पर्यावरणीय कारक: रसायनों (एस्बेस्टस, बेंजीन) और प्रदूषकों के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है।
- जीवनशैली कारक: खराब आहार, शारीरिक निष्क्रियता, शराब का सेवन और मोटापा कई प्रकार के कैंसर से जुड़े हैं।
- आयु: मस्तिष्क ट्यूमर वृद्ध वयस्कों में अधिक आम है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है। कुछ प्रकार, जैसे मेडुलोब्लास्टोमा, बच्चों में अधिक आम हैं।
ब्रेन कैंसर के बारे में
- ब्रेन कैंसर का मतलब है मस्तिष्क में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि, जिससे ट्यूमर का निर्माण होता है।
- ये ट्यूमर या तो प्राथमिक (मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले) या द्वितीयक (मेटास्टेटिक, शरीर के अन्य भागों से फैलने वाले) हो सकते हैं।
- प्राथमिक ब्रेन कैंसर मस्तिष्क की कोशिकाओं, ऊतकों या आस-पास की झिल्लियों से उत्पन्न होता है।
- द्वितीयक ब्रेन कैंसर तब होता है जब शरीर के किसी अन्य भाग (जैसे फेफड़े या स्तन) से कैंसर मस्तिष्क में फैल जाता है।
ब्रेन ट्यूमर के प्रकार
ग्लियोमास:
- ये ट्यूमर मस्तिष्क की ग्लियल कोशिकाओं (सहायक ऊतक) से उत्पन्न होते हैं।
- ग्लियोमास ब्रेन ट्यूमर का सबसे आम प्रकार है, जो सभी ब्रेन ट्यूमर का लगभग 30% है।
- ग्लियोमास के प्रकारों में शामिल हैं:
- एस्ट्रोसाइटोमास
- ऑलिगोडेंड्रोग्लियोमास
- एपेंडिमोमास
मेनिंगियोमास:
- ट्यूमर जो मेनिन्जेस में बनते हैं, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली झिल्लियाँ।
- वे आम तौर पर धीमी गति से बढ़ते हैं और अक्सर सौम्य (गैर-कैंसरयुक्त) होते हैं, लेकिन वे कभी-कभी घातक (कैंसरयुक्त) बन सकते हैं।
ब्रेन कैंसर के लक्षण
- ब्रेन कैंसर के लक्षण ट्यूमर के स्थान, आकार और वृद्धि की दर के आधार पर अलग-अलग होते हैं।
सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
- सिरदर्द: लगातार और गंभीर सिरदर्द, विशेष रूप से सुबह के समय, एक लगातार लक्षण है।
- दौरे: दौरे आम हैं और यह ब्रेन ट्यूमर का पहला संकेत हो सकता है।
- संज्ञानात्मक परिवर्तन: सोचने में कठिनाई, याददाश्त में कमी, भ्रम और व्यक्तित्व में बदलाव हो सकते हैं।
- दृष्टि संबंधी समस्याएं: धुंधली दृष्टि, दोहरी दृष्टि या परिधीय दृष्टि का नुकसान मस्तिष्क की ऑप्टिक नसों पर ट्यूमर के दबाव का संकेत दे सकता है।
उपचार और निदान
- निदान: मस्तिष्क कैंसर का निदान न्यूरोलॉजिकल परीक्षाओं, इमेजिंग परीक्षणों (जैसे एमआरआई और सीटी स्कैन) और कभी-कभी बायोप्सी के माध्यम से किया जाता है।
- उपचार: उपचार में आमतौर पर ट्यूमर को हटाने के लिए सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी शामिल होती है। उपचार योजना ट्यूमर के प्रकार, आकार, स्थान और चरण पर निर्भर करती है।
भारत और विश्व स्तर पर कैंसर
- राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) के अनुसार, 2022 में लगभग 13.9 लाख नए कैंसर मामले दर्ज किए गए, और 2024 तक यह संख्या 15 लाख तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत में कैंसर के मामले बढ़ने के कारण:
- तंबाकू और शराब का बढ़ता सेवन, शारीरिक निष्क्रियता और अस्वास्थ्यकर आहार संबंधी आदतें कैंसर के मामलों को बढ़ा रही हैं।
- पर्यावरण प्रदूषकों और औद्योगिक रसायनों, विकिरण और कीटनाशकों जैसे कार्सिनोजेन्स के संपर्क में आने से मामलों की संख्या बढ़ रही है।
- जैसे-जैसे भारत में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, वैसे-वैसे ज़्यादा लोग ज़्यादा उम्र तक जी रहे हैं, जिससे कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
भारत में प्रमुख कैंसर के आकड़े:
- स्तन कैंसर: भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर है, जिसके सालाना 160,000 से अधिक नए मामले सामने आते हैं।
- मुँह का कैंसर: भारत में तम्बाकू के उपयोग के कारण यह अत्यधिक प्रचलित है, जिसके हर साल लगभग 90,000 नए मामले सामने आते हैं।
- सर्वाइकल कैंसर:एक समय भारत में महिलाओं में सबसे आम कैंसर होने के कारण इसकी घटनाओं में कमी देखी गई है, लेकिन अभी भी सालाना लगभग 60,000 नए मामले सामने आते हैं।
- फेफड़ों का कैंसर: हर साल अनुमानित 70,000 नए मामलों के साथ, यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के बीच बढ़ती चिंता को दर्शाता है।
कैंसर की घटनाएँ और मृत्यु दर:-
- भारत में कैंसर की आयु-समायोजित घटना दर प्रति 100,000 व्यक्तियों पर 94 से 113 तक है, जो कई पश्चिमी देशों की तुलना में कम है।
- हालाँकि, भारत में मृत्यु-से-घटना अनुपात काफी अधिक है, जो कम जीवित रहने की दर का संकेत देता है, मुख्य रूप से देर से निदान और उपचार सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच के कारण।
महत्व (Significance of the Issue)
- कैंसर भारत के लिए केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है बल्कि इसका प्रभाव आर्थिक, सामाजिक और रणनीतिक स्तर पर भी पड़ रहा है
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव यह है कि कैंसर असमय मृत्यु दर को बढ़ाता है और जीवन प्रत्याशा को घटाता है।
- आर्थिक दृष्टि से कैंसर का उपचार इतना महँगा है कि यह परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल देता है और यह भारत के SDG-3 (स्वास्थ्य और कल्याण) लक्ष्यों को कमजोर करता है।
- सामाजिक दृष्टि से ग्रामीण और पिछड़े वर्ग की महिलाएँ देर से निदान और सामाजिक कलंक के कारण अधिक प्रभावित होती हैं।
- रणनीतिक दृष्टि से कैंसर का बढ़ता बोझ भारत की स्वास्थ्य संरचना और आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- भारत में कैंसर नियंत्रण के सामने कई प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
- वर्तमान में कैंसर रजिस्ट्रियों का कवरेज केवल 10–18% आबादी तक ही सीमित है।
- जागरूकता और स्क्रीनिंग की कमी के कारण कैंसर का निदान प्रायः देर से होता है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में कैंसर का प्रकोप बहुत अधिक है जबकि वहाँ स्वास्थ्य ढाँचा बेहद कमजोर है।
- तंबाकू, शराब, अस्वास्थ्यकर आहार और निष्क्रिय जीवनशैली प्रमुख जोखिम कारक बने हुए हैं।
- देश में ऑन्कोलॉजिस्ट, रेडियोथेरेपी इकाइयाँ और कैंसर अस्पतालों की भारी कमी है।
- उपचार पर होने वाला जेब से खर्च (Out-of-Pocket Expenditure) परिवारों को आर्थिक संकट में डाल देता है।
आँकड़े और रिपोर्ट्स (Data & Reports)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO, 2024) के अनुसार 30–50% कैंसर मामलों को जोखिम कारकों को घटाकर रोका जा सकता है।
- ICMR–NCDIR (2019-23) की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में कैंसर के मामलों में स्तन और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर लगभग 40% योगदान करते हैं।
