Nirman ias Current Affairs 9 September 2025
Topic : जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों का विवाद चर्चा में क्यों : हाल ही में केंद्र के कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव आयोग (EC) के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है जिसमें जम्मू-कश्मीर (J&K) की चार राज्यसभा सीटों की अवधि को क्रमबद्ध (staggered) करने के लिए राष्ट्रपति आदेश जारी करने की सिफारिश की गई थी। इस फैसले के कारण 2021 से जम्मू-कश्मीर की कोई भी प्रतिनिधित्व राज्यसभा में नहीं है। UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजनीति और शासन – संविधान, राजनीतिक व्यवस्था, पंचायती राज, सार्वजनिक नीति, अधिकार मुद्दे मुख्य परीक्षा: GS-II: संघ और राज्यों के कार्य और जिम्मेदारियाँ, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर तक शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसमें चुनौतियाँ। पृष्ठभूमि 1. अनुच्छेद 370 और राज्य का पुनर्गठन संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू–कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था। इस प्रावधान के अंतर्गत राज्य की अपनी विधानसभा और संविधान था, जिसके आधार पर राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव किया जाता था। 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने इस विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया और जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 लागू किया। इसके परिणामस्वरूप राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया: जम्मू–कश्मीर (विधानसभा सहित) लद्दाख (बिना विधानसभा) इस पुनर्गठन के बाद जम्मू–कश्मीर को राज्यसभा में चार सीटों का प्रतिनिधित्व मिला, जबकि लद्दाख को कोई सीट आवंटित नहीं हुई। 2. राज्यसभा सीटों का संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 80) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 राज्यसभा की संरचना और सदस्यों की संख्या को परिभाषित करता है। राज्यसभा के सदस्य दो प्रकार से चुने जाते हैं: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से निर्वाचित सदस्य – इनका चुनाव संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं। राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य – कला, साहित्य, विज्ञान और समाजसेवा जैसे क्षेत्रों से। संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य को जनसंख्या के आधार पर सीटें दी जाती हैं। पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के बाद जम्मू–कश्मीर को चार सीटें प्रदान की गईं। 3. जम्मू–कश्मीर के विशेष दर्जे के बाद सीटों की स्थिति अनुच्छेद 370 के हटने से पहले जम्मू–कश्मीर के राज्यसभा सांसद राज्य की विधान सभा द्वारा चुने जाते थे। 2019 में पुनर्गठन के बाद विधानसभा भंग कर दी गई और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। इसी दौरान, 2021 में चारों राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो गया। चूँकि उस समय नई विधानसभा मौजूद नहीं थी, इसलिए नए सदस्यों का चुनाव संभव नहीं हुआ। यद्यपि सितंबर–अक्टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं, फिर भी अब तक राज्यसभा चुनाव नहीं कराए गए हैं। इसके कारण जम्मू–कश्मीर पिछले चार वर्षों से राज्यसभा में पूरी तरह से प्रतिनिधित्व विहीन बना हुआ है। जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर हालिया विवाद और संवैधानिक पहलू हालिया विवाद (Recent Developments) 1. कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के बीच मतभेद चुनाव आयोग ने वर्ष 2025 में यह सुझाव दिया कि जम्मू–कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों के कार्यकाल को क्रमबद्ध (staggered) करने के लिए राष्ट्रपति आदेश जारी किया जाए, ताकि सभी सीटें एक साथ रिक्त न हों। लेकिन कानून और न्याय मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वर्तमान कानून, विशेषकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951) में इस प्रकार के आदेश का कोई प्रावधान मौजूद नहीं है। मंत्रालय का यह भी कहना था कि यदि ऐसा करना है तो संसद को विधायी संशोधन करना होगा और यह प्रावधान केवल जम्मू–कश्मीर के लिए नहीं बल्कि उन सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए लागू होना चाहिए जिनकी राज्यसभा सीटों का कार्यकाल एक साथ समाप्त होता है। 2. राज्यसभा चुनावों की प्रक्रिया और जम्मू–कश्मीर की विशेष परिस्थिति राज्यसभा के चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation by means of Single Transferable Vote) के आधार पर होते हैं, जिसमें संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य मतदान करते हैं। जम्मू–कश्मीर में वर्ष 2019 में पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद विधानसभा भंग कर दी गई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इस अवधि में वर्ष 2021 में चारों राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो गया और नई विधानसभा के अभाव में चुनाव नहीं हो सका। सितंबर–अक्टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं, लेकिन अब तक राज्यसभा चुनाव नहीं कराए गए हैं। इस कारण जम्मू–कश्मीर पिछले चार वर्षों से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व से वंचित है। संवैधानिक और कानूनी पहलू 1. अनुच्छेद 324 – चुनाव आयोग की स्वतंत्रता भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र रूप से चुनाव कराने की शक्ति प्रदान करता है। इस अनुच्छेद में स्पष्ट किया गया है कि चुनाव आयोग संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण करेगा। हालांकि, जब चुनावी प्रक्रिया किसी विशेष कानून, जैसे कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 द्वारा सीमित हो जाती है, तब चुनाव आयोग अपने अधिकार का उपयोग केवल उसी दायरे में कर सकता है। यही कारण है कि जम्मू–कश्मीर के मामले में चुनाव आयोग को राष्ट्रपति आदेश की आवश्यकता पड़ी, जिसे कानून मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया। 2. अनुच्छेद 80(4) और राज्यसभा चुनाव भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80(4) यह प्रावधान करता है कि राज्यसभा के सदस्य राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाएंगे। इसका अर्थ यह है कि जब तक विधानसभा अस्तित्व में नहीं होगी, तब तक राज्यसभा चुनाव संभव नहीं हो सकते। जम्मू–कश्मीर के मामले में यह स्थिति वर्ष 2019 से 2024 तक बनी रही, जिसके कारण राज्यसभा चुनाव टल गए और क्षेत्र राज्यसभा में प्रतिनिधित्व से वंचित हो गया। 3. सुप्रीम कोर्ट और संविधान पीठ के प्रासंगिक निर्णय केशवानंद भारती बनाम राज्य केरल (1973): इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): इस फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन केवल अस्थायी उपाय है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बहाली शीघ्र की जानी चाहिए। जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन से संबंधित याचिकाएँ (2020–2023): संविधान पीठ ने यह माना कि संसद के पास पुनर्गठन करने का अधिकार है, किंतु लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को लंबे समय तक बाधित करना संविधान की भावना के विपरीत है। जम्मू–कश्मीर की राज्यसभा सीटों पर विवाद के प्रमुख मुद्दे (Key Issues) 1. प्रतिनिधित्व का अभाव और लोकतांत्रिक घाटा जम्मू–कश्मीर की चार राज्यसभा सीटें 2021 से रिक्त हैं, जिसके कारण इस केंद्रशासित