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Nirman ias Current Affairs 9 September 2025

Topic : जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों का विवाद

 

 

चर्चा में क्यों :

  • हाल ही में केंद्र के कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव आयोग (EC) के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है जिसमें जम्मू-कश्मीर (J&K) की चार राज्यसभा सीटों की अवधि को क्रमबद्ध (staggered) करने के लिए राष्ट्रपति आदेश जारी करने की सिफारिश की गई थी। 
    • इस फैसले के कारण 2021 से जम्मू-कश्मीर की कोई भी प्रतिनिधित्व राज्यसभा में नहीं है।

UPSC पाठ्यक्रम: 

  • प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजनीति और शासन – संविधान, राजनीतिक व्यवस्था, पंचायती राज, सार्वजनिक नीति, अधिकार मुद्दे
  • मुख्य परीक्षा: GS-II: संघ और राज्यों के कार्य और जिम्मेदारियाँ, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर तक शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसमें चुनौतियाँ।    

 पृष्ठभूमि

1. अनुच्छेद 370 और राज्य का पुनर्गठन

  • संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू–कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था। 
  • इस प्रावधान के अंतर्गत राज्य की अपनी विधानसभा और संविधान था, जिसके आधार पर राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव किया जाता था।
  • 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने इस विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया और जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 लागू किया। इसके परिणामस्वरूप राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया:
    • जम्मू–कश्मीर (विधानसभा सहित)
    • लद्दाख (बिना विधानसभा)
  • इस पुनर्गठन के बाद जम्मू–कश्मीर को राज्यसभा में चार सीटों का प्रतिनिधित्व मिला, जबकि लद्दाख को कोई सीट आवंटित नहीं हुई। 

2. राज्यसभा सीटों का संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 80)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 राज्यसभा की संरचना और सदस्यों की संख्या को परिभाषित करता है।
  • राज्यसभा के सदस्य दो प्रकार से चुने जाते हैं:
    • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से निर्वाचित सदस्यइनका चुनाव संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।
    • राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य कला, साहित्य, विज्ञान और समाजसेवा जैसे क्षेत्रों से।
  • संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य को जनसंख्या के आधार पर सीटें दी जाती हैं। पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के बाद जम्मू–कश्मीर को चार सीटें प्रदान की गईं।

3. जम्मू–कश्मीर के विशेष दर्जे के बाद सीटों की स्थिति

  • अनुच्छेद 370 के हटने से पहले जम्मू–कश्मीर के राज्यसभा सांसद राज्य की विधान सभा द्वारा चुने जाते थे।
  • 2019 में पुनर्गठन के बाद विधानसभा भंग कर दी गई और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
  • इसी दौरान, 2021 में चारों राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो गया। चूँकि उस समय नई विधानसभा मौजूद नहीं थी, इसलिए नए सदस्यों का चुनाव संभव नहीं हुआ।
  • यद्यपि सितंबर–अक्टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं, फिर भी अब तक राज्यसभा चुनाव नहीं कराए गए हैं।
  • इसके कारण जम्मू–कश्मीर पिछले चार वर्षों से राज्यसभा में पूरी तरह से प्रतिनिधित्व विहीन बना हुआ है।  

जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर हालिया विवाद और संवैधानिक पहलू

हालिया विवाद (Recent Developments)

1. कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के बीच मतभेद

  • चुनाव आयोग ने वर्ष 2025 में यह सुझाव दिया कि जम्मू–कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों के कार्यकाल को क्रमबद्ध (staggered) करने के लिए राष्ट्रपति आदेश जारी किया जाए, ताकि सभी सीटें एक साथ रिक्त न हों। 
  • लेकिन कानून और न्याय मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वर्तमान कानून, विशेषकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951) में इस प्रकार के आदेश का कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
  •  मंत्रालय का यह भी कहना था कि यदि ऐसा करना है तो संसद को विधायी संशोधन करना होगा और यह प्रावधान केवल जम्मू–कश्मीर के लिए नहीं बल्कि उन सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए लागू होना चाहिए जिनकी राज्यसभा सीटों का कार्यकाल एक साथ समाप्त होता है। 