- GATS (2016-17) के अनुसार भारत में तंबाकू सेवन घटकर 28.6% रह गया है, लेकिन मौखिक कैंसर अब भी ऊँचे स्तर पर है।
- आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) के अनुसार गैर-संचारी रोग (NCDs) भारत की कार्यबल की उत्पादकता और GDP पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं।
भारत सरकार की पहलें: कैंसर नियंत्रण और रोकथाम
- भारत सरकार ने कैंसर जैसी गंभीर चुनौती से निपटने के लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम लागू किए हैं।
- इनका उद्देश्य है – रोकथाम, प्रारंभिक पहचान, सस्ती चिकित्सा सुविधा, और जन-जागरूकता बढ़ाना।
1. राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम (NCCP) – 1975, संशोधित 2010
- यह कार्यक्रम सबसे पहले 1975 में शुरू किया गया था और 2010 में इसे संशोधित किया गया।
- इसके अंतर्गत कैंसर की रोकथाम, प्रारंभिक निदान और उपचार पर विशेष जोर दिया गया।
- इस योजना के माध्यम से क्षेत्रीय कैंसर केंद्र (Regional Cancer Centres) और जन-जागरूकता अभियान स्थापित किए गए।
2. आयुष्मान भारत योजना – 2018
- 2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है।
- इसमें कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए 5 लाख रुपये तक का आर्थिक कवरेज दिया जाता है।
- इस योजना के तहत गरीब और वंचित वर्ग को बड़े अस्पतालों में मुफ़्त या सब्सिडी वाला इलाज उपलब्ध कराया जाता है।
3. राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (NTCP) – 2007
- यह कार्यक्रम 2007 में शुरू किया गया था ताकि तंबाकू के सेवन को कम किया जा सके।
- इसके अंतर्गत:
- जन-जागरूकता अभियान चलाए गए।
- तंबाकू छोड़ने के सहायता केंद्र (Tobacco Cessation Centres) खोले गए।
- स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान-विरोधी अभियान चलाए गए।
- इस पहल ने मुख और फेफड़ों के कैंसर जैसे तंबाकू से जुड़े कैंसर को कम करने में मदद की है।
4. HPV टीकाकरण अभियान – 2023
- वर्ष 2023 में भारत सरकार ने HPV (Human Papillomavirus) टीकाकरण अभियान की शुरुआत की।
- इसका मुख्य उद्देश्य है गर्भाशय ग्रीवा (Cervical Cancer) से महिलाओं की रक्षा करना।
- यह अभियान विशेष रूप से किशोरियों और युवतियों के लिए है ताकि भविष्य में उन्हें इस कैंसर से बचाया जा सके।
5. राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS)
- NPCDCS (National Programme for Prevention and Control of Cancer, Diabetes, Cardiovascular Diseases and Stroke) को शुरू किया गया है।
- इसका लक्ष्य है – कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियों की रोकथाम, निदान और इलाज।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत जिला अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को कैंसर स्क्रीनिंग और इलाज के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
- अमेरिका और ब्रिटेन में मजबूत स्क्रीनिंग प्रणालियाँ जैसे मेमोग्राफी और पाप स्मीयर टेस्ट तथा सार्वभौमिक HPV टीकाकरण ने कैंसर की घटनाओं को घटाने में सफलता दिलाई है।
- जापान में आहार संबंधी जागरूकता अभियानों के कारण पेट के कैंसर की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है।
- इसके मुकाबले भारत अभी भी स्क्रीनिंग और टीकाकरण कवरेज में काफी पीछे है।
नैतिक और संवैधानिक आयाम
- कैंसर नियंत्रण के नैतिक और संवैधानिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं।
- अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अंतर्गत स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार माना गया है।
- ग्रामीण और गरीब वर्गों का उपचार से वंचित रह जाना सामाजिक अन्याय और असमानता को दर्शाता है।
- अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्तव्य) के अंतर्गत नागरिकों का दायित्व है कि वे स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली अपनाएँ और समाज को इसके लिए प्रेरित करें।
आगे की राह
- भारत कैंसर की चुनौती से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकता है।
- कैंसर रजिस्ट्रियों का विस्तार कर कम से कम 50% आबादी को कवर करना चाहिए।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सार्वभौमिक कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम लागू करना चाहिए।
- HPV टीकाकरण को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।
- पूर्वोत्तर जैसे प्रभावित क्षेत्रों में विशेष कैंसर संस्थानों और टेली-ऑन्कोलॉजी सेवाओं की स्थापना करनी चाहिए।
- तंबाकू और शराब नियंत्रण, स्वस्थ आहार और व्यायाम को बढ़ावा देने के लिए जन-अभियान चलाने चाहिए।
- सस्ती दवाओं और AI आधारित शुरुआती निदान तकनीकों पर अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- NGOs, पंचायतों और स्थानीय संगठनों को कैंसर जागरूकता अभियान में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए।
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Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 30%–50% कैंसर मामलों को जोखिम कारकों में कमी और प्रभावी रोकथाम रणनीतियों से रोका जा सकता है।
- भारत की कैंसर रजिस्ट्रियाँ (NCRP/ICMR-NCDIR) वर्तमान में देश की 50% से अधिक आबादी को कवर करती हैं।
- मिज़ोरम में पुरुषों और महिलाओं—दोनों के लिए जीवनभर कैंसर जोखिम राष्ट्रीय औसत से अधिक दर्ज किया गया है।
नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c) केवल 1 और 3
व्याख्या:
- WHO की गाइडेंस के अनुसार 30–50% कैंसर रोके जा सकते हैं, अतः कथन 1 सत्य है। ICMR-NCDIR के अंतर्गत सक्रिय रजिस्ट्रियाँ अभी लगभग 10–18% आबादी को ही कवर करती हैं, इसलिए कथन 2 असत्य है। मिज़ोरम में पुरुष (≈21.1%) और महिलाएँ (≈18.9%)—दोनों का लाइफ़टाइम जोखिम राष्ट्रीय औसत (~11%) से अधिक है, इसलिए कथन 3 सत्य है।
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Topic : जनगणना 2027 के लिए गृह मंत्रालय द्वारा ₹14,619 करोड़ बजट प्रस्ताव |
चर्चा में क्यों :
- भारत सरकार ने आगामी 16वीं दशकीय जनगणना (स्वतंत्रता के बाद आठवीं) की तैयारी शुरू कर दी है।
- गृह मंत्रालय (MHA) ने इस कार्य हेतु ₹14,618.95 करोड़ का बजट मांगा है।
- यह पहली बार होगा जब भारत में डिजिटल जनगणना की जाएगी और इसमें जाति-आधारित आंकड़े भी इलेक्ट्रॉनिक रूप से दर्ज किए जाएंगे।
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UPSC पाठ्यक्रम:
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जनगणना क्या है?