2. राज्यसभा चुनावों की प्रक्रिया और जम्मू–कश्मीर की विशेष परिस्थिति

  • राज्यसभा के चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation by means of Single Transferable Vote) के आधार पर होते हैं, जिसमें संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य मतदान करते हैं। 
  • जम्मू–कश्मीर में वर्ष 2019 में पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद विधानसभा भंग कर दी गई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 
  • इस अवधि में वर्ष 2021 में चारों राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो गया और नई विधानसभा के अभाव में चुनाव नहीं हो सका। 
  • सितंबर–अक्टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं, लेकिन अब तक राज्यसभा चुनाव नहीं कराए गए हैं। 
  • इस कारण जम्मू–कश्मीर पिछले चार वर्षों से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व से वंचित है। 

संवैधानिक और कानूनी पहलू  

1. अनुच्छेद 324 – चुनाव आयोग की स्वतंत्रता

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र रूप से चुनाव कराने की शक्ति प्रदान करता है। 
  • इस अनुच्छेद में स्पष्ट किया गया है कि चुनाव आयोग संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण करेगा। 
  • हालांकि, जब चुनावी प्रक्रिया किसी विशेष कानून, जैसे कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 द्वारा सीमित हो जाती है, तब चुनाव आयोग अपने अधिकार का उपयोग केवल उसी दायरे में कर सकता है।
  • यही कारण है कि जम्मू–कश्मीर के मामले में चुनाव आयोग को राष्ट्रपति आदेश की आवश्यकता पड़ी, जिसे कानून मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया। 

2. अनुच्छेद 80(4) और राज्यसभा चुनाव

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80(4) यह प्रावधान करता है कि राज्यसभा के सदस्य राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाएंगे। 
  • इसका अर्थ यह है कि जब तक विधानसभा अस्तित्व में नहीं होगी, तब तक राज्यसभा चुनाव संभव नहीं हो सकते।
  •  जम्मू–कश्मीर के मामले में यह स्थिति वर्ष 2019 से 2024 तक बनी रही, जिसके कारण राज्यसभा चुनाव टल गए और क्षेत्र राज्यसभा में प्रतिनिधित्व से वंचित हो गया। 

3. सुप्रीम कोर्ट और संविधान पीठ के प्रासंगिक निर्णय

  • केशवानंद भारती बनाम राज्य केरल (1973): इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): इस फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन केवल अस्थायी उपाय है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बहाली शीघ्र की जानी चाहिए।
  • जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन से संबंधित याचिकाएँ (2020–2023): संविधान पीठ ने यह माना कि संसद के पास पुनर्गठन करने का अधिकार है, किंतु लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को लंबे समय तक बाधित करना संविधान की भावना के विपरीत है।

जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर विवाद के प्रमुख मुद्दे (Key Issues)

1. प्रतिनिधित्व का अभाव और लोकतांत्रिक घाटा

  • जम्मू–कश्मीर की चार राज्यसभा सीटें 2021 से रिक्त हैं, जिसके कारण इस केंद्रशासित प्रदेश का संसद के उच्च सदन में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 
  • इससे वहाँ की जनता की आवाज़ राष्ट्रीय स्तर पर दब गई है और यह स्थिति एक गंभीर लोकतांत्रिक घाटा (Democratic Deficit) उत्पन्न करती है। 

2. संघ–राज्य संबंधों में तनाव

  • भारतीय संविधान का ढांचा संघीय (Federal) होते हुए भी एकात्मक झुकाव (Unitary Bias) रखता है। 
  • जम्मू–कश्मीर के मामले में लंबे समय तक राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का न होना संघ और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के बीच विश्वास को कमजोर करता है। 
  • इससे यह संदेश जाता है कि केंद्र ने लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व बहाल करने में देरी की है। 

3. चुनाव आयोग की स्वायत्तता बनाम कार्यपालिका का हस्तक्षेप

  • संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्ति देता है।
  • किंतु, जब आयोग ने राष्ट्रपति आदेश के माध्यम से सीटों की अवधि को क्रमबद्ध करने का सुझाव दिया, तो कानून मंत्रालय ने इसे अस्वीकार कर दिया। 
  • यह प्रकरण चुनाव आयोग की स्वायत्तता और कार्यपालिका (Executive) के हस्तक्षेप के बीच तनाव को उजागर करता है। 

जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर विवाद के प्रभाव (Implications)

1. जम्मू–कश्मीर की लोकतांत्रिक प्रक्रिया

  • राज्यसभा चुनाव न होने से जम्मू–कश्मीर की जनता राष्ट्रीय नीति–निर्माण में हिस्सेदारी से वंचित रही है। यह स्थिति लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असंतुलन पैदा करती है और स्थानीय जनता में असंतोष को बढ़ा सकती है। 