- जनगणना एक ऐसी संगठित, व्यापक और नियमित प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी देश या क्षेत्र की जनसंख्या, उनके सामाजिक, आर्थिक, और सांख्यिकीय लक्षणों का आंकड़ा एकत्र किया जाता है।
- यह कार्य सरकार द्वारा एक निश्चित अंतराल (भारत में हर 10 वर्ष) पर किया जाता है।
- “जनगणना वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी देश या क्षेत्र की पूरी जनसंख्या का गणना करके उनकी आयु, लिंग, धर्म, भाषा, शिक्षा, व्यवसाय, निवास, आदि की जानकारी एकत्र की जाती है।”
भारत में इससे संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- भारत में जनगणना का संचालन जनगणना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत किया जाता है।
- संविधान में ‘जनगणना’ शब्द स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव सीधे तौर पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्रचना से जुड़े हुए हैं:
- अनुच्छेद 82: प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा की सीटों का राज्यों के बीच पुनः वितरण।
- अनुच्छेद 170: राज्य विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण।
- अनुच्छेद 81(2): प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुपात में लोकसभा सीटें मिलनी चाहिए (आधार पिछली जनगणना के आंकड़े होंगे)।
- संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘जनगणना’ को संघ सूची (Union List) में रखा गया है, जिससे यह केंद्र सरकार का विषय बनता है।
भारत में जनगणना का इतिहास
- भारत में आधुनिक जनगणना की शुरुआत औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक नियंत्रण और राजस्व व्यवस्था को बेहतर बनाना था।
- समय के साथ यह प्रक्रिया सामाजिक-आर्थिक योजना और नीति निर्माण का आधार बन गई।
मुख्य ऐतिहासिक पड़ाव:
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वर्ष |
घटना |
विशेष विवरण |
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1872 |
पहली बार जनसंख्या का रिकॉर्ड |
लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में आंशिक गणना की गई थी। यह पूरे भारत में एकसाथ नहीं की गई थी। |
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1881 |
पहली संगठित और पूर्ण जनगणना |
लॉर्ड रिपन के कार्यकाल में की गई, और इसे हर 10 वर्षों में करने की परंपरा शुरू हुई। |
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1891–1931 |
नियमित जनगणनाएँ |
जातियों, धर्म, लिंग, व्यवसाय आदि के विस्तृत आंकड़े जुटाए गए। |
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1931 |
अंतिम विस्तृत जातीय जनगणना |
इसी के आधार पर मंडल आयोग (1980) ने OBC का अनुमान लगाया। |
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1941 |
युद्ध के कारण बाधित |
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सीमित जनगणना हुई, और आंकड़ों की गुणवत्ता संदिग्ध रही। |
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1951 |
स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना |
इसमें शरणार्थियों की गणना भी हुई और आज़ाद भारत की जनसंख्या का पहला चित्र प्रस्तुत हुआ। |
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1961–2011 |
हर दशक में नियमित जनगणनाएँ |
डिजिटल प्रक्रियाएँ जुड़ती गईं, 2011 में SECC भी शामिल हुआ। |
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2021 |
कोविड-19 के कारण स्थगन |
भारत की 16वीं जनगणना की तैयारी रुकी, अब 2027 में संभावित। |
जनगणना-2027: स्थिति और बजट
बजट माँग (₹14,619 करोड़) — क्या-क्या कवर होगा?
- रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) ने ₹14,618.95 करोड़ का प्रोजेक्ट अनुमान भेजा है।
- यह राशि दोनों चरणों (हाउस-लिस्टिंग/आवास-जनगणना 2026 और जनसंख्या गणना 2027) के लिए है।
- प्रस्तावित मॉडल पहली “डिजिटल जनगणना” का है, समर्पित मोबाइल ऐप, सेल्फ-एन्यूमरेशन (Self-enumeration) विकल्प और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग हेतु वेबसाइट/CMMS जैसी व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
सरकारी स्वीकृतियाँ व समयरेखा/संदर्भ तिथियाँ : केंद्र ने दो-चरणीय जनगणना 2027 के साथ जाति-गणना कराने का निर्णय सार्वजनिक रूप से घोषित किया है ।
‘डिजिटल’ जनगणना क्यों और कैसे?
- उद्देश्य है दक्षता, पारदर्शिता और तेज़ डेटा-प्रोसेसिंग: मोबाइल-ऐप से संग्रह, वेब-पोर्टल पर स्व-गणना, और बड़े पैमाने पर फील्ड-फंक्शनरी प्रशिक्षण।
- यह पेपर-लेस/मिश्रित-मोड पर बल देता है, जिससे कवरेज-गुणवत्ता और समयबद्ध विश्लेषण बेहतर होगा।
भारत में जनगणना कैसे संपादित होती है?
1) पूर्व-गणना (Pre-enumeration) तैयारी
- सीमा-स्थिरीकरण (Boundary Freeze): जनगणना शुरू होने से पहले ज़िले/तहसील/नगर/गाँव की प्रशासनिक सीमाएँ स्थिर कर दी जाती हैं ताकि गणना में गड़बड़ी न हो।
- 2027 के लिए राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों से कहा गया है कि 31 दिसम्बर 2025 तक सभी परिवर्तन निपटा लें; इसके बाद सीमा-परिवर्तन रोके जाएँगे।
- मानचित्र/लेआउट व फ़्रेम: गणनाकर्मी अपने क्षेत्र का लेआउट मैप और Abridged Houselist (AHL) अपडेट करते हैं; यही आगे “जनसंख्या गणना” का आधार फ़्रेम बनता है।
- कर्मी-नियुक्ति व प्रशिक्षण: लगभग 30–34 लाख गणनाकर्मी (मुख्यतः सरकारी स्कूल-शिक्षक व स्थानीय अधिकारी) और पर्यवेक्षक तैनात किए जाते हैं; बहु-स्तरीय प्रशिक्षण/ड्रिल आयोजित होती है।
- कानूनी ढाँचा व गोपनीयता: कार्यवाही Census Act, 1948 के तहत होती है; धारा 15 के अनुसार व्यक्तिगत प्रविष्टियाँ पूरी तरह गोपनीय हैं और न्यायालय में साक्ष्य के तौर पर उपयोग नहीं की जा सकतीं।
2) चरण-1: गृह-सूचीकरण व आवास जनगणना
- क्या किया जाता है? हर इमारत/मकान (आवासीय, ख़ाली, गैर-आवासीय) की सूची बनती है और नंबर दिए जाते हैं। आवास की स्थिति (दीवार/छत की सामग्री, कमरों की संख्या, स्वामित्व), सुविधाएँ (पीने का पानी, बिजली, शौचालय, रसोई ईंधन), व परिवार के पास उपलब्ध परिसंपत्तियाँ (टीवी/फ़ोन/कंप्यूटर/वाहन आदि) दर्ज की जाती हैं।
- 2027 की समय-खिड़की: यह चरण अप्रैल–सितम्बर 2026 में नियोजित है (राज्यों को विंडो के भीतर लचीलापन)।
- नयी तकनीक: इस बार डिजिटल-फ़र्स्ट मॉडल—मोबाइल-ऐप/वेब-पोर्टल से self-enumeration (स्व-गणना) व रीयल-टाइम मॉनिटरिंग की व्यवस्था; साथ ही इमारतों का geo-tagging प्रस्तावित है ताकि कवरेज/लोकेशन-एक्युरेसी बेहतर हो।
3) चरण-2: जनसंख्या गणना
- हिमालयी/बर्फ़ीले/कठिन क्षेत्र (जैसे लद्दाख, J&K, HP, UK): इन क्षेत्रों में गणना सितम्बर 2026 में कराई जाएगी।
- क्या पूछा जाता है? हर व्यक्ति के स्तर पर नाम, आयु/जन्म-तिथि, लिंग, वैवाहिक स्थिति, परिवार-मुख्य से संबंध, शिक्षा, व्यवसाय, जन्म-स्थान/निवास-स्थान, धर्म, भाषा, दिव्यांगता, प्रवासन आदि दर्ज होते हैं।
- 2027 में पहली बार जाति-आधारित विवरण भी शामिल किया गया है (1931 के बाद पहला अखिल-भारतीय कास्ट-एन्यूमरेशन)।
- बेघर (Houseless) की गणना: बड़े शहरों में विशेष रात्रि-गणना कर बेघर लोगों को जोड़ा जाता है—यह प्रक्रिया नियमावली/मैनुअल में स्पष्ट है।
जातीय जनगणना क्या है? भारत में इसका इतिहास
- जातीय जनगणना का तात्पर्य है – किसी जनगणना के दौरान व्यक्तियों की जातियों को औपचारिक रूप से दर्ज करना।
- भारत जैसे सामाजिक रूप से विविध देश में, जाति आर्थिक और सामाजिक अवसरों को बहुत प्रभावित करती है।
ऐतिहासिक क्रम:
- 1881–1931: ब्रिटिश काल में प्रत्येक जनगणना में जातियों का विस्तृत उल्लेख होता था।
- 1931: अंतिम व्यापक जातीय जनगणना, जिसने बाद की आरक्षण नीतियों को प्रभावित किया।
- 1951 के बाद: भारत सरकार ने सभी जातियों की गिनती बंद कर दी (केवल SC/ST को छोड़कर)।
- 1980: मंडल आयोग ने सुझाव दिया था कि OBC की जनसंख्या का सटीक पता लगाने हेतु जातीय जनगणना दोबारा की जानी चाहिए।
- 2011: सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (SECC) आयोजित की गई लेकिन इसकी जातीय जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