2. संघीय ढांचे पर प्रभाव

  • संघीय ढांचे की बुनियाद यह है कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त करें।
  • जम्मू–कश्मीर का प्रतिनिधित्व विहीन होना इस ढांचे को कमजोर करता है और संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) सिद्धांत को चुनौती देता है। 

3. भारत की लोकतांत्रिक छवि पर असर

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में देखा जाता है। 
  • यदि किसी केंद्रशासित प्रदेश का लगातार चार वर्षों तक संसद में प्रतिनिधित्व नहीं होता, तो इससे भारत की लोकतांत्रिक छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है।

जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर विवाद पर सरकार और संस्थागत दृष्टिकोण  

1. चुनाव आयोग के अधिकार और दायित्व

  • चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कराए। 
  • लेकिन आयोग स्वयं कानून में संशोधन नहीं कर सकता, केवल सुझाव और सिफारिश दे सकता है। जम्मू–कश्मीर के मामले में उसने निरंतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति आदेश का सुझाव दिया। 

2. कानून मंत्रालय की भूमिका

  • कानून मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 154 के अनुसार राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष है और इसे घटाने का प्रावधान केवल 1952 और 1956 में ही था।
  •  इसलिए, यदि अब इस प्रकार का आदेश लाना है तो इसके लिए संसदीय संशोधन आवश्यक है। 

3. संसद की प्रासंगिक बहसें

  • संसद में कई अवसरों पर जम्मू–कश्मीर के लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के अभाव पर बहस हुई है। विपक्ष का तर्क है कि इस स्थिति ने न केवल जम्मू–कश्मीर की जनता को बल्कि देश की लोकतांत्रिक परंपरा को भी नुकसान पहुँचाया है। 
  • वहीं सरकार का मत है कि किसी भी बदलाव के लिए विधायी संशोधन अनिवार्य है, केवल कार्यपालिका या चुनाव आयोग की सिफारिशों के आधार पर कदम नहीं उठाए जा सकते। 

जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीट विवाद: अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

 1. अमेरिका में संघ–राज्य संबंध

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) एक संघीय गणराज्य है, जहाँ प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधित्व सीनेट (Senate) में सुनिश्चित है।
  • प्रत्येक राज्य से दो सीनेटर चुने जाते हैं, चाहे जनसंख्या कितनी भी हो।
  • सीनेटरों का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है (17वें संशोधन, 1913 के बाद)।
  • इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी राज्य संघीय संसद में प्रतिनिधित्व से वंचित न हो।

2. कनाडा में संघ–प्रांत संबंध

  • कनाडा में सीनेट संघीय ढांचे का ऊपरी सदन है, जहाँ प्रांतों को प्रतिनिधित्व दिया गया है।
  • यहाँ सदस्यों को सीधे चुना नहीं जाता, बल्कि प्रधानमंत्री की सलाह पर गवर्नर जनरल नियुक्त करते हैं।
  • हालांकि, नियुक्ति प्रक्रिया पर आलोचना होती है, लेकिन किसी प्रांत का प्रतिनिधित्व खाली नहीं छोड़ा जाता।
  • यह भारत से भिन्न है, जहाँ किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा न होने पर राज्यसभा सीटें रिक्त रह सकती हैं। 

आगे की राह

1. चुनाव आयोग की स्वायत्तता सुनिश्चित करना

  • चुनाव आयोग की सिफारिशों को केवल प्रशासनिक कारणों से खारिज करना उसकी संवैधानिक स्वायत्तता (अनुच्छेद 324) को कमजोर करता है।
  • आयोग को समयबद्ध चुनाव कराने की संवैधानिक गारंटी दी जानी चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों (जैसे Mohinder Singh Gill v. Chief Election Commissioner, 1978) में कहा है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है।

2. संवैधानिक संशोधन या स्पष्ट व्याख्या की आवश्यकता

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) में संशोधन करके यह प्रावधान जोड़ा जा सकता है कि यदि किसी विधानसभा का अस्तित्व नहीं है, तो भी उस क्षेत्र का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
  • यह संशोधन उन सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होना चाहिए, जहाँ सीटों का कार्यकाल एक साथ समाप्त होता है।
  • इससे राज्यसभा की स्थायित्व और निरंतरता बनी रहेगी, जो अनुच्छेद 83 की भावना के अनुरूप है।