- 2023: बिहार सहित कुछ राज्यों ने अपनी-अपनी जातीय सर्वेक्षण कर डाले, जिससे जातीय जनगणना की मांग को नया बल मिला।
सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (SECC) 2011:
- SECC 2011 भारत सरकार द्वारा 2011 में कराई गई एक अलग और विशेष जनगणना प्रक्रिया थी, जिसका उद्देश्य था देश के प्रत्येक परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के साथ-साथ जातीय संरचना की जानकारी एकत्र करना।
SECC 2011 के उद्देश्य :
- प्रत्येक परिवार की आर्थिक स्थिति (जैसे आय, मकान, जमीन, रोजगार आदि) की जानकारी प्राप्त करना।
- परिवार के मुखिया की जाति को दर्ज करना।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों दोनों को कवर करना।
सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना की 2011 प्रमुख विशेषताएँ
- यह जनगणना, परंपरागत जनगणना (जो रजिस्ट्रार जनरल करता है) से अलग थी।
- इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित किया गया।
- इसमें SC/ST/OBC/सामान्य – सभी श्रेणियों के जातीय आंकड़े दर्ज किए गए।
- लेकिन सरकार ने इन आंकड़ों को ‘त्रुटिपूर्ण’ बताते हुए सार्वजनिक नहीं किया।
- इस प्रकार SECC 2011 भारत की एकमात्र प्रयास था जिसमें जातियों की गिनती की गई, लेकिन वह भी पूर्ण रूप से सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं हो सका।
SECC 2011 का महत्व:
- यह 1931 के बाद पहली बार था जब सरकार ने OBC सहित सभी जातियों की जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया।
- यह नीति निर्माण के लिए एक महत्त्वपूर्ण संसाधन हो सकता था, लेकिन जातीय डेटा को सार्वजनिक न करने के कारण यह अपने उद्देश्य को पूरी तरह पूरा नहीं कर सका।
मंडल आयोग और उसकी सिफारिशें
- मंडल आयोग की स्थापना 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल में की गई थी। इसके अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल थे।
- इसका उद्देश्य था – ‘सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की पहचान करना।
मुख्य सिफारिशें:
- OBC की अनुमानित जनसंख्या: कुल जनसंख्या का लगभग 52%।
- आरक्षण की अनुशंसा: केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में OBC के लिए 27% आरक्षण। SC (15%) और ST (7.5%) के साथ कुल आरक्षण 49.5% तक सीमित रहे।
- सांख्यिकीय अद्यतन: आयोग ने सिफारिश की कि अगले 10 वर्षों में एक ताज़ा जातीय जनगणना कराई जाए।
कार्यान्वयन:
- 1990 में प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने 27% OBC आरक्षण लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध और सामाजिक बहस हुई।
इंद्रा साहनी निर्णय (1992)
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने नौ-न्यायाधीशों की पीठ के माध्यम से मंडल आयोग की सिफारिशों पर निर्णय दिया।
मुख्य निर्णय:
- 27% OBC आरक्षण को वैध ठहराया।
- क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू की, यानी OBC वर्ग के समृद्ध वर्ग को आरक्षण से बाहर रखा जाए।
- आरक्षण की सीमा 50% तक सीमित की गई (SC, ST और OBC मिलाकर)।
- केवल सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन को ही आरक्षण का आधार माना गया (आर्थिक पिछड़ापन नहीं)।
वर्तमान समय में जातीय जनगणना को लेकर सार्वजनिक मांग क्यों उठ रही है?
- नीतियों की सटीकता हेतु: जातीय आंकड़ों के अभाव में सरकारें केवल अनुमान के आधार पर आरक्षण और कल्याण योजनाएं बनाती हैं, जिससे वास्तविक जरूरतमंद पीछे छूट सकते हैं।
- न्यायिक मांग: सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में यह स्पष्ट किया है कि आरक्षण जैसे संवेदनशील विषयों में मात्रात्मक आंकड़े आवश्यक हैं, जैसे कि इंद्रा साहनी केस (1992) और मराठा आरक्षण केस (2021)।
- ऐतिहासिक सुधार की आवश्यकता: 1931 के बाद भारत में कोई विस्तृत जातीय जनगणना नहीं हुई। मंडल आयोग ने भी सुझाव दिया था कि OBC की सटीक संख्या जानने के लिए नई जातीय जनगणना होनी चाहिए।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व का निर्धारण: लोकतंत्र में किसी भी सामाजिक समूह का प्रभाव उसकी जनसंख्या संख्या पर निर्भर करता है। इसलिए जातीय जनसंख्या जानने से उनकी राजनीतिक और प्रशासनिक हिस्सेदारी का न्यायसंगत निर्धारण संभव हो सकेगा।
पंजीयक महानिदेशक एवं जनगणना आयुक्त (RGI) के बारे में
1) संस्थागत संरचना (Organizational Setup)
- Office of the Registrar General & Census Commissioner of India (ORG&CCI) गृह मंत्रालय के अधीन भारत सरकार का स्थायी कार्यालय है।
- स्वतंत्रता के बाद अलग-अलग दशकीय जनगणनाओं के लिए बनने वाली अस्थायी व्यवस्थाओं के स्थान पर इसे स्थायी संस्था के रूप में स्थापित किया गया, ताकि जनगणना के अलावा जनसांख्यिकीय आँकड़ों का सतत संकलन व विश्लेषण होता रहे।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है; प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में Directorate of Census Operations फील्ड-क्रियान्वयन देखता है।
- श्री मृ्त्युंजय कुमार नारायण, IAS वर्तमान Registrar General & Census Commissioner हैं; केंद्र ने इनका कार्यकाल अगस्त 2026 तक बढ़ाया है।
2) वैधानिक आधार (Legal Framework)
- Census Act, 1948: RGI को भारत में आवास व जनसंख्या जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार देता है; अधिनियम की धारा 15 के तहत व्यक्तिगत सूचनाएँ गोपनीय हैं।
- Registration of Births & Deaths (RBD) Act, 1969: RGI को देश-व्यापी Civil Registration System (CRS) के समन्वय की ज़िम्मेदारी देता है ; राज्यों के Chief Registrars के साथ पंजीकरण गतिविधियों का समन्वय/एकरूपीकरण तथा वार्षिक रिपोर्ट का प्रकाशन RGI की भूमिका में है।
- Citizenship Act, 1955 व Citizenship Rules, 2003: केंद्र ने RGI को National Registration Authority/Registrar General of Citizen Registration नामित किया है; इसी ढाँचे के अंतर्गत National Population Register (NPR) का सृजन/अपडेट होता है।
3) भूमिका व पदानुक्रम (Role & Hierarchy)
- RGI का पद: सामान्यतः अतिरिक्त सचिव-स्तरीय वरिष्ठ सिविल सेवक; मुख्यालय से नीति/योजना/मानक संचालन प्रक्रिया तय होती है और राज्य निदेशालय फील्ड-क्रियान्वयन करते हैं।
- जनगणना काल में बड़े पैमाने पर निदेशक, संयुक्त निदेशक, पर्यवेक्षकों, गणनाकर्मियों और डेटा-प्रसंस्करण कर्मियों का नेटवर्क कार्य करता है।
4) RGI के प्रमुख कार्य (Powers & Functions)
(A) दशकीय Census का संचालन
- योजना से प्रकाशन तक: प्रश्नावली/मैनुअल तैयार करना, राज्यों से समन्वय, गणनाकर्मियों की नियुक्ति/प्रशिक्षण, फील्ड-ऑपरेशंस, डेटा-सुरक्षा व अधिसूचनाएँ जारी करना; अंततः प्रावधिक/अंतिम आँकड़ों का प्रकाशन।
- ये सभी कार्य Census Act, 1948 के अंतर्गत होते हैं।
(B) नागरिक पंजीकरण प्रणाली (Civil Registration System – CRS)
- देश-व्यापी जन्म-मृत्यु पंजीकरण की निगरानी/समन्वय; राज्यों को दिशा-निर्देश; वार्षिक Vital Statistics Report (जन्म-मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर आदि) का संकलन/प्रकाशन।
- यह कार्य RBD Act, 1969 के प्रावधानों के अंतर्गत RGI द्वारा संचालित होता है।
(C) नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System – SRS)
- दोहरे अभिलेखन (Dual Record) पद्धति पर आधारित राष्ट्रीय नमूना-तंत्र, जिसमें लगातार स्थानीय गणनाकर्मी और स्वतंत्र अर्धवार्षिक सर्वे दोनों से जन्म-मृत्यु दर्ज किए जाते हैं; इससे Birth/Death Rate, IMR, MMR जैसी विश्वसनीय वार्षिक दरें मिलती हैं।
- SRS का संचालन ORGI करता है।
(D) राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register – NPR)
- Citizenship Rules, 2003 के तहत देश के सामान्य निवासियों (usual residents) का रजिस्टर; RGI को National Registration Authority/RGCR के रूप में यह जिम्मेदारी सौंपी गई है,NPR का संकलन/अपडेट तथा संबंधित प्रक्रियाएँ।
(E) भाषाई/मातृभाषा सर्वेक्षण
- जनगणना-उपरांत Language Division द्वारा Linguistic Survey of India और Mother Tongue Survey of India के अंतर्गत भाषाओं/उपभाषाओं का दस्तावेज़ीकरण व विश्लेषण।
5) क्यों RGI भारत की जनसांख्यिकीय व्यवस्था का “केंद्रीय स्तंभ” है?