3. जम्मू–कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना

  • विधानसभा चुनाव के बाद अगला कदम है कि राज्यसभा चुनाव समय पर संपन्न कराए जाएँ।
  • लोकतांत्रिक संस्थाओं की पुनर्बहाली से जनता का विश्वास बढ़ेगा और क्षेत्रीय असंतोष कम होगा।
  • सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जम्मू–कश्मीर की आवाज़ राष्ट्रीय संसद में सुनी जाए, जिससे संघीय ढांचे में संतुलन बना रहे। 

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प्रश्न: जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए –

  1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 राज्यसभा की संरचना और सदस्यों की संख्या से संबंधित है।
  2. अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र रूप से चुनाव कराने की शक्ति प्रदान करता है, लेकिन यह शक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की सीमाओं के भीतर है।
  3. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 154 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल छह वर्ष निर्धारित करती है।
  4. 2019 के पुनर्गठन अधिनियम के बाद जम्मू–कश्मीर को राज्यसभा में पाँच सीटों का प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1, 2 और 3
 (b) केवल 2 और 4
 (c) केवल 1 और 4
 (d) केवल 3 और 4

 सही उत्तर: (a) केवल 1, 2 और 3

व्याख्या

  • कथन 1 सही है: अनुच्छेद 80 राज्यसभा की संरचना, सदस्य संख्या और चुनाव प्रक्रिया से संबंधित है।
  • कथन 2 सही है: अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र शक्ति देता है, लेकिन इसकी सीमा संसद द्वारा बनाए गए कानूनों (जैसे Representation of People Act, 1951) से निर्धारित होती है।
  • कथन 3 सही है: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 154 स्पष्ट करती है कि राज्यसभा सांसद का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
  • कथन 4 गलत है: पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के बाद जम्मू–कश्मीर को केवल चार सीटें दी गईं, पाँच नहीं।

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Topic : भारत की विदेश नीति में बदलाव: SCO शिखर सम्मेलन

 

चर्चा में क्यों :

  • हाल ही में चीन के तियानजिन में आयोजित SCO (Shanghai Cooperation Organisation) शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति का केंद्र बिंदु बना। 
    • इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की संयुक्त तस्वीर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक चर्चा पैदा की। 
    • अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और भारत पर रूस–चीन के करीब जाने का आरोप लगाया। साथ ही अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ बढ़ाने और रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए।
    • हालांकि बाद में मोदी–ट्रंप के बीच वार्ता में अपेक्षाकृत सौहार्द्रपूर्ण रुख सामने आया। यह घटनाक्रम भारत की विदेश नीति के रणनीतिक संतुलन (Strategic Balancing) को स्पष्ट करता है। 

UPSC पाठ्यक्रम:

  • प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की समसामयिक घटनाएँ
  • मुख्य परीक्षा: GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पृष्ठभूमि (Background)

1. भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत

  • भारत की विदेश नीति लंबे समय से रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) और गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) पर आधारित रही है।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): शीत युद्ध काल में भारत ने अमेरिका और सोवियत संघ दोनों से समान दूरी बनाकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाई।
  • Non-Alignment 2.0 (2012): इसमें यह सुझाव दिया गया कि भारत को बदलते वैश्विक परिदृश्य में भी अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहिए।
  • आज भारत का लक्ष्य है कि किसी भी गुट का स्थायी हिस्सा बने बिना बहुपक्षीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए। 

2. SCO, RIC और Quad जैसे मंचों में भारत की भागीदारी

  • SCO (शंघाई सहयोग संगठन): भारत 2017 से पूर्ण सदस्य है। यह मंच एशियाई क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निरोध और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है।
    •  तियानजिन सम्मेलन में “Global Governance Initiative” और “Civilisational Dialogue” जैसे विचार भारत और चीन की समानांतर रणनीतियों को दर्शाते हैं।
  • RIC (Russia–India–China त्रिकोण): यह मंच 2000 के दशक से मौजूद है लेकिन 2020 के बाद से निष्क्रिय हो गया। SCO में मोदी–शी–पुतिन मुलाकात ने इस तिकड़ी की संभावना को फिर जीवित करने पर चर्चा छेड़ी।
  • Quad (India–US–Japan–Australia): भारत ने हिंद–प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए इस मंच पर सक्रिय भूमिका निभाई। Quad के जरिए भारत अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ रणनीतिक साझेदारी मजबूत कर रहा है। 

3. 2020 के बाद भारत–चीन और भारत–अमेरिका संबंधों का परिप्रेक्ष्य

भारत–चीन संबंध:

  • 2020 के गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में गहरा अविश्वास पैदा हुआ।
  • सीमा विवाद पर प्रगति धीमी है, लेकिन हालिया तियानजिन बैठक में NSA अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी को विशेष प्रतिनिधि के रूप में वार्ता जारी रखने पर सहमति बनी।
  • साथ ही फ्लाइट सेवाओं, वीज़ा सुविधा और कैलाश मानसरोवर यात्रा बहाली पर भी चर्चा हुई।

भारत–अमेरिका संबंध:

  • अमेरिका ने भारत के रूसी तेल आयात पर आपत्ति जताई और भारत पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए टैरिफ बढ़ाए।
  • ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूस और चीन के साथ नजदीकी का आरोप लगाया, लेकिन बाद में मोदी–ट्रंप ने रिश्तों को “विशेष साझेदारी” बताते हुए माहौल को सकारात्मक बनाने का प्रयास किया।
  • रक्षा और तकनीकी सहयोग (जैसे Quad और 2+2 वार्ता) अभी भी भारत–अमेरिका संबंधों की रीढ़ बने हुए हैं। 

तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन

1. 10-देशों की भागीदारी और घोषणाएँ

  • चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में 10 देशों के नेता शामिल हुए।
    • इसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, तुर्की, नेपाल, मालदीव, अज़रबैजान, आर्मेनिया, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों की भागीदारी रही।
  • सम्मेलन के घोषणापत्र में “एकतरफा और जबरन लागू की गई आर्थिक नीतियों” की आलोचना की गई, जिसका इशारा अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ और यूरोपीय प्रतिबंधों की ओर था।

2. चीन की “Global Governance Initiative” बनाम भारत का “Civilisational Dialogue”

  • चीन: राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वैश्विक व्यवस्था में अपनी प्रमुख भूमिका को आगे बढ़ाते हुए “Global Governance Initiative” प्रस्तुत किया। इसका उद्देश्य चीन को वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा संरचना का केंद्र बनाना है।
  • भारत: प्रधानमंत्री मोदी ने SCO मंच पर “Civilisational Dialogue” का विचार रखा, जिसके तहत सदस्य देशों के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों के आधार पर सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया।
  • यह भारत की “सॉफ्ट पावर” रणनीति को दर्शाता है, जो चीन की भू-राजनीतिक प्रभुत्व की पहल से भिन्न है। 

3. भारत–चीन द्विपक्षीय वार्ता

  • प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात 2018 के बाद पहली बार और 2020 गलवान संघर्ष के बाद पहली प्रत्यक्ष वार्ता थी।
  • दोनों देशों ने सहमति जताई कि सीमा मुद्दों पर वार्ता विशेष प्रतिनिधियों (भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी) के स्तर पर जारी रहेगी।
  • द्विपक्षीय वार्ता में कुछ ठोस कदमों पर भी सहमति बनी:
    • भारत–चीन उड़ानों की बहाली।
    • वीज़ा सुविधा का विस्तार।
    • कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः प्रारंभ करने पर चर्चा।
    • व्यापार संबंधी अड़चनों को दूर करने की प्रतिबद्धता। 

अमेरिकी प्रतिक्रिया (U.S. Reaction)

1. ट्रंप और उनके सलाहकारों की टिप्पणियाँ

  • राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “अमेरिका ने भारत और रूस को गहरे, अंधेरे चीन के हवाले कर दिया है।”
  • ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस और चीन के साथ मिलकर अमेरिकी हितों को नुकसान पहुँचा रहा है। 

2. रूस और चीन के साथ भारत की निकटता पर अमेरिकी चिंताएँ

  • अमेरिकी रणनीतिकों में यह आशंका बढ़ी कि भारत, SCO जैसे मंचों पर रूस और चीन के साथ खड़ा होकर “पश्चिम से दूर जा रहा है”
  • यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत की स्थिति पर सवाल उठाए गए और कुछ अमेरिकी विश्लेषकों ने तो इसे “Modi’s war” तक कह दिया, जिसे भारत के विदेश मंत्रालय ने सख्ती से खारिज कर दिया।
  • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) की नीति ने अमेरिका को यह संकेत दिया कि भारत किसी एक ध्रुव का हिस्सा बनने के बजाय अपने हितों के अनुसार फैसले ले रहा है। 