- RGI केवल हर दस वर्ष पर जनगणना ही नहीं कराता, बल्कि CRS/SRS के ज़रिए अंतर-जनगणना काल में भी सतत जनसंख्या-गतिशीलता पर आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध कराता है; साथ ही NPR व भाषाई सर्वे जनांकीय-प्रशासनिक पहचान व सांस्कृतिक-भाषाई परिदृश्य समझने के लिए आधार रचते हैं,यही समेकित ढाँचा नीति-निर्माताओं को विश्वसनीय, तुलनात्मक और समयानुकूल डेटा प्रदान करता है।
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प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- भारत में जनगणना का संचालन Census Act, 1948 के अंतर्गत किया जाता है, जिसमें व्यक्तिगत सूचनाओं को गोपनीय रखने का प्रावधान है।
- जनगणना केवल राज्य सरकारों के अधीन विषय है और इसे राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कानून से नियंत्रित किया जाता है।
- जनगणना-2027 पहली डिजिटल जनगणना होगी और इसमें 1931 के बाद पहली बार जाति-आधारित विवरण भी शामिल किया जाएगा।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर : (c) केवल 1 और 3
व्याख्या :
- भारत में जनगणना का संचालन Census Act, 1948 के अंतर्गत किया जाता है। इस अधिनियम की धारा 15 के अनुसार व्यक्तिगत सूचनाएँ पूरी तरह गोपनीय होती हैं और न्यायालय में भी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं की जा सकतीं।
- संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार जनगणना संघ सूची (Union List) का विषय है, इसलिए इसका संचालन केंद्र सरकार करती है, न कि राज्य सरकारें।
- जनगणना-2027 पहली Digital Census होगी और इसमें पहली बार self-enumeration (स्व-गणना), मोबाइल-ऐप आधारित डाटा-एंट्री और जाति-आधारित गणना भी होगी। यह 1931 के बाद पहली अखिल-भारतीय जातीय जनगणना होगी।
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ESA सौर ऑर्बिटर ने सूर्य के ऊर्जा कणों का स्रोत खोजा |
चर्चा में क्यों:- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के सौर (Solar) ऑर्बिटर ने हाल ही में सूर्य से फेंके गए ऊर्जावान इलेक्ट्रॉन्स (Solar Energetic Electrons, SEEs) के स्रोतों को स्पष्ट रूप से पहचाना है, जिससे अंतरिक्ष मौसम (space weather) की समझ में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है । यह विकास उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और संचार प्रणालियों के लिए जोखिम न्यूनीकरण (risk mitigation) और भविष्य में तैयारियों में सहायक सिद्ध हो सकता है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS III विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण मुख्य परीक्षा: विज्ञान-तकनीक, अंतरिक्ष मौसम का प्रभाव उपग्रह, GPS, पावर ग्रिड और अर्थव्यवस्था पर। |
पृष्ठभूमि / संदर्भ (Background / Context)
- सौर ऊर्जा कणों (Solar Energetic Electrons, SEEs) की उत्पत्ति से जुड़े शोध दशकों से वैज्ञानिक चर्चा का विषय रहे हैं, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं था कि ये ऊर्जावान इलेक्ट्रॉन्स किस तरह की सौर घटनाओं—जैसे सौर ज्वालाएँ (solar flares) या कोरोनल द्रव्यमान निष्कर्षण (CMEs)—से निकले हैं।
- ESA के Solar Orbiter मिशन ने इस रहस्य को सुलझाया है। इस मिशन ने देखा कि दो स्पष्ट श्रेणियाँ हैं:
- Impulsive events: जो सौर ज्वालाओं से जुड़ी छोटी और तीव्र घटनाओं पर आधारित होते हैं।
- Gradual events: जो कोरोनल द्रव्यमान निष्काषण (CMEs), यानी सूर्य के कोरोना से भारी पदार्थों और चुंबकीय क्षेत्रों के विशाल विस्फोट, से संबंधित होते हैं।
- यह उपलब्धि इस मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि Solar Orbiter ने सूर्य के बेहद निकट से इन इलेक्ट्रॉन्स को मापा, जिससे इनके स्रोतों की स्पष्ट पहचान संभव हो पाई—एक ऐसा डेटा सेट जो पहले किसी अन्य मिशन द्वारा उपलब्ध नहीं था।
नीति संबंधी या रणनीतिक प्रासंगिकता (Policy / Strategic Relevance)
यह अध्ययन सीधे तौर पर संवैधानिक अधिकारों से नहीं जुड़ा है, लेकिन इसकी रणनीतिक उपयोगिता कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
1. अंतरिक्ष मौसम और अवसंरचना की सुरक्षा
स्पेस मौसम (Space Weather) में बदलाव—जो SEEs, सौर ज्वालाएँ और CMEs की वजह से उत्पन्न होता है—उपग्रह संचार, GPS नेविगेशन, बिजली ग्रिड और अन्य बुनियादी सेवाओं पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिए:
GPS प्रणाली में सटीकता में गिरावट और सिग्नल रिसेप्शन खोना SPACE WEATHER की सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
एक तीव्र चुम्बकीय तूफान ने कैनेडा में मार्च 1989 में लगभग नौ मिलियन लोगों को बिजली से वंचित कर दिया था।
2. पूर्व चेतावनी और आपदा प्रबंधन
सटीक स्पेस मौसम पूर्वानुमान (Forecasting) जीवन रक्षक हो सकते हैं। ताकि:
उपग्रह और अंतरिक्ष यात्रियों को खतरे से पहले सतर्क किया जा सके।
विद्युत ग्रिड संचालकों को संभावित खतरों के लिए तैयार रहने में मदद मिल सके।
3. रणनीतिक और वैज्ञानिक सहयोग
ESA और NASA के साझा मिशन—Solar Orbiter—वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग का प्रतीक है। इस तरह के मिशन नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर:
तकनीकी साझेदारी और डेटा साझा करने की रणनीतियों में,
अंतर्राष्ट्रीय स्पेस गवर्नेंस फ्रेमवर्क (जैसे Outer Space Treaty) और भविष्य के प्रयासों में।
हालिया घटनाक्रम (Recent Developments)
1. 300 से अधिक SEE घटनाओं का निरीक्षण
ESA के Solar Orbiter मिशन ने नवंबर 2020 से दिसंबर 2022 के बीच 303 से अधिक Solar Energetic Electron (SEE) घटनाओं को सफलतापूर्वक रिकॉर्ड किया। यह अब तक का सबसे व्यापक डेटासेट है, और इसका पहला डेटा-रिलीज़ CoSEE‑Cat (Comprehensive Solar Energetic Electron Catalogue) में शामिल किया गया है।
इस डेटा संग्रहण में Solar Orbiter के 10 उपकरणों में से 8 का उपयोग हुआ, जिससे एक स्तरित और सटीक अवलोकन संभव हुआ।
2. दो स्पष्ट श्रेणियाँ: Impulsive और Gradual
अध्ययन ने SEE घटनाओं को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया है:
इम्पल्सिव (Impulsive): तात्कालिक और तीव्र—जो कि सौर ज्वालाओं (solar flares) से उत्पन्न होती हैं।
ग्रैजुअल (Gradual): अधिक व्यापक और धीरे-धीरे—जो कि कोरोनल द्रव्यमान निष्कार्शण (CMEs) से जुड़ी होती हैं।
यह पहली बार है जब वैज्ञानिकों ने इन्हें इतना स्पष्ट रूप से पृथक करते हुए देखा है, Solar Orbiter के निकटवर्ती अवलोकन की क्षमता की वजह से।
3. यात्रा में देरी (Time Lag) का विवरण
SEE की शुरुआत और उनके अंतरिक्ष में पहुंचने के बीच एक समयांतराल (lag) देखा गया, जो कुछ मामलों में घंटों तक हो सकता है।
यह देरी दो प्रमुख कारणों से हो सकती है:
रिलीज़ में देरी—यानी इलेक्ट्रॉन्स सूर्य से निकलने में समय लेते हैं।
डिटेक्शन में देरी—Path पर मौजूद सोलर विंड और चुंबकीय अशांति (turbulence) इलेक्ट्रॉन्स को विभिन्न दिशाओं में बिखेर देती है, जिससे उनका समय पर पता लगना कठिन होता है।
Solar Orbiter ने विभिन्न दूरी से ये मापन संभव बनाकर इन यात्रा व्यवहारों का अध्ययन किया, जिससे यह लंब-standing वैज्ञानिक सवालों में से एक का उत्तर मिला।
महत्व (Significance of the Issue)
- राष्ट्रीय / वैश्विक हित: सौर खतरों जैसे SEEs और CMEs से उपग्रह, अंतरिक्ष यात्री, और स्वदेशी इंजीनियरिंग संरचनाएं प्रभावित हो सकती हैं—जोकि संचार, नेविगेशन और बिजली ग्रिड जैसे आधारभूत तंत्रों पर प्रभाव डालते हैं।
- दीर्घकालिक रणनीतिक तैयारी: बेहतर स्रोत पहचान से स्पेस मौसम की पूर्व चेतावनी (forecasting) और सुरक्षित मार्गदर्शन संभव है—इससे रक्षा, नौवहन, और नागरिक सुरक्षा प्रणालियाँ अधिक सक्षम बन सकती हैं।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- तकनीकी विवशताएँ: इलेक्ट्रॉन्स के पृथ्वी तक पहुंचने में बाधाएँ, जैसे कि चुंबकीय अशांति और दिशा में बिखराव, यात्रा को जटिल बनाती हैं।
- पूर्वानुमान की सीमा: SEE घटनाओं का विभाजन स्पष्ट हुआ है, लेकिन सही समय पर चेतावनी देने के लिए और अधिक तेज़ और संवेदनशील निगरानी और मॉडलिंग की जरूरत है।
- संविदात्मक और वित्तीय बाधाएँ: नए मिशनों (जैसे Vigil, SMILE) के लिए सुरक्षा, वित्त एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।
सरकारी पहल (Government Initiatives / Schemes)
- प्रकाशन: यह अध्ययन Astronomy & Astrophysics जर्नल में प्रकाशित किया गया है और CoSEE‑Cat (Comprehensive Solar Energetic Electron event Catalogue) नामक डेटाबेस उपलब्ध कराया गया है।
- परिणाम: 300+ SEE घटनाओं का विश्लेषण एवं इलेक्ट्रॉन्स के दो स्रोत की पहचान।
- मिशन इंजीनियरिंग डेटा: Solar Orbiter में 10 वैज्ञानिक उपकरण (instruments) शामिल हैं, जैसे EPD, STIX, EUI, Metis इत्यादि, जो इन घटनाओं को पहचानते एवं मापते हैं।
सरकारी पहल (Government Initiatives / Schemes)
- ESA (European Space Agency) और NASA द्वारा संयुक्त रूप से Solar Orbiter मिशन को संचालित किया जा रहा है, यह संरचना अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मिसाल है।
आने वाले मिशन:
- SMILE (Space‑weather–modulated magnetosphere–Ionosphere Link Explorer), 2026 में लॉन्च, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और सोलर विंड इंटरैक्शन का अध्ययन करेगा।
- Vigil मिशन, 2031 में लॉन्च, सौर गतिविधियों के पार्श्वावलोकन (side view) प्रदान करेगा जिससे संभावित CMEs का आधिकारिक पूर्वानुमान संभव हो सकेगा।
अंतरराष्ट्रीय तुलना (International Best Practices)
- USA / NASA: Parker Solar Probe द्वारा भी SEE घटनाओं और सोलर विंड का अध्ययन चल रहा है; परंतु Solar Orbiter का ध्रुवीय क्षेत्र अवलोकन (polar observation capability) और SEE स्रोतों की स्पष्ट पहचान इसे विशिष्ट बनाती है।
- अन्य विकसित देशों जैसे जापान आदि में—जैसे Hinode मिशन— सौर गतिविधि का अवलोकन होता है, परंतु ESA-NASA की संयुक्त पहल SEE स्रोत पहचान में अब तक सबसे व्यापक और सटीक मानी जा रही है।
नैतिक व संवैधानिक आयाम (Ethical / Constitutional Dimensions)
- नैतिक दायित्व: अंतरिक्ष में निवेश और सुरक्षा को सुनिश्चित करना—स्पेशल रूप से अंतरिक्ष यात्रियों, अंतरिक्ष संपत्ति, और पृथ्वी पर हमलों के खतरों से लोगों की रक्षा करना—यह वैश्विक नैतिक उत्तरदायित्व का हिस्सा है।
- संवैधानिक संदर्भ: भारत सहित किसी भी देश की संविधान व्यवस्था में सुरक्षा और नागरिक सेवाओं की प्रतिबद्धता, यहां अंतरिक्ष से उत्पन्न खतरों से रक्षा की दिशा में मजबूत होती है।
आगे की राह (Way Forward)
- स्पेस मौसम मॉडलिंग में सुधार: SEE स्रोतों की पहचान को ध्यान में रखकर बेहतर और तेज़ पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग का विस्तार: भारत सहित अन्य अंतरिक्ष संगठनों (जैसे ISRO) के साथ डेटा साझा करना और संयुक्त मिशनों की तैयारी करना।
- रोकथाम प्रणाली: उपग्रहों के डिजाइन में SEE के लिए अतिरिक्त सुरक्षा (shielding) और एहतियाती उपाय शामिल करना।
- शिक्षा और जागरूकता: वैज्ञानिकों, नीतिकारों, और समाज में अंतरिक्ष मौसम के प्रभाव और उसके प्रबंधन पर प्रचार-प्रसार बढ़ाना।
प्रश्न: ESA के Solar Orbiter मिशन से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- Solar Orbiter मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और NASA का संयुक्त मिशन है।
- इस मिशन ने सूर्य से निकलने वाले Solar Energetic Electrons (SEEs) के दो मुख्य स्रोत—सौर ज्वालाएँ (Impulsive events) और कोरोनल द्रव्यमान निष्कर्षण (Gradual events)—की स्पष्ट पहचान की है।
- Solar Orbiter मिशन का प्रमुख उद्देश्य केवल पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर और सौर वायु (Solar Wind) की परस्पर क्रिया का अध्ययन करना है।
नीचे दिए गए कूट (Code) का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए :
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3
उत्तर : (A) केवल 1 और 2
व्याख्या :
- कथन 1 सही है क्योंकि Solar Orbiter ESA और NASA का संयुक्त मिशन है।