3. 50% टैरिफ, रूस तेल आयात पर प्रतिबंध, और भारत–अमेरिका रिश्तों में तनाव

  • अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर 50% तक टैरिफ बढ़ा दिया।
  • भारत के रूसी तेल आयात को निशाना बनाते हुए प्रतिबंध लगाए और यूरोपीय संघ को भी इसी दिशा में प्रेरित किया।
  • वीज़ा और व्यापार से जुड़े विवादों ने भी संबंधों में तनाव बढ़ाया।

भारत की रणनीति (India’s Strategy)

1. रणनीतिक संतुलन (Strategic Balancing)

  • भारत की विदेश नीति का प्रमुख आधार रणनीतिक संतुलन है।
  • पूर्व की ओर भारत शंघाई सहयोग संगठन (SCO), रूस–भारत–चीन (RIC) और ब्रिक्स (BRICS) जैसे मंचों में सक्रिय भागीदारी करता है। 
  • इन मंचों के माध्यम से भारत एशिया–केंद्रित सहयोग और वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को सशक्त बनाता है।
  • पश्चिम की ओर भारत क्वाड (Quad: भारत–अमेरिका–जापान–ऑस्ट्रेलिया), अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के साथ अपनी साझेदारी बनाए रखता है, ताकि हिंद–प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन किया जा सके।
  • यह नीति भारत की स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विदेश नीति को प्रदर्शित करती है। 

2. “मुद्दा–आधारित गठबंधन” (Issue-based Alignment)

  • भारत अब स्थायी गुटनिरपेक्षता की बजाय मुद्दा–आधारित गठबंधन की नीति पर काम कर रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा के मुद्दों पर भारत पश्चिमी देशों के साथ सहयोग करता है।
  • रूसी तेल आयात और यूरेशियन कनेक्टिविटी जैसे मामलों में भारत रूस और एशियाई देशों के साथ सहयोग बनाए रखता है।
  • रक्षा क्षेत्र में भारत अमेरिका और फ्रांस से उच्च प्रौद्योगिकी हथियारों की खरीद करता है, जबकि रूस के साथ लंबे समय से रक्षा आपूर्ति संबंध बनाए रखता है।
  • यह नीति भारत को परिस्थितियों के अनुसार लचीला और स्वतंत्र बनाती है। 

3. ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और रक्षा सहयोग की प्राथमिकताएँ

(a) ऊर्जा सुरक्षा

  • भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 85% आयात करता है।
  • रूस से रियायती तेल और पश्चिम एशिया से गैस/कच्चे तेल की आपूर्ति भारत की ऊर्जा नीति का अहम हिस्सा है।
  • साथ ही, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और नवीकरणीय ऊर्जा निवेशों के माध्यम से भारत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को भी बढ़ावा दे रहा है। 

(b) व्यापार

  • अमेरिका और यूरोपीय संघ भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार हैं।
  • चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन यहाँ भारी व्यापार घाटा है।
  • भारत RCEP से बाहर रहा, किंतु IPEF (Indo-Pacific Economic Framework) जैसे नए मंचों में शामिल होकर पश्चिमी देशों से व्यापारिक संबंध मजबूत कर रहा है। 

(c) रक्षा सहयोग

  • भारत की लगभग 60% रक्षा आवश्यकताएँ रूस से पूरी होती हैं।
  • साथ ही, अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल से भारत उन्नत तकनीक, ड्रोन और लड़ाकू विमान खरीद रहा है।
  • हिंद–प्रशांत रणनीति के तहत क्वाड देशों के साथ नौसैनिक अभ्यास (जैसे मालाबार युद्धाभ्यास) भारत की रक्षा प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं। 

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के बारे में :

  • SCO की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। 
  • इससे पहले, 1996 में ‘शंघाई फाइव’ नामक एक समूह अस्तित्व में था, जिसमें चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे।
  •  वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान को शामिल कर इस संगठन का विस्तार हुआ और यह SCO बन गया।
    • इस संगठन का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, आर्थिक सहयोग, ऊर्जा साझेदारी और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देना है।

प्रमुख उद्देश्य:   

  • सदस्य देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना
  • आपसी विश्वास और स्थिरता को मजबूत करना
  • क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा एवं स्थायित्व बनाए रखना
  • व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, संस्कृति, ऊर्जा, पर्यटन, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना
  • एक न्यायपूर्ण, लोकतांत्रिक और बहुध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था की ओर बढ़ना