- कथन 2 सही है क्योंकि इस मिशन ने पहली बार स्पष्ट रूप से SEEs के दो स्रोत—Impulsive events (सौर ज्वालाएँ) और Gradual events (CMEs)—को वर्गीकृत किया।
- कथन 3 गलत है क्योंकि यह उद्देश्य ESA के आगामी SMILE मिशन (2026) का है, जबकि Solar Orbiter का प्रमुख लक्ष्य सूर्य के नज़दीक जाकर उसके वातावरण और ऊर्जा कणों का अध्ययन करना है।
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Topic : कुछ नदियाँ एकल रहती हैं, जबकि अन्य विभाजित क्यों होती हैं: भूगोलवेत्ताओं की खोज |
चर्चा में क्यों:-
- आज, जलवायु परिवर्तन और तीव्र जल‑मौसमीय घटनाओं के दौर में बाढ़ एवं नदी विन्यास की समझ अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुकी है।
- हाल ही में प्रकाशित यूसीएसबी (University of California, Santa Barbara) के भूगोल विशेषज्ञों और सहयोगियों द्वारा किया गया एक अध्ययन इस रहस्य पर प्रकाश डालता है कि क्यों कुछ नदियाँ एकल धारा में प्रवाहित होती हैं, जबकि अन्य बहु-धाराओं में विभाजित हो जाती हैं। इस शोध ने नदी भू‑आकृति विज्ञान के एक शत‑पुराने प्रश्न का उत्तर दिया है और बाढ़ प्रबंधन में नई दिशा प्रकाशित की है।
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UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: GS3 अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण मुख्य परीक्षा: नदी भू-आकृति विज्ञान, जल संसाधन प्रबंधन, बाढ़ जोखिम, भूजल स्तर अनुकूलन |
पृष्ठभूमि / संदर्भ (Background / Context)
1.नदियाँ दो प्रमुख रूपों में प्रवाहित होती हैं:
एकल-धारात्मक (Single-threaded)—जहाँ नदी एक स्थिर और संकीर्ण मार्ग में बहती है।
बहु-धारात्मक (Multi-threaded)—जहाँ नदी का प्रवाह कई बारिक धाराओं में विभाजित हो जाता है।
परंपरागत रूप से माना जाता था कि स्थलाकृति, जलवायु स्थिति, तलछट प्रकार और प्रवाह दर जैसे कारक इन स्वरूपों को निर्धारित करते हैं, लेकिन स्पष्ट और यांत्रिक (mechanistic) व्याख्या उपलब्ध नहीं थी। UCSB (University of California, Santa Barbara) के भूगोलवेत्ताओं ने इस शत‑पुरानी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति की है।
2 .UCSB अध्ययन की खोजें
36 वर्षों और 84 नदियों का विश्लेषण:
शोधकर्ताओं ने 1985–2021 की अवधि में उपग्रह (Landsat) चित्रों का उपयोग करके 84 विभिन्न नदियों में प्रवाह पैटर्न का अध्ययन किया।
3.नवीन तकनीक – Particle Image Velocimetry (PIV):
PIV एक ऑप्टिकल प्रवाह मापन तकनीक है जो तरल में कणों की गति को ट्रैक करती है और दो-आयामी वेक्टर फ़ील्ड उत्पन्न करती है—अब इसे नदियों के कटाव और जमाव के विश्लेषण में भी लागू किया गया है।
4.प्रमुख निष्कर्ष
एकल-धारात्मक नदियाँ संतुलन पर निर्भर होती हैं
इनमें तट अपरदन (erosion) और तटबंधों पर जमाव (accretion) का संतुलन बना रहता है, जिससे नदी की चौड़ाई अपेक्षाकृत स्थिर रहती है। इस संतुलन से नदी समय के साथ धारा बदल सकती है लेकिन विभाजित नहीं होती।
बहु-धारात्मक नदियाँ असंतुलन के कारण विभाजित होती हैं
इसमें अपरदन जमाव से तेज़ होता है, जिस कारण चैनल चौड़ा होता जाए और अंततः विभाजित हो जाए।
इस अध्ययन ने एक सरल और यांत्रिक मॉडल प्रस्तुत किया है: नदियों के स्वरूप का निर्णय उनके किनारों पर होने वाले कटाव और अभिवृद्धि की संतुलन स्थितियों द्वारा होता है—यह भूत्त्विज्ञान में एक मूलभूत समझ प्रदान करता है।
हालिया घटनाक्रम (Recent Developments)
- 36 वर्षों में 84 नदियों का विश्लेषण: UCSB की टीम ने Landsat उपग्रह चित्रों के माध्यम से 84 विभिन्न नदियों (विभिन्न जलवायु, प्रवाह एवं ढलान परिस्थितियों में स्थित) की स्थायी गतिशीलता ट्रैक की।
- खास तकनीकी खोज: उन्होंने पाया कि: एकल-धारात्मक नदियाँ तट अपरदन (erosion) और अभिवृद्धि (accretion) के बीच संतुलन बनाए रखती हैं, जिससे उनकी चौड़ाई स्थिर बनी रहती है।
- बहु-धारात्मक नदियों में यह संतुलन टूट जाता है; अपरदन अभिवृद्धि से तेज़ होता है, जिसके कारण चैनल चौड़ा हो जाता है और अंततः विभाजित होता है।
- PIV तकनीक का नवोन्मेषी उपयोग: PIV—जिसे मूलतः प्रयोगशाला तरल में कणों की गति ट्रैक करने के लिए डिजाइन किया गया था—को उपग्रह चित्रों पर लागू करके नदी किनारों के कटाव और जमाव की दिशा एवं गति मापी गई। इससे लाखों नगण्य वेक्टर (erosion vs accretion measurements) का विश्लेषण संभव हुआ।
महत्व (Significance of the Issue)
- बाढ़ जोखिम और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: बहु-धारात्मक नदियाँ व्यापक बाढ़-मैदान, गतिशील बाढ़ व्यवहार, और परिवर्तनीय नदी पथों के कारण अधिक खतराजनक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से अमूल्य होती हैं। यह समझ बाढ़ भविष्यवाणी, नदी पुनर्स्थापन और जल संसाधनों की स्थिरता के लिए निर्णायक है।
- भारत के संदर्भ में उपयोगिता: गंगा और ब्रहमपुत्र जैसी बहु-धारात्मक नदियाँ जैसे पटना, फरक्का, पाकिस्तान के पास और ब्रह्मपुत्र के विभिन्न खंडों में अध्ययन किए गए—जिनमें तेज़ किनारा कटाव देखा गया है। मानव-निर्मित तटबंध इन परिवर्तनशीलता को और बढ़ाते हैं।
- प्राकृतिक समाधान एवं लागत: अध्ययन ने यह भी बताया कि बहु-धारात्मक नदियों को उनकी प्राकृतिक स्थिति में लौटाने के लिए कम स्पेस और समय की आवश्यकता होती है—इससे पुनर्स्थापन लागत घटती है।
चुनौतियाँ (Challenges / Issues)
- धारणाओं का टूटना: पारंपरिक बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल यह मानते हैं कि नदी चैनल की चौड़ाई–गहराई स्थिर रहती है। यह नया अध्ययन इस धारणा की त्रुटियों को उजागर करता है।
- मानवीय हस्तक्षेप: भारत में तटबंध, बांध, तलछट खनन और प्राकृतिक फ्लडप्लेन से पृथक्करण ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया है, जिससे जोखिम बढ़ा है।
डेटा और रिपोर्ट
- वैज्ञानिक संदर्भ: अध्ययन Science जर्नल में प्रकाशित हुआ है—Single- and multithread rivers originate from balance between lateral erosion and accretion शीर्षक से।
- तकनीक और डेटा: 36 वर्षों का Landsat imagery डेटा, Google Earth Engine का उपयोग, और PIV तकनीक द्वारा बैंक स्तर पर कटाव और अभिवृद्धि का डेटा संग्रह। लाखों छोटे वेक्टर का विश्लेषण किया गया।