सदस्यता एवं भागीदारी

  • वर्तमान पूर्ण सदस्य देश (10): भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, बेलारूस
    • बेलारूस 4 जुलाई 2024 को 10वाँ पूर्ण सदस्य बना।

https://lh7-rt.googleusercontent.com/docsz/AD_4nXfjtZW8sJBLLAPVtNU01IBouShaBMPoyprkTPGNlxd5sdbb05g41Vtl7HbN2ZAh258lrZDDnrgdlxZGLnnOwFM7TzxeudAjGPpVQ5pZS5rLN8JVR8yTe40BP54Ul5IdiTKkbqWq?key=g_R_hz407dCKtrspdVfg-Q

 

SCO का विकास क्रम

वर्ष

प्रमुख घटना

संबंधित देश

1996

Shanghai Five की स्थापना

चीन, रूस, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान

2001

SCO की स्थापना (उज़्बेकिस्तान के जुड़ने के बाद)

उपरोक्त + उज़्बेकिस्तान

2015

भारत और पाकिस्तान को सदस्यता का आमंत्रण (उफा सम्मेलन, रूस)

भारत, पाकिस्तान

2016

मेमोरेंडम ऑफ ऑब्लिगेशन पर हस्ताक्षर (ताशकंद)

भारत, पाकिस्तान

2017

भारत और पाकिस्तान पूर्ण सदस्य बने (अस्ताना सम्मेलन)

भारत, पाकिस्तान

2021

SCO ने ईरान की सदस्यता की घोषणा की

ईरान

2023

ईरान पूर्ण सदस्य बना

ईरान

2024

बेलारूस को SCO का 10वाँ पूर्ण सदस्य बनाया गया (जुलाई 2024)

बेलारूस

SCO 2025 की वर्तमान स्थिति

श्रेणी

देशों के नाम

पूर्ण सदस्य (10)

भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, बेलारूस

पर्यवेक्षक देश

अफगानिस्तान, मंगोलिया

संवाद साझेदार

आर्मीनिया, अज़रबैजान, कंबोडिया, श्रीलंका, तुर्किये, मिस्र, नेपाल, क़तर, सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, मालदीव, म्यांमार, बहरीन

 

 

 

आगे की राह

1. संतुलन की नीति (Balancing Act) को बनाए रखना

  • भारत को अमेरिका और चीन दोनों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी होगी। यह रणनीति भारत की विदेश नीति की मूल आत्मा है।

2. अमेरिका और चीन दोनों के साथ संवाद बनाए रखना

  • अमेरिका के साथ: रक्षा, व्यापार और तकनीकी सहयोग को गहरा करना आवश्यक है।
  • चीन के साथ: सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में निरंतर वार्ता और व्यापार संबंधों को स्थिर करने की कोशिश होनी चाहिए।

3. इंडो-पैसिफिक में Quad की भूमिका और SCO में भारत की प्राथमिकताएँ

  • Quad: हिंद–प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को संतुलित करने के लिए भारत को Quad में सक्रिय रहना होगा।
  • SCO: ऊर्जा सुरक्षा, कनेक्टिविटी और आतंकवाद विरोधी सहयोग भारत की मुख्य प्राथमिकताएँ होनी चाहिए।

4. रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) को और मजबूत करना

  • भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह किसी भी एक ध्रुव (East या West) के अधीन न हो।
  • ऊर्जा, रक्षा और तकनीक में विविधीकरण लाकर निर्भरता कम करनी होगी।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत को अपनी स्थिति स्वतंत्र शक्ति केंद्र (Independent Pole) के रूप में स्थापित करना होगा। 

 

 Q. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. भारत 2017 से SCO का पूर्ण सदस्य है।
  2. SCO का प्रमुख उद्देश्य आतंकवाद निरोध, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग है।
  3. तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन में भारत ने “Global Governance Initiative” प्रस्तुत किया।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1 और 2
 (b) केवल 2 और 3
 (c) केवल 1 और 3
 (d) 1, 2 और 3

 उत्तर: (a) केवल 1 और 2

व्याख्या:

  • भारत 2017 से SCO का सदस्य है और इसका फोकस क्षेत्रीय सुरक्षा व आतंकवाद निरोध है। तियानजिन सम्मेलन में “Global Governance Initiative” चीन ने प्रस्तुत किया था, जबकि भारत ने “Civilisational Dialogue” की बात रखी।

 

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