सरकारी पहल (Government Initiatives / Schemes)
- फिलहाल भारत सरकार द्वारा कोई विशेष योजना अभी तक संचालित नहीं की गई है।
- इसके बावजूद, यह अध्ययन प्राकृतिक नदी प्रबंधन (nature-based solutions) जैसे केंद्र या राज्य स्तर की जल-निवारक आधार संरचना नीति, आबादी-सुखाद बाढ़ प्रबंधन योजना, और नदी पुनर्स्थापन कार्यक्रम में शामिल हो सकता है।
- NITI Aayog, MOEFCC या Central Water Commission इस दिशा में दिशा-निर्देश विकसित कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय तुलना (International Best Practices)
अन्य देश: अमेरिका में मिसिसिपी नदी को एकल-धारात्मक बनाए रखने के लिए बांध और तटबंध उपयोग किए गए, मगर Katrina जैसे उदाहरणों ने विस्मरण को उजागर किया।
Nature-based solutions: अमेरिका, नीदरलैंड आदि देशों में फ्लडप्लेन रिस्टोरेशन, बफर ज़ोन, और våtmarker (wetlands) जैसी रणनीतियाँ अपनायी जा रही हैं, जो अध्ययन में सुझाए गए समाधानों से मेल खाती हैं।
नैतिक व संवैधानिक आयाम (Ethical / Constitutional Dimensions)
निश्चित आजीविका का अधिकार: बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना संविधान में निहित लाइफ (Fundamental Right to Life) से जुड़ा है। सही नदी प्रबंधन से यह अधिकार सुरक्षित होता है।
नैतिक उत्तरदायित्व: प्राकृतिक प्रणाली के साथ सामंजस्यपूर्ण समाधान लागू करना—जैसे तटबंध हटाना, बफर क्षेत्र बढ़ाना—नैतिक और पर्यावरणीय न्याय को परिभाषित करता है।
आगे की राह (Way Forward)
1. उच्च-आवृत्ति डेटा आधारित मॉनिटरिंग (High-Frequency Data-Based Monitoring)
PIV तकनीक का व्यापक उपयोग
Particle Image Velocimetry (PIV), जो मूल रूप से तरल प्रवाह की गति मापने के लिए प्रयोग की जाती है, उपग्रह और ड्रोन-आधारित आंकड़ों के साथ नदी किनारों के कटाव (erosion) व अभिवृद्धि (accretion) को निरंतर मॉनिटर करने में अत्यंत प्रभावी साबित हो रही है। यह तकनीक नदी प्रवाह की गतिशील परिवर्तनीयता को वास्तविक समय में ट्रैक करने में सक्षम बनाती है।
इससे रेटिंग कर्व्स (rating curves) को नियमित रूप से अपडेट किया जा सकता है, जिससे नदी घाटियों की चौड़ाई-गहराई में होने वाले परिवर्तन सही समय पर समझे और मॉडल किए जा सकते हैं।
2. प्राकृतिक समाधान अपनाना (Adopting Nature-based Solutions)
फ्लडप्लेन का पुनर्स्थापन
नदी के प्राकृतिक फ्लडप्लेन को बहाल करना — जैसे कि तटबंधों को हटाना, पुराने जल-नालों (oxbow lakes), दलदली क्षेत्रों और क्यूट्रिब्यूटरी चैनल की पुनर्स्थापना — बाढ़ जोखिम को कम करने, पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य बढ़ाने, और जल-गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होता है।
सिंडिमेंटेशन-एन्हांसिंग रणनीतियाँ (Sedimentation Enhancing Strategies)
पारंपरिक बाँधों और तटबंधों की तुलना में, प्रणाली-आधारित समाधान जैसे कि किनारों पर घास व वनस्पति का उगाना, नदी को प्राकृतिक रूप से सीमित करना, नदी तल में तलछट जमाव को नियोजित करना आदि, अधिक लचीले और टिकाऊ हैं। ये रणनीतियाँ बाढ़ सुरक्षा के साथ-साथ पारिस्थितिक सेवाओं को भी पुनर्जीवित करती हैं।
विकल्प: दिल्ली में Yamuna floodplain की बहाली—विशाल बायोडायवर्सिटी पार्क, जल निकाय, वृक्षारोपण—प्राकृतिक समाधानों की दिशा में अच्छा उदाहरण है।
3. नीतिगत दिशा-निर्देश (Policy Guidelines)
स्पेसिक नीति तैयार करना
केंद्र और राज्य सरकारों को “नदी अभियान नीति” तैयार करनी चाहिए, जिसमें इस अध्ययन के निष्कर्ष शामिल हों—उदाहरण स्वरूप नदी पुनर्स्थापन, फ्लडप्लेन संरक्षा, और PIV जैसे तकनीकों का उपयोग शामिल किया जाए।
बाढ़ प्रबंधन दिशानिर्देश
जैसे NIDM ने बाढ़ प्रबंधन पर दिशा-निर्देश तैयार किए हुए हैं, वैसे ही PIV-आधारित मॉनिटरिंग और प्राकृतिक बहाली के सिद्धांतों को भी पेश किया जाए।
उपयोगी फ्रेमवर्क
Urban River Management Plan (URMP) जैसे NMCG के फ्रेमवर्क में इन सिद्धांतों को शामिल किया जा सकता है।
4. जागरूकता और वैज्ञानिक-प्रशासनिक संवाद (Awareness & Science-Administration Interface)
साक्ष्य-आधारित योजना बनाना
प्रशासन और वैज्ञानिकों के बीच संवाद बढ़ाना जरूरी है ताकि नदी प्रबंधन योजनाएँ डेटा-आधारित और प्रभावी हों।
स्थानीय पुनरुद्धार प्रयासों में वैज्ञानिक सहभागिता
जैसे Tarun Bharat Sangh ने समुदाय-आधारित नदी जुड़ाव और जल प्रबंधन में योगदान दिया है, ऐसे मॉडल भारतीय स्थिति में अपनाए जा सकते हैं।
बाढ-मैदान के जरिये बाढ़ जोखिम में कटौती
विशेषज्ञों ने Vishwamitri और Yamuna जैसी नदियों की फ्लडप्लेन इलाके की पूर्ण पुनर्स्थापना पर जोर दिया है—यह स्पष्ट करता है कि नीति और कार्यान्वयन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कितनी आवश्यकता है।
प्रश्न : नदी भू-आकृति विज्ञान (River Geomorphology) से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- एकल-धारात्मक (Single-threaded) नदियाँ तट अपरदन (erosion) और अभिवृद्धि (accretion) के बीच संतुलन बनाए रखती हैं, जिससे नदी की चौड़ाई अपेक्षाकृत स्थिर रहती है।
- बहु-धारात्मक (Multi-threaded) नदियों में अपरदन की गति अभिवृद्धि से अधिक होती है, जिसके कारण नदी चौड़ी होकर विभाजित हो जाती है।
- Particle Image Velocimetry (PIV) तकनीक का उपयोग नदियों के कटाव और जमाव की दिशा और गति को उपग्रह चित्रों से मापने में किया जाता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए :
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3
उत्तर : (D) 1, 2 और 3
व्याख्या :
- कथन 1 सही है—UCSB अध्ययन के अनुसार एकल-धारात्मक नदियाँ कटाव और जमाव में संतुलन बनाए रखती हैं।
- कथन 2 सही है—जब यह संतुलन टूटता है और कटाव जमाव से अधिक हो जाता है, तो नदी बहु-धाराओं में विभाजित हो जाती है।
- कथन 3 सही है—PIV तकनीक, जो मूलतः तरल प्रवाह की गति मापने हेतु प्रयोग होती थी, अब उपग्रह चित्रों से नदी किनारों के कटाव और जमाव के विश्लेषण में लागू की जा रही है